जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 22 दिसम्बर :भारत में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्मालम्वी के लोग रहते हैं, इसलिए भारत को धर्म निरपेक्ष देश कहा जाता है। क्रिसमस लगभग विश्व के सभी देशों में मनाया जाता है। भगौलिक दृष्टिकोण से 25 दिसम्बर का दिन वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं। इसाई धर्म के अनुयायियों और उसके समर्थकों द्वारा मुख्य रूप से क्रिसमस मनाया जाता है। मान्यता है कि 25 दिसम्बर की रात बारह बजे ईसा मसीह का जन्म बेथलेहम शहर स्थित एक गौशाला में हुआ था। माँ का नाम मरियम था, जो दाउद वां की थी। ईसा मसीह का नाम जन्म के समय एमानुएल था। एमानुएल का अभिप्राय मुक्ति प्रदान करने वाला होता है। इसलिए ईसा मसीह को ईश्वर ने धरती पर मुक्ति प्रदान करने वाले दूत बनाकर भेजा था। ईसा मसीह के 12 पट शिष्य थे, जिनमें से 11 शिष्य धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अलग अलग दिशाओं में चले गये थे। एक पट शिष्य संत थॉमस समुद्री रास्ते से ईस्वी सन् 52 में भारत के दक्षिण तट पर उतरे थे, तब वहाँ चोल वंश का शासन था। वह केरल के मालाबार तट के मुजीरिश या मुचिरी नामक स्थान पर आए थे और केरल-तमिलनाडु क्षेत्र में लगभग 20 वर्ष रहे। संत थॉमस ने भारत आते ही पलायुर में पहले धर्म स्थल चर्च की स्थापना की, जिसे संत थॉमस चर्च के नाम से जाना जाता है। यह चर्च दुनिया में सबसे पुराना चर्च में शामिल है। संत थॉमस ने अपने जीवनकाल में इसके अतिरिक्त भारत में छः चर्च की स्थापना की। क्रिसमस से एक दिन पूर्व यानि 24 दिसम्बर से लोग अपने घरों के साथ-साथ धार्मिक स्थलों को सजाने लग जाते हैं। ईसा मसीह के जन्म दिन यानि 25 दिसम्बर की रात को गिरजाघरों में प्रार्थना सभा शुरू हो जाती है और इसके साथ ही शुरू हो जाता है क्रिसमस। प्रार्थना समाप्त होने पर वहां उपस्थित सभी लोग एक दूसरे को बधाई देकर अपने अपने घर लौट जाते हैं। मान्यता है कि बाइबल में यीशु को “शांति का राजकुमार” कहा गया है। यीशु हमेशा अभिवादन के रूप में कहते थे – “शांति तुम्हारे साथ हो, शांति के बिना किसी का अस्तित्व संभव नहीं है”, शांति के राजकुमार यीशु का जन्म प्रेम, सेवा, सद्भाव, भाईचारा, संगीत और शांति का आह्वान है। यीशु एक असहाय बच्चे के रूप में गरीबों के बीच आश्रय पाने के लिए दिल के दरवाजे पर दस्तक देते है। क्रिसमस प्रथा पश्चिमी देशों की है और इस संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। क्रिसमस बालक यीशु के जन्म उत्त्सव के रूप में मनाया जाता है और क्रिसमस की तैयारी के पहले मसीही जिन जिन सामग्रियों का उपयोग करते हैं, उन प्रतीक चिह्न का क्या अर्थ होता है इस संबंध में चर्च के फादर का कहना है कि सांता क्लॉउस सांता नाम के एक राजा ने बालक यीशु के अनुयायी होकर धार्मिकता को अपनाया था। वे पश्चिम देश के लूसिया प्रांत यूरोष के फादर थे जो सांता कहलाए। क्रिसमस ट्री को जीवन की निरंतरता का प्रतीक माना जाता है। इसे ईश्वर की ओर से दिए जाने वाले लंबे जीवन के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता रहा है। स्टार बालक यीशु को भोर का तारा के रूप में जाना जाता है। यह संदेश देता है कि बालक यीशु का जन्म हुआ है। घंटियां क्रिसमस ट्री को घर के दरवाजों और अन्य जगहों पर लगायी जाती है। यह किसी भी शुभ कार्यों और शांति का प्रतीक के रूप में जाना जाता है। रिथ क्रूस पर चढ़ाने के पहले प्रभु यीशु के सिर पर कांटों का मुकुट पहनाया गया था और यीशु का मजाक उड़ाया गया था। इसलिए मुकुट रीथ का प्रतीक माना जाता है। मेमना मानव द्वारा किये गए, पापों के बदले यीशु ने अपने आप को सूली पर चढ़वा लिया था, इसलिए मेमना को इसाहक और इब्राहिम की बलि के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। मोमबत्ती जलाना जिसका अर्थ होता है, यीशु संसार की ज्योति थे, जिन्होंने पाप के अंधेरों को चीर कर दूर-दूर तक प्रकाश फैलायी है। चरनी जब बालक यीशु का जन्म हुआ, तो उसकी मां मरियम ने उन्हें चरनी में लिटा दिया था। इसलिए क्रिसमस बिना चरनी के सम्पूर्ण नहीं होता है। चरनी प्रभु यीशु मसीह की याद का अनुपम और आध्यात्मिक प्रतीक है।ईसाई धर्म के विशालता के कारण इस सम्प्रदाय के लोग लगभग विश्व के हर हिस्से में रहते हैं। इसलिए क्रिसमस पूरे विश्व में धुमधाम से मनाया जाता है। सत्य, अहिंसा और मानवता के संस्थापक और प्रतीक कहलाते हैं ईसा मसीह।किदवंती यह भी है कि ईसा मसीह ने भेड़ बकरियों को चराते हुए उस समय प्रचलित अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति विरोध जाताना शुरू किया था, जिसका लोगों ने काफी विरोध किया था। उनके विरोधी ज्यादा होने के कारण उन्हें प्रसिद्धि मिलने में समय नहीं लगा। ईसा मसीह के विचारों को सुन यहूदी लोग घबरा उठे। यहूदी अज्ञानी होने के साथ-साथ अत्याचारी भी थे। वे ईसा मसीह को मूर्ख कह कर जलते भी थे लेकिन अंदर से वह ईसा मसीह से भयभीत भी रहते थे। उन्होंने ईसा मसीह का विरोध करना जोर-सोर से शुरू कर दिया था और यहूदियों ने ईसा मसीह को जान से मार डालने की योजना भी बनानी शुरू कर दी थी। ईसा मसीह को जब पता चला कि यहूदि उन्हें मारना चाहते हैं तो वे यहूदियों से कहा करते थे कि तुम मुझे आज मारोगे मै कल फिर जी उठूंगा।
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