पटना, १५ सितम्बर। हिन्दी शीघ्र ही ‘भारत की राष्ट्र-भाषा’ बनायी जाए इस मांग तथा इसके लिए अनिश्चित क़ालीन संघर्ष जारी रखने के संकलप के साथ, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, विगत १ सितम्बर से, हिन्दी-दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित ‘हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक चौदस मेला का समापन रविवार की संध्या हो गया।समारोह के उद्घाटनकर्ता और सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने पखवारा के अंतर्गत छात्र-छात्राओं के लिए आयोजित हुई विविध प्रतियोगिताओं में सफल २२ विद्यार्थियों को पुरस्कार-राशि, पदक और प्रमाण-पत्र देकर पुरस्कृत किया। अपने उद्गार में पूर्व राज्यपाल ने कहा कि हिन्दी भारत की अस्मिता है। यही संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांध सकती है। इसलिए यह संपूर्ण भारत वर्ष में अनिवार्य किया जाना चाहिए। संपर्क भाषा के रूप में इसे राष्ट्रभाषा का स्थान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिन्दी का प्रचार बहुत तेज़ी से हो रहा है। भारत के प्रधानमंत्री संपूर्ण दुनिया में जहां भी जाते हैं, हिन्दी में व्याख्यान देते हैं।समारोह के मुख्य अतिथि और राज्य उपभोक्ता आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि पूर्व में हिन्दी उत्तर भारत की भाषा मानी जाती थी, किंतु आज यह पूरे भारत वर्ष की भाषा बन गयी है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने उच्चतम न्यायालय के निर्णयों का हिन्दी में अनुवाद कराया है। हिन्दी के प्रति उनके आग्रह से न्यायालयों में हिन्दी और स्थानीय भाषाओं को बल मिला है। अपने अध्यक्षीय-संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि संपूर्ण भारत वर्ष में हिन्दी के प्रति प्रेम और श्रद्धा की भावना तीव्र-गति से बढ़ी है। दक्षिण और उत्तर-पूर्व का भी प्रबुद्ध-समाज अब यह मानने लगा है कि देश में अंग्रेज़ी का प्रभाव समाप्त किया जाना आवश्यक है और हिन्दी ही उसका विकल्प बन सकती है। देश में देश की भावना को समझी जाने वाली एक संपर्क भाषा होनी चाहिए और यह हिन्दी ही हो सकती है। और, यह कहना अनुचित है कि हिन्दी देश की राष्ट्र-भाषा बनेगी तो इससे अन्य भाषाओं का अहित होगा। हिन्दी तो अंग्रेज़ी का स्थान लेगी, इससे किसी भी अन्य भारतीय भाषा को कोई क्षति नहीं पहुँचेगी। डा सुलभ ने साहित्य सम्मेलन की ओर से सभा में यह प्रस्ताव रखा कि “हिन्दी शीघ्र ही ‘भारत की राष्ट्र-भाषा’ बनायी जाए, इसकी मांग भारत सरकार से करता है, और इस हेतु अनिश्चित क़ालीन संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक कि यह मांग पूरी नही होती” । पूरी सभा ने करतल ध्वनि से इसका समर्थन किया।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, प्रो जंग बहादुर पाण्डेय, बच्चा ठाकुर, आराधना प्रसाद, ई अशोक कुमार, चंदा मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। समारोह में निम्नलिखित छात्रों को पुरस्कृत किया गया;- श्रुतिलेख-प्रतियोगिता : रजनी कुमारी (प्रथम), आदित्य राज (द्वितीय), प्रीति प्रिया (तृतीय) , व्याख्यान -प्रतियोगिता : गणपत हिमांशु (प्रथम), सत्य प्रकाश (द्वितीय), दिव्या भारती (तृतीय) , निबन्ध-लेखन-प्रतियोगिता : सुमन कुमारी (प्रथम), वैष्णवी कुमारी (द्वितीय), अनुराग कुमार (तृतीय), काव्य-पाठ-प्रतियोगिता : सत्य प्रकाश ध्रुव (प्रथम), ऐशिका (द्वितीय), शौर्य आनन्द (तृतीय) , कथा-लेखन-प्रतियोगिता : आरती वर्मा (प्रथम), आयुषी कुमारी (द्वितीय), प्रियांशु कुमार (तृतीय) । इनके अतिरिक्त सोनाक्षी कुमारी, अनामिका सिन्हा, तान्या कुमारी, कृश रंजन, अनुपम कुमार साह, वैष्णवी मिश्रा तथा इंदु शुभंकरी को प्रोत्साहन पुरस्कार दिए गए। प्रथम स्थान पाने वाले विद्यार्थियों को एक हज़ार रपए, द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले को सात सौ रपए तथा तृतीय स्थान पाने वालों को पाँच सौ रपए की पुरस्कार राशि के साथ क्रमशः स्वर्ण, रजत और कांस्य पदाक और प्रामन-पत्र प्रदान किए गए। प्रोत्साहन-पुरस्कार पाने वालों को प्रमाण-पत्र के साथ दो सौ रूपए की पुरस्कार राशि भी दी गयी। पुस्तक मेले के अंतिम दिन आज नेशनल बूक ट्रस्ट और साहित्य सम्मेलन के प्रकाशन-विभाग की दीर्घाओं में पाठकों की अच्छी भींड़ देखि गयी। पुस्तकों की बड़ी संख्या में बिक्री भी हुई। समारोह में डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा दिनेश दिवाकर, डा तारिक असलम, कृष्ण रंजन सिंह, डा सीमा रानी, जय प्रकाश पुजारी, डा सीमा रानी, चंदा मिश्र, प्रवीर पंकज, डा रेणु मिश्रा, बाँके बिहारी साव, मनोज कुमार उपाध्याय, नीरव समदर्शी, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, रामाधार प्रसाद, वायुसेना के अधिकारी संजय कुमार, रवि रंजन, महफ़ूज़ आलम समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन और विद्यार्थीगण उपस्थित थे।