राजगीर, २९ मार्च। ‘छंद’ काव्य-साहित्य का प्राण है। इससे कविताएँ आयुष्मती होती हैं। हमारे वेद, पुराण, उपनिषद आदि इसीलिए बचे रह गए कि वे सबके सब छंदों में आबद्ध हैं। छंद कविताओं को गेय और स्मरणीय ही नहीं बनातालम्बी आयु भी प्रदान करता है।
यह बातें शनिवार को, सृजन-धर्मियों की चर्चित संस्था ‘छंदशाला’, पटना के तत्त्वावधान में राजगीर स्थित श्री कृष्ण पैलेस होटेल के सभागार में आहूत दो दिवसीय कवि-सम्मेलन-सह- साहित्योत्सव का उद्घाटन करते हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि छंद के कारण ही, रामायण, महाभारत, रामचरित मानस जैसी कृतियाँ कालजयी सिद्ध हुईं और सुर, तुलसी, कबीर, रहीम, रसखान और विद्यापति अमर हो गए। यदि हिन्दी के कवियों और कवयित्रियों को लम्बी आयु चाहिए तो उन्हें छंद की साधना करनी चाहिए और शब्द की भी। तभी कोई साहित्य का साधक कहा जा सकता है।
डा सुलभ ने कहा कि केवल और केवल साहित्य ही समाज को बदल सकता है, उसे सकारात्मक दिशा दे सकता है। कविता पीड़ितों की आँखों के आँसू ही नहीं पोंछती, नवजीवन और नवल उत्साह भी प्रदान करती है। वह व्यक्ति को नयी ऊर्जा से भर कर जीवन-संघर्ष में उतरने की प्रेरणा देती है।
इस अवसर पर डा सुलभ ने छंद:शाला द्वारा प्रकाशित देशभर के दोहाकारों के संकलन ‘नौरंगी दोहे’ तथा डा धनंजय शरण सिंह की पुस्तक ‘तिमिर भाता किसे?’ का लोकार्पण भी किया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, छंदशाला के अध्यक्ष और सुप्रसिद्ध कवि आचार्य विजय गुंजन ने कहा कि छांदस परंपरा को सुदृढ़ करने के लिए एवं छंद-धारा के कवियों को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए उनकी संस्था ने ‘ऋषि पिंगल काव्य-साधना पुरस्कार एवं ‘माँ मीरा काव्य-साधना पुरस्कार की योजना आरंभ की है। संस्था की ओर से त्रैमासिक काव्य-गोष्ठी एवं वार्षिकोत्सव के आयोजन किए जा रहे हैं।
सुप्रसिद्ध कवि कुमार कान्त की अध्यक्षता में आयोजित उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि और वरिष्ठ कवि राश दादा राश, मंत्रिमंडल सचिवालय राजभाषा के उपनिदेशक डा ओम् प्रकाश वर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
उद्घाटन समारोह के पश्चात कवि-सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें ९२ वर्षीय वयोवृद्ध कवि श्याम बिहारी प्रभाकर, सुप्रसिद्ध कवयित्री आराधना प्रसाद, डा मनोरमा सिंह ‘अंशु’ (उत्तर प्रदेश), डा किरण सिंह (गोंडा), स्वरूप दिