जितेन्द्र कुमार सिन्हा ::हम्पी कर्नाटक के तुंगभद्रा नदी के तट पर आंध्र प्रदेश के साथ राज्य की सीमा के पास स्थित है। हम्पी को पारंपरिक रूप से पंपा क्षेत्र, किष्किंधा क्षेत्र और भास्कर क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। हम्पी में विट्ठल मंदिर दक्षिण भारत के प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण राजा कृष्णदेव राय ने करवाया था। यह मंदिर विष्णु भगवान के वाहन गरूड़ को समर्पित है ।हम्पी दुनिया के सबसे बेहतरीन और प्रसिद्ध विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार विठ्ठल के रूप में जाना जाता है और यह अद्भुत पत्थर की विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। हम्पी कभी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। इसलिए इसे श्री विजय विट्ठल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।विट्ठल मंदिर का निर्माण 15वीं और 16वीं शताब्दी के आसपास हुआ था। उस समय राजा कृष्णदेव राय का शासनकाल था। विट्ठल मंदिर विशाल रंग मंडप के साथ-साथ 56 विभिन्न संगीतमय स्तंभ और पास ही में बना पत्थर का रथ शामिल है। उन 56 स्तंभों में से एक स्तम्भ ‘सा-रे गा-मा स्तंभ के रूप में प्रसिद्ध है और ऐसा माना जाता है कि स्तंभ संगीत के सभी सात स्वरों को उत्पन्न करता है। यह समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य स्मारकों के साथ कई खंडहरों और शानदार नक्काशी के लिए भी जाना जाता है। विट्ठल मंदिर का 56 स्तंभ मंडप की छत को सहारा प्रदान तो करता ही, साथ ही, यह स्तंभ अलग अलग स्वर उत्पन्न करता है, क्योंकि अन्य वाद्य यंत्र की ध्वनियों की तरह प्रतिध्वनित होता है। जब स्तंभ को थपथपाया जाता है तो संगीत का स्पष्ट स्वर सुनाई देता है। स्तंभों का नाम संगीत के नाम से संबोधित किया जाता है। यथा मृदंग, जलतरंग, तबला, डमरू, वीणा रखा गया है। स्तंभ पतले और कमल के आकार के मुकुट के साथ अधूरे दिखते हैं। ये छोटे स्तंभ संगीत स्तंभों के तारों की तरह काम करता हैं। उन स्तंभों को अंगूठे या चंदन की लकड़ी से थपथपाने पर उनसे निकलने वाली संगीत सभी को आश्चर्य चकित करता है। कोई नहीं जानता कि स्तंभ से ध्वनि कैसे निकलती है।
विठ्ठल मंदिर मूल दक्षिण भारतीय का द्रविड़ (वास्तुकला) मंदिरों की स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर आयताकार घेरे में 164 मीटर गुणा 94.5 मीटर में बना हुआ है। इसमें 56 स्तंभ हैं। प्रत्येक स्तंभ 3.6 मीटर ऊंचा है और ठोस ग्रेनाइट से बना हुआ है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, बेंगलूरु के सदस्य आर्किटेक्ट का मानना है कि कोई भी ध्वनि केवल एक खोखली चीज से ही उत्पन्न नहीं होगी, बल्कि उन्होंने जोर देकर कहा है कि एक ठोस चीज से भी ध्वनि उत्पन्न हो सकती है। तीन हजार ईसा पूर्व से पाषाण युग के अंत में, बजने वाले या घंटी बजाने वाले पंत्बर या लिथोफोन थे। पत्थरों में संगीतमय ध्वनियां होती थी। जब उन पर थपथपाया या उस पर मारा जाता था तो उससे घंटी की तरह आवाज निकलती थी। वास्तुकला की भव्यता विठ्ठल मंदिर में एक विशाल परिसर, लंबे हॉल और मंदिरों के लिए सुंदर मंडप हैं। ऐसा माना जाता है कि महामण्डप हॉल का एक हिस्सा 1565 में आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया गया था, जबकि शेष भाग में दक्षिणी, उत्तरी और पूर्वी हॉल अच्छी तरह से संरक्षित है, जबकि केंद्रीय पश्चिमी हॉल आशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया है।
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