पटना, १० जनवरी। भारत की आत्मा की भाषा है हिन्दी। इसका ध्वज एक दिन विश्व भर में लहराएगा । यह शीघ्र ही भारत की ‘राष्ट्रभाषा’ भी होगी। यह एक अत्यंत वैज्ञानिक और सरल भाषा है। पूरी दुनिया में यह तेज़ी से फैल रही है। भारत के प्रत्येक नागरिक को हिन्दी को प्रेम और श्रद्धा के भाव से देखना और अपनाना चाहिए।
यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, विश्व हिन्दी दिवस पर आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए, भारत के कृषि राज्यमंत्री राम नाथ ठाकुर ने कही। उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ी भारत की ऊन्नति की बड़ी बाधा है। अंग्रेज चले गए। अंग्रेज़ी को भारत से जाना चाहिए। किसी भाषा से विरोध नहीं, सबका सम्मान हो। किंतु अपनी भाषा से सबसे अधिक प्यार होना चाहिए।
इस अवसर पर श्री ठाकुर ने हिन्दी भाषा और साहित्य के विकास में मूल्यवान योगदान देने वाले २० साहित्यकारों; डा कुमार वीरेंद्र, डा सत्येन्द्र अरुण, डा सुरेंद्र कुमार मिश्र, डा राजीव कुमार सिंह ‘परिमलेन्दु’, डा ममता मेहरोत्रा, डा क़ासिम खुरशीद, डा पूनम कुमारी, डा रेखा मिश्र, डा सुनील कुमार प्रियबच्च्न’, डा राज किशोर राजन, डा बलिराज ठाकुर, डा जंग बहादुर पाण्डेय, सुनील वाजपेयी, डा गीता पुष्प शॉ, डा शंकर मोहन झा, डा रमेश शर्मा, अरविन्द कुमार सिंह, डा तलत परवीन, विजय व्रत कंठ तथा मुशर्रफ़ परवेज़ को ‘हिन्दी-रत्न’ अलंकरण से विभूषित किया। उन्होंने साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित वरिष्ठ लेखिका डा पूनम कुमारी की पुस्तक ‘स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगनाएँ एवं बिहार की माहिलाओं का योगदान’ , युवा नाटककार आचार्य अनिमेश के नाटक ‘ जान है तो–‘ तथा सम्मेलन दिन-पत्री का लोकार्पण भी किया। इसके पूर्व सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने श्री ठाकुर को सम्मेलन की उच्च उपाधि ‘विद्या-वारिधि’ देकर सम्मानित किया।अपने अध्यक्षीय संबोधन में डा सुलभ ने कहा कि विश्व के स्वतंत्र १९५ देशों में से भारत जैसे कुछ ही ऐसे देश हैं, जिनकी अपनी कोई ‘राष्ट्र-भाषा’ नहीं है। चीन जैसे बहुभाषी देश की भी अपनी एक राष्ट्रभाषा है, जहाँ दर्जन-दो दर्जन नहीं, सैकड़ों स्थानीय भाषाएँ हैं। संसार में ऐसा कोई भी छोटा से छोटा देश भी नहीं है, जहां कि केवल एक ही भाषा हो। ४३ वर्ग किलो मीटर का संसार के सबसे छोटे देश ‘रोम’ में भी अनेक भाषाएँ हैं, जहां के शासक ख्रीस्तीय समुदाय के महाधर्माध्यक्ष ‘पोप’ होते हैं। ऐसे में यह कहना उचित नहीं है कि भारत जैसे बहुभाषी देश की कोई एक राष्ट्र भाषा नहीं हो सकती। एक राष्ट्रभाषा पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ती है। हिन्दी में वह गुण है। इसलिए भारत सरकार को शीघ्र ही हिन्दी को ‘राष्ट्रभाषा’ घोषित करनी चाहिए। समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार के सूचना आयुक्त ब्रजेश मेहरोत्रा ने कहा कि भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत थी, जिसमें वेद-उपनिषद लिखे गए। बाद में भारत पर जिन समुदायों की सत्ता रही यहाँ की भाषा वही होती गयी। ‘भाषा’ राज की होती है। वही जन की भी हो जाती है। हमें सभी भाषाओं का आदर करते हुए अपनी हिन्दी को बढ़ाना चाहिए।
पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि भाषा को उन्नत करना है तो अपने विचारों को उन्नत कीजिए। हमारे विचार ओछे होंगे तो हमारा साहित्य भी ओछा होगा। एक भाषा जितनी दूर तक फैलायी जाए वह व्यापक संवाद के लिए उतना ही लाभ कारी होगी। यदि विश्व की कोई एक भाषा हो जाए तो इससे बड़ी बात कोई और नहीं हो सकती। सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य तथा बिहार सरकार के पूर्व विशेष सचिव और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेंद्रनाथ पाण्डेयने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर २०२४ की बोर्ड परीक्षा में हिन्दी विषय में नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक अर्जित करने वाले छात्र-छात्राओं को, विश्व हिन्दी दिवस के प्रस्तावक ‘डा शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव स्मृति मेधावी छात्र सम्मान’ से पुरस्कृत किया गया। प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं, मुस्कान कुमारी, अंकिता शैलोनी तथा प्रकाश गांधी को क्रमशः प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। इन्हें स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक के साथ क्रमशः पाँच हज़ार एक सौ रूपए, दो हज़ार एक सौ रूपए तथा ग्यारह सौ रूपए की पुरस्कार राशि, डा श्रीवास्तव के पुत्र पारिजात सौरभ के द्वारा प्रदान की गयी। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने किया।आरंभ में मंचस्थ अतिथियों का रोड़ी-तिलक, वन्दन-वस्त्र, पुष्प-गुच्छ और आरती के साथ अभिनन्दन किया गया। वरिष्ठ कवयित्री और मधुबनी-कला की विशेषज्ञा सुजाता मिश्र ने केंद्रीय मंत्री को एक सुंदर और भव्य मधुबनी-पेंटिंग भेंट की। डा अभय कुमार सिंह, डा पूनम आनन्द, प्रो सुशील कुमार झा, ई अशोक कुमार, कृष्ण रंजन सिंह, प्रवीर पंकज, अर्चना त्रिपाठी, डा सुषमा कुमारी आदि ने अतिथियों का सम्मान किया । सम्मेलन की कलामंत्री और सुप्रसिद्ध कलानेत्री डा पल्लवी विश्वास ने वाणी-वंदना की। सम्मान-समारोह के बाद सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ की अध्यक्षता में एक भव्य राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें सम्मानित कवियों के अतिरिक्त डा रत्नेश्वर सिंह, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, आराधना प्रसाद, आरपी घायल, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, शमा कौसर ‘शमा’, बच्चा ठाकुर, सागरिका राय, सुनील कुमार उपाध्याय, सिद्धेश्वर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, शुभचंद्र सिन्हा, डा रमाकान्त पाण्डेय, डा सीमा रानी, सुनीता रंजन, विद्या चौधरी, डा पंकज प्रियम, नीता सहाय, प्रेम लता सिंह राजपुत, शंकर शरण आर्य, जय प्रकाश पुजारी, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त आदि कवियों और कवयित्रियों ने विविध भावों की अपनी रचनाओं से इसे एक चिर-स्मरणीय कवि-सम्मेलन बना दिया।