पटना, ८ सितम्बर । संपूर्ण देश को एक सूत्र में जोड़ने और परस्पर सौहार्द बढ़ाने के लिए एक संपर्क-भाषा का होना आवश्यक है। उत्तर-दक्षिण का भेद मिटाने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है। भारत की एक राष्ट्रभाषा हो, इसके लिए बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का प्रयास सराहनीय और समर्थन योग्य है। वर्तमान सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है कि ग़ैर-हिन्दी प्रदेश के अधिकारी अब शिक्षकों से हिन्दी सीख रहे हैं। अब वे भी गर्व से कहते हैं कि हम हिन्दी जानते हैं। हमारी सरकार हिन्दी को इतना बढ़ावा देगी कि पूरे देश में हिन्दी के बिना किसी का कार्य नहीं चलेगा।यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में विगत १ सितम्बर से आयोजित हिन्दी पखवारा और पुस्तक चौदस मेला के आठवें दिन ‘कवयित्री-सम्मेलन’ का उद्घाटन करते हुए, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कही। श्री राय ने कहा कि यह भारत का दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता के समय इस देश में ‘हिन्दी-मन’ वाला कोई नेता नहीं रहा। यदि हिन्दी-मन वाले किसी नेता के हाथ में भारत के हाथ में सत्ता आयी होती तो अवश्य ही देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी हो गयी होती। किंतु हिन्दी के सामने इतनी बाधाएँ खड़ी कर दी गयी है कि यह कार्य कठिन हो गया है।इसके पूर्व सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने श्री राय का, उनके पुनः केंद्रीय मंत्रिपरिषद में सम्मिलित की जाने पर अभिनन्दन किया तथा उन्हें सम्मेलन की शीर्ष समिति ‘स्थायी समिति’ की मानद सदस्यता प्रदान की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में डा सुलभ ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री से हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा घोषित करने हेतु प्रधानमंत्री तक उनकी बात पहुँचाने का आग्रह किया। उन्होंने इस भ्रांति को दूर किया कि हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनाए जाने से भारत की किसी अन्य भाषा का कोई अहित होगा। उनका कहना था कि इससे भारत को ‘अंग्रेज़ी की दासता’ से मुक्ति मिलेगी तथा अन्य भारतीय भाषाओं का भी उन्नयन होगा। इस अवसर पर बिहार विधान परिषद के सदस्य संजय मयूख, नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति संजय कुमार, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, सम्मेलन के संरक्षक सदस्य डा विनोद शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आयोजित कवयित्री सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवयित्री और सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, आराधना प्रसाद, डा पूनम आनन्द, सागरिका राय, डा शालिनी पाण्डेय, डा सीमा रानी, प्रो सुधा सिन्हा, डा सुमेधा पाठक, डा पुष्पा जमुआर, डा तलत परवीन, मधुरानी लाल, सुनीता रंजन, अनीता मिश्र सिद्धि, डा अर्चना चौधरी अर्पण, रंजना लता, उत्तरा सिंह, मीरा श्रीवास्तव, डा सुषमा कुमारी,लता प्रासर, अभिलाषा कुमारी, संगीता मिश्र, संध्या साक्षी, राज प्रिया रानी, डा वंदना मिश्र, कीर्ति मिश्रा, विभा देवी समेत तीन दर्जन से अधिक कवयित्रियों ने अपनी सुमधुर काव्य-रचनाओं से श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया। डा रामरेखा सिंह, डा मेहता नगेंद्र सिंह, दिनेश्वरलाल दिव्यांशु, प्रो सुशील कुमार झा, अंबरीष कांत, उमेंद्र सिंह, कृष्ण रंजन सिंह, अभिजीत कश्यप, डा कृष्णा सिंह, डा विशाल मिश्रा, सनोज यादव, भानु प्रताप सिंह, अभय सिन्हा, शंकर शरण मधुकर आदि प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।