पटना, १ नवम्बर । बिहार की प्राचीनतम साहित्यिक संस्था बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, गरीब बच्चों में मिठाइयाँ तथा फुलझड़ियाँ बाँट कर दीपोत्सव मनाया गया। गुरुवार की संध्या सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने दीप-प्रज्वलित कर प्रकाशोत्सव का आरंभ किया। उन्होंने बड़ी संख्या में उपस्थित हुए बच्चों के बीच मिठाइयाँ बाँटी तथा उन्हें विविध-वर्णी प्रकाश उत्पन्न करने वाली फुलझड़ियाँ एवं अन्य सामग्री प्रदान की।
इस अवसर पर अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कामना की कि अमंगलकारी दुष्ट प्रवृतियों के प्रतीक ‘अंधकार’ पर देवत्व सदृश मनुष्यता अर्थात प्रकाश के विजय का यह प्रतीक पर्व संसार से समस्त अंधकार को दूर करे और सर्वत्र शांति, सौख्य और प्रसन्नता का आनन्द-प्रद साम्राज्य हो। सभी प्रकार के कलुष और अंधकार का नाश हो। प्रत्येक व्यक्ति का अंतर और बाह्य-जगत प्रकाशित हो। सबमें प्रेम और करुणा का संचार हो। भारत में सर्वत्र समृद्धि हो! हर व्यक्ति ‘मनुष्य’ बने!
उन्होंने आशा व्यक्त की कि हिन्दी के साहित्यकार संपूर्ण विश्व को सुंदर और आनन्द-प्रद बनाने वाले साहित्य का सृजन करेंगे। कलह, विद्वेष और घृणा से विध्वंश के कगार पर पहुँच चुकी दुनिया को, प्रेम और करुणा के रागात्मक काव्य से ही रक्षा हो सकती है। उन्होंने दिनकर को उद्धृत करते हुए कहा कि “बड़ी कविता वही है, जो विश्व को सुंदर बनाती है।”
डा सुलभ ने सम्मेलन कर्मियों को वस्त्र और मिष्ठान्न देकर दीपोत्सव की बधाइयाँ दी। सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह, प्रशासी अधिकारी सूबेदार नंदन कुमार मीत, ८६ वर्षीय वरिष्ठतम कर्मी महेश प्रसाद, वीरेंद्र प्रसाद आदि दीपोत्सव में सम्मिलित हुए