जितेन्द्र कुमार सिन्हा, 22 जनवरी, 2025 ::45 दिनों तक चलती है महाकुंभ मेला, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और रहस्यमयी सरस्वती के पवित्र संगम पर स्नान करते हैं। महाकुम्भ में 13 जनवरी को मुख्य स्नान और 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति स्नान हो चुका है। अब 29 जनवरी को मौनी अमावस्या स्नान, 03 फरवरी को बसंत पंचमी स्नान, 12 फरवरी को महाशिवरात्रि स्नान और अंतिम स्नान के 26 फरवरी को माघी पूर्णिमा स्नान होगी।
कुंभ नगर 4000 हेक्टेयर में बनाया गया है और इसे 25 सेक्टरों में बांटा गया है, डेढ़ लाख से अधिक टेंट बनाया गया है, 44 घाटों पर श्रद्धालुओं के स्नान की व्यवस्था है, जो 12 किलोमीटर लंबाई में फैली हुई है। गाड़ी पार्किंग की व्यवस्था 102 स्थानों पर किया गया हैं, जिनमें लगभग साढ़े पांच लाख गाड़ियां खड़ी हो सकती हैं।
मुख्य रूप से कुंभ समागन में तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं। इस मेला में सभी धर्मों के लोग बिना जात पात, ऊंच नीच की भावना से विरक्त होकर शामिल होते हैं। महाकुंभ का दृश्य विहंगम दिखता है। मीलों तक भगवा वस्त्रों में लिपटे साधु-संतों की कतारें, उनके द्वारा मंत्रोच्चार करते, जहां तक नजरें देख घुमती हैं, वहां तक फैला जन सैलाब, यह एक ऐसा दृश्य होता है, जो कुंभ के अलावा कहीं नहीं देखने को मिलता है।संगम स्नान करने के बाद वापस आ रहे लोगों के हुजूम (महाकुंभ के दृश्य) पूरे देश को आह्लादित कर रहा हैं। सूत्रों के माने तो बुधादित्य महायोग के दिन 13 जनवरी को श्रद्धालुओं के संगम स्नान करने का आंकड़ा एक करोड़, पचहत्तर लाख रहा था, तो वहीं 14 जनवरी का लगभग साढ़े तीन करोड़ बताया जा रहा है। मोटा-मोटी आकलन किया गया है कि लगभग 40 करोड़ लोग देश-विदेश से प्रयागराज महाकुंभ में पहुंचेंगे।उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुम्भ मेला 13 जनवरी से शुरू है और 26 फरवरी तक चलेगा। यह मेला गंगा नदी, यमुना नदी और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम पर लगता है।हिन्दू धर्म में कुम्भ मेला एक धार्मिक आस्था का तीर्थ यात्रा है, जो 12 वर्ष के दौरान चार बार और चार पवित्र स्थलों पर लगती है। पहला हरिद्वार, उतराखंड में गंगा नदी के तट पर, दूसरा उज्जैन, मध्यप्रदेश में शिप्रा नदी के तट पर, तीसरा नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के तट पर और चौथा प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में, गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर। कुम्भ का शाब्दिक अर्थ घड़ा-कलश- सुराही या वर्तन से होता है और मेला से एक साथ मिलने या चलने का बोध होता है। कुम्भ की उत्पत्ति के संबंध में मान्यता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान अमरता को प्रदान करने वाला अमृत कलश समुद्र से निकला था और कलश के लिए देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। अमृत कलश को अधिक शक्तिशाली असुरों से बचाने के लिए इसकी सुरक्षा की जबाबदेही चार देवताओं यथा बृहस्पति, शनि, सूर्य और चन्द्र को सौंपी गई थी। चारों देवता असुरों से अमृत कलश को बचाकर भागे और असुरों ने देवताओं का पीछा 12 दिन और रात तक किया। पीछा करने के दौरान देवताओं ने अमृत कलश को चार जगह हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में रखा था, जहाँ कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी थी। इसलिए इन चारो स्थान पर हर 12 वर्ष पर कुंभ मेला लगता है।
