सांस्कृतिक संस्था “प्रांगण” द्वारा प्रेमचंद रंगशाला, पटना में दिनांक 2 से 6 फ़रवरी, 2025 तक 39वाँ पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। ये महोत्सव संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार तथा उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा प्रायोजित है।
आज दिनांक 4 फ़रवरी को नुक्कड़ मंच पर मंथन कला परिषद, खगौल द्वारा प्रमोद कुमार त्रिपाठी के निर्देशन में श्रीकांत लिखित नाटक कुत्तें तथा नाद, पटना द्वारा मो जानी के निर्देशन में सौरभ सफारी लिखित नाटक “टू थ्री जा एट” की प्रस्तुति हुई।
मुख्य मंच पर गोबरडांगा नक्शा द्वारा आशीष दास के निर्देशन में भीष्म साहनी लिखित कबीरा खड़ा बाज़ार में का मंचन सायं 7 बजे से हुआ।
नाटक बांग्ला भाषा में था, जिसका अनुबाद भूमिसुता दास व दीपान्विता बनिक दास ने किया।
कथासार
नाटक ‘कबीरा खड़ा बाजार में मध्यकालीन धार्मिक सुधारक संतकवि कबीर के जीवन और दर्शन पर केंद्रित है। वे हिंदू और मुस्लिम धर्म के रूढ़िवादी अंध विश्वासों और कहर धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ संघर्ष करते हैं। संत कबीर ने विशेष रूप से निम्न वर्ग के लोगों को गहरे, तार्किक धार्मिक सिद्धांत और शाश्वत सत्य के माध्यम से वास्तविक मार्ग पर लाने का सन्देश दिया। उन्होंने दोहा और गीतों के माध्यम से उनके दिलों को आसानी से छू लिया। लोग उनके प्रति समर्पित हुए और उनके प्रशंसक बन गये। उनकी शिक्षा का अनुसरण करने लगे। दोनों धर्मी के आध्यात्मिक मार्गदर्शको और राज्य सत्ता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उन्हें प्रताड़ित किया जाने लगा और इस क्रम में उन्हें घोर संकटों का सामना करना पड़ा। फिर भी कबीर एक निरंजन तत्व (एक निराकार सिद्धांत) पर अटल रहे। उनका नश्वर शरीर इस धरती की हवा, पानी और मिट्टी में घुल-मिल गया, लेकिन उनके अमर शब्द और उनके दोहे पूरी दुनिया में फैल गए। रामानंद के उत्तराधिकारी संत कबीर अंधकारमय माध्य युग से 21वीं सदी की आधुनिक दुनिया में आसानी से चले आये जहाँ धर्म, जाति और पंथ पर आधारित समाज अभी भी मौजूद हैं। इस धार्मिक उथल-पुथल के बीच जितने कबीर प्रासंगिक है उतने ही यह नाटक भी।
मंत्र पर
कबीर/सूत्रधार/नागरिक 1/ कायस्थ : दीपान्यिता बनिक दास,
कबीर / सूत्रधार 2 भूमिसुता दारा
नूरा (कबीर के पिता)/शेख/भक्त/सिपाही : इलियास कंचन नीमा (कबीर की माँ) : जल्ली सरकार /अल्पना दास, कोतवाल /ग्रामवासी : स्वरूप देवनाथ,
महंत/साधु/बुद्धिजीवी : किरण सत्र
अन्धा भिखारी : हिरन साहा,
माँ (अंधा भिखारी) : मनिदीपा सेन,
नागरिक-2 : बाग्रेन रधिन मुखजी
नागरिक-३/सिकंदर : रामप्रसाद पॉल,
मुल्ला/सिपाही : मिटू विश्वास, सैनिक : सौमिता रॉय,
पीपा : रीना खातून,
रैदास : रूद्र दास,
करमदीन/बशीर : अनिल मंडल, भक्त/लोई (कबीर की पत्नी) : समानी चक्रवर्ती,
भक्त : रीना पील,
भक्त देबानी : मित्रा बटर्जी
चोबदार/भक्त: जगदेव दास, भक्त (हारमोनियम वादक) रिद्धि देवनाथ, भक्त सौम्यजीत दारा, भक्त (दोतारा वादक) रमेद्र नाथ रॉय
नेपथ्यसहायक निदेशक : दीपान्विता बनिक दास और भूमिसुता दास सुलेख नीलाय बट्टोपाध्याय, संगीतः मणिदीपा सेन, कोरियोग्राफीः सेनजुति सेन, प्रकाश परिकल्पना : संजय नाथ गोविंदा हरि/धनपति मंडल, प्रकाश सहायक : देचनी मित्रा चटर्जी / रीना खातून/सौम्यजीत दास/सौमिता रॉय, सामग्री : स्वरूप देबनाथ / जयदेव दास,
प्रस्तुति नियंत्रक : नीलादि शेखर कांजीलाल,
विशेष आभार : डॉ. कल्पना साहनी, डॉ. वरुण साहनी व भीष्म साहनी ट्रस्ट।मुख्य मंच पर दूसरी प्रस्तुति रंगमंच थियेटर ग्रुप, राजौरी द्वारा विशाल पहाड़ी निर्देशित “बड़े भाई साहब” जो प्रेमचन्द की कहानी का नाट्य रूपांतरण है।कथासार
अमर कथाकार प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘बड़े भाई साहब’ बहुपठित और बहुचर्चित हिन्दी कहानी है। पारिवारिक संस्कार, बड़े-छोटे के लिहाज, आपसी सम्बन्ध बन्ध तथा आदर-सम्मान की वकालत करने वाली यह कहानी दो भाइयों के बीच के आपसी रिश्ते और उधेड़बुन की परतें बेहद सहजता से खोलता है। एक उम्र के बाद हर युवा जिस तरह खुद को सर्व-ज्ञानी और अनुभवी समझने की भूल करने लगता है, अपने से बड़ों का अनादर करने लगता है, हर बड़ा और अनुभवी उरो दुश्मन की तरह लगने लगता है और इस क्रम में वह कई बार जाने-अनजाने अनसुना करने की मूल करने लगता है। यह कहानी उन और ऐसी तमाम बातों को बड़ी ही सहजता और कुशलता के साथ अपनी सम्पूर्ण सादगी संग प्रस्तुत करता है। ऐसी हर या किसी भी मूल का परिणाम जो अप्रत्याशित और अकल्पनीय रूप में सम्मुख आता है. तब जाकर कहीं अपनी भूल का अहसास हो पाता है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है। जो नुकसान होना होता है, हो चुका होता है- अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत की तर्ज पर। मानवीय मूल्य और गरिमा की स्थापना के सन्दर्भ में यह कहानी आज भी जरूरी और इसलिए बेहद प्रासंगिक और समसामयिक है।
मंच पर
अमित सिंह बडवाल और विक्रान्त वर्मा
नेपथ्य संगीत व प्रकाश परिकल्पना : विशाल पहाड़ी