जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 17 जनवरी, 2025 ::दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कांटे की टक्कर होने की पूरी उम्मीद है। जबकि कांग्रेस भी अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी हुई है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस यदि अपनी स्थिति मजबूत कर बहुमत से पीछे रही तो आम आदमी पार्टी के लिए बहुत ही मुश्किल स्थिति होगी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए चुनाव परिणाम काफी फायदेमंद साबित होगी।दिल्ली विधान सभा के 70 सीटों के लिए चुनाव का विगुल बज चुका है और चुनाव प्रक्रिया के लिए अधिसूचना 10 जनवरी को निकल चुका है। नामांकन 17 जनवरी तक करना है। नामांक पर्चा वापसी की तिथि 20 जनवरी है, मतदान 5 फरवरी को एक ही चरण में सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में होगी और 8 फरवरी को मतगणना, का एलान निर्वाचन आयोग कर चुका है।विपक्ष द्वारा चुनाव हारने पर हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ दिया जाता है और विपक्ष कहते हैं कि ईवीएम से चुनाव में पारदर्शिता नहीं है? इस प्रश्न का उत्तर मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार ने कहा कि परिणाम में ही प्रमाण है। 2020 से अब तक 30 राज्यों के विधानसभा चुनाव का डेटा रखते हुए बताया कि यहां 15 राज्यों में अलग- अलग सरकारें बनीं हैं। उन्होंने विपक्ष के सवालों पर यहां तक कह दिया कि पारदर्शी चुनाव व्यवस्था पर शक का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने विपक्ष के इस प्रश्न का भी जवाब दिया कि शाम 5 बजे के बाद कैसे वोट बढ़ जाते हैं? उन्होंने कहा कि वोटर टर्नआउट में पोस्टल बैलेट के आंकड़े नहीं होते हैं। कई स्थानों पर पोलिंग पार्टियां देर रात तक पहुंचती हैं। सुबह तक आंकड़े अपडेट होते हैं। ऐप में सिर्फ ईवीएम के वोट प्रतिशत ही दिखते हैं।दिल्ली विधान सभा चुनाव में वोट प्रतिशत पर अगर ध्यान दिया जाए तो 2013 में कांग्रेस पार्टी को 24.55%, आम आदमी पार्टी को 29.49% और भारतीय जनता पार्टी को 33.07% वोट मिले थे। वहीं, 2015 में कांग्रेस पार्टी को 9.65%, आम आदमी पार्टी को 54.34% और भारतीय जनता पार्टी को 32.19% वोट मिले थे। 2020 में कांग्रेस पार्टी को सिर्फ 4.26%, आम आदमी पार्टी को 53.57 प्रतिशत और भारतीय जनता पार्टी को 38.51% वोट मिले थे।निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा करने के साथ ही दिल्ली में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई। इस चुनाव में चुनाव की परीक्षा पार्टियों और दिल्ली के मतदाताओं की होगी। देखना है कि दिल्ली की मतदाता अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किस पार्टी को चुनती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव अहम होती है क्योंकि इसका असर राष्ट्रव्यापी होता है। दिल्ली सरकार की संवैधानिक शक्तियां भले ही सीमित है, मगर राष्ट्रीय मीडिया के केन्द्र में होने के कारण नेताओं की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान शीघ्र बन जाती है। दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी मुख्य दावेदार हैं। इस चुनाव में तीनों पार्टियां ‘करो या मरो’ की स्थिति में है। भारतीय जनता पार्टी 1993 में दिल्ली विधान सभा चुनाव जीती थी, उसके बाद से उसे जीत का इंतजार है। वहीं, 1998, 2003 और 2008 में कांग्रेस दिल्ली विधान सभा चुनाव जीतकर सरकार बनाई थी, जबकि 2013, 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीतकर सरकार बनाई। दिल्ली विधान सभा सीटों के लिहाज से कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं, जबकि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और कांग्रेस की वोट प्रतिशत बढ़ी थी, अब देखना होगा कि कांग्रेस विधान सभा चुनाव में वोट प्रतिशत को बनाये रख पाती है या नहीं। वहीं आम आदमी पार्टी के लिए चौथी बार जीत दर्ज करना बेहद ही आम आदमी पार्टी के लिए अहम चुनाव है। भारतीय जनता पार्टी के लिए भी वोट प्रतिशत के आधार पर यह चुनाव अहम है।दिल्ली विधान सभा में कांग्रेस मजबूती से अपनी पैर जमाने की हर कोशिश कर रही है वहीं,आम आदमी पार्टी बेहतर सेवाओं और नए दांव के भरोसे चौथी बार जीत दर्ज करने की कोशिश में है। भारतीय जनता पार्टी दिल्ली दंगा, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व का एजेंडा, बदहाल सड़कें, किसानों की उपेक्षा, स्कूल और अस्पतालों की बदहाली का मुद्दा तथा नरेन्द्र मोदी की गारंटी पर भरोसा के मुद्दे पर आक्रामक रहेगी।दिल्ली विधान सभा चुनाव में चुनावी मुद्दे सभी राजनीतिक पार्टियों को परेशान करेगी। आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के मुद्दे, मनी लॉन्ड्रिंग और शराब घोटाला, अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके आवास का रेनोवेशन शीशमहल का मुद्दा, यमुना में गंदगी, यमुना नदी की सफाई नहीं होना, दिल्ली में कचरे के पहाड़ होना और अरविंद केजरीवाल पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी घेर रही है। वहीं कांग्रेस अपने पुराने काम को और शीला दीक्षित सरकार के समय हुए कार्यों को याद दिला कर अपने परंपरागत मतदाताओं की वापसी की कोशिश कर रही है, ताकि लोक सभा चुनाव में बढ़े वोट प्रतिशत विधान सभा में बरकरार रहे।आम आदमी पार्टी महिलाओं के लिए “महिला सम्मान योजना” का वादा, पुजारियों और ग्रंथियों को “18 हजार रुपए प्रति माह सम्मान” का वादा कर रही है और स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के भरोसे चुनाव जीतना चाह रही है। वहीं भारतीय जनता पार्टी “लाडली बहना”, दिल्ली दंगे के साथ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के एजेंडे पर जीत दर्ज कराना चाह रही है।चुनावों की दस्तक के साथ ही राजनीतिक पार्टियां अपनी प्रचार अभियान को धार देना शुरू कर दिया है। चुनावी घोषणा पत्र और अभियान यह तय करेगा कि भारतीय जनता पार्टी की लाडली बहना की उम्मीदें महिलाओं के बीच कितनी मजबूती से पैठ बना पाती हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी की मौजूदा योजनाओं की प्रभावशीलता और उनका क्रियान्वयन कितना कारगर होता है। अब देखना होगा कि चुनावी माहौल में महिलाओं के लिए योजनाएं केवल वादे तो नहीं हैं। कौन-सी पार्टी महिलाओं की उम्मीदों पर खरा उतरती है और दिल्ली की सत्ता पर काबिज होती है। देश की नजर अब दिल्ली की मतदाताओं पर होगी। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए आम आदमी पार्टी का चौका लगता है या भाजपा को मौका मिलता है या फिर कांग्रेस की वापसी होती है। यह सब पता चलेगा 5 फरवरी को मतदान होने और 8 फरवरी को नतीजे घोषित होने पर।
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