भारत में अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है। अर्ध कुंभ छह साल में, पूर्ण कुंभ बारह साल में तथा महाकुंभ बारह पूर्ण कुंभ मेलों के बाद, अर्थात हर 144 साल वर्षों में एक बार आयोजित होता है। यह महाकुंभ का संयोग तब बनता है, जब वृहस्पति और सूर्य कुंभ राशि में होते हैं और इसके साथ चंद्रमा भी उसी राशि में अवस्थित होते हैं।कुंभ मेला कई शताब्दियों से मनाया जा रहा है। प्रयागराज कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख वर्ष 1600 ई. में मिलता है और अन्य स्थानों पर, कुंभ मेला 14वीं शताब्दी की शुरूआत में आयोजित किया गया था। कुंभ मेला में साधुओं के शाही स्नान के बाद ही नदी में कोई अन्य लोग स्नान करते हैं। हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार कुंभ मेला एक धार्मिक महाआयोजन है। कुंभ मेले के दौरान हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस निकलती है। सनातन धर्म में 13 तरह के अखाड़े होते हैं (1) निरंजनी अखाड़ा, (2) जूना अखाड़ा, (3) महानिर्माण अखाड़ा, (4) अटल अखाड़ा, (5) आह्वान अखाड़ा, (6) आनंद अखाड़ा, (7) पंचाग्नि अखाड़ा, (8) नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, (9) वैष्णव अखाड़ा, (10) उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, (11) उदासीन नया अखाड़ा, (12) निर्मल पंचायती अखाड़ा, (13) निर्मोही अखाड़ा। सूत्रों के अनुसार, यह सभी अखाड़े उदासीन, शैव और वैष्णव पंथ के संन्यासियों के लिए हैं। इनमें से 7 अखाड़ों का संबंध शैव सन्यासी संप्रदाय से है और 3 अखाड़े बैरागी वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं। त्रिवेणी मार्ग पर पीपा पुल पार करते ही अखाड़ा क्षेत्र शुरू हो जाता है।महाकुंभ के साधु-संतों को अखाड़े के नाम से जाना जाता है। साधु संतों के इन अखाड़ों को हिन्दू धर्म में धार्मिकता और साधना का प्रतीक माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए साधुओं के लिए कई संगठन बनाए थे। इन संगठनों को अखाड़े के नाम से जाना जाता है।मान्यता है कि कुंभ मेला के दौरान इन स्थलों पर स्नान करने से, मनुष्य के सभी पाप कर्मों और किए गए बुराईयों का नाश हो जाता है और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी मान्यता है कि इस समय (कुंभ के समय) गंगा का पानी सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है। भगवा की बहुतायत, लहराती ध्वजाएं, पताकाएं और अपने अपने विशिष्ट वेशभूषा में साधु-संत, देशी-विदेशी श्रद्धालुओं का ने विहंगम दृश्य देखते बन रहा है। लगातार बजते घड़ी-घंटाल, शंखों की गूंजती ध्वनि, मंत्रोच्चार, 24 घंटे पवित्र गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम में स्नान करते असंख्य लोग, यज्ञशालाओं से निकलती हवन कुंड की अग्नि, भजन-कीर्तन के साथ प्रवचनों और हेलीकॉप्टरों द्वारा पुष्प वर्षों से वातावरण भक्तिमय दिखता है।कुंभ स्नान की डुबकी लगाते ही यह महसूस होता है कि शरीर हल्का हो गया है और लगता है शरीर का सैकड़ों मन का बोझ डुबकी लगाते ही पानी में बह गया। स्नानोपरांत मन और शरीर एक आलौकिक किस्म की दिव्य ऊर्जा से लगता है की भर गया।महाकुंभ मेला के संबंध में मान्यता है कि ज्योतिषिय और खगोलीय घटनाओं के अनुसार महाकुंभ मेला आयोजित होता है और इस बार 144 वर्ष के बाद यह मेला आयोजित हुआ है। यह भी मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से मनुष्य को कई गुना अधिक पुण्य की प्राप्ति होता है और मोक्ष प्राप्ति का का भी अवसर मिलता है। ————————————