पटना, ९ सितम्बर। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में बिहार के साहित्यकारों का अन्यतम योगदान है। बिहार में ही हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास लिखा गया। आरा के यशस्वी साहित्यकार ब्रजनंदा सहाय ‘ब्रजवल्लभ’ ने ‘सौंदयोपासक’ नामक उपन्यास लिखा था, जिसे हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास माना जाता है। इसके पूर्व के उपन्यास अन्य भाषाओं के अनुवाद थे। उसी प्रकार हिन्दी की प्रथम कहानी लिखने का भी श्रेय बिहार के ही पं सदल मिश्र को जाता है, जिन्होंने ‘नासिकेतपाख्यायन’ नामक कहानी लिखी थी।यह बातें सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में भारतेन्दु जयंती के अवसर पर ‘हिन्दी साहित्य में बिहार का योगदान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि हिन्दी कविता के क्षेत्र में भी बिहार का योगदान अप्रतिम है। हिन्दी-काव्य में मुक्त-छंद का प्रणेता महाप्राण निराला को माना जाता है। किंतु सत्य यह है कि निराला की ‘जूही की कली’ के प्रकाशन के ३० वर्ष पूर्व ही बिहार के बाबू महेश नारायण ने ‘स्वप्नभंग’ नामक एक लम्बी कविता लिखी थी, जो मुक्त-छंद की थी।इस विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य ने कहा कि बिहार और उत्तरप्रदेश के साहित्यकारों के अवदानों से हिन्दी-साहित्य का भंडार भरा। प्राचीन हिन्दी से लेकर आधुनिक हिन्दी के उन्नयन में भी इन दोनों राज्यों का अप्रतिम योगदान रहा है। विशेष कर बिहार का योगदान अद्वितीय है। बिहार से प्रकाशित पत्रिकाओं का भी हिन्दी के उन्नयन में बड़ा योगदान रहा।अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष ने कहा कि राष्ट्र कवि दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह,आचार्य शिवपूजन सहाय, बाबा नागार्जुन, केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ , गोपाल सिंह नेपाली जैसे कवियों लेखकों ने अपने योगदान से बिहार का गौरव बढ़ाया।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा सीमा रानी, आनन्द किशोर मिश्र, कमल किशोर वर्मा ‘कमल’, डा इन्दु पाण्डेय, बाँके बिहारी साव, चंदा मिश्र आदि वक्ताओं ने अपने विचार रखे। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।आरंभ में भारतेन्दु के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धा-पूर्वक स्मरण किया गया। इस अवसर पर डा कल्याणी सिंह, श्यामा झा, मधुकर सिंह, भास्कर त्रिपाठी, प्रमोद आर्य, राम प्रसाद ठाकुर, दुःख दमन सिंह, राकेश रंजन सिन्हा, नन्दन कुमार मीत, रवींद्र कुमार सिंह, राहूल कुमार, मयंक मानस, डौली कुमारी, महफ़ूज़ आलम आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।