पटना, ५ जनवरी। “अंधेरी निशा में नदी के किनारे, धधक कर किसी की चिता जल रही है” — “कपोलों पर सिसक कर सो गए हैं नयन के काजल/ आए तुम मगर परदेस से फिर आ गए बादल”— ” स्वदेश के पहरेदारों और हिमालय बड़ा करो/ या तिब्बत में आगे बढ़कर नया हिमालय खड़ा करो!”, जैसे गीतों के अमर रचनाकार सरयू सिंह सुंदर अपने समय के अत्यंत लोकप्रिय कवि थे। गीतों के राजकुमार के नाम से विख्यात हुए महान गीतकार गोपाल सिंह नेपाली के बाद चंपारण के जिस कवि ने साहित्य संसार का ध्यान अपनी ओर खींचा वो सुंदर ही थे। उनका व्यक्तित्व और साहित्य दोनों ही उनके नामानुसार सुंदर था। दूसरी ओर मोहिनी छवि वाले नृत्याचार्य डा नगेंद्र प्रसाद ‘मोहिनी’ शास्त्रीय नृत्य के एक महान आचार्य ही नहीं, संगीत-साहित्य में अपना अप्रतिम योगदान देने वाले एक ऋषि थे। यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि मोहिनी जी कला को समर्पित एक ऐसे कलाकार थे, जिन्हें ईश्वर ने अपने समस्त सारस्वत वैभव से परिपूर्ण किया था। वे नृत्य-शास्त्र में पी एच डी की उपाधि प्राप्त करने वाले देश के अंगुली-गण्य आचार्यों में एक थे। सम्मेलन के कला विभाग को उन्नत करने तथा मंच के सौंदर्यीकरण में उन्होंने अपनी सांगितिक प्रतिभा ही नहीं अपना धन भी लगाया।
सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष और बिहार के पूर्व गृह-सचिव जियालाल आर्य ने कहा कि साहित्य, संगीत और कला के तीनों सारस्वत विधाओं के गुणी साधक थे मोहिनी जी। उन्होंने बिहार के हज़ारों कला-अनुरागी छात्र-छात्राओं को नृत्य में प्रशिक्षित किया।इस अवसर पर आयोजित ‘काव्यांजलि’ का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा शालिनी पाण्डेय, लता प्रासर, चित्त रंजन लाल भारती, डा मीना कुमारी परिहार, डा शमा नसमीन नाजां, भास्कर त्रिपाठी आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी मधुर काव्यांजलि दी। मंच का संचालन आनन्द किशोर मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, बाँके बिहारी साव, प्रवीर कुमार पंकज, नन्दन कुमार मीत, अमन वर्मा, धर्मशीला गुप्ता, प्रमोद कुमार आर्य, प्रमोद चौरसिया, बनारसी पाल, मीठू चौरसिया, कुमारी क्रांति आदि सुधी जन समारोह में उपस्थित थे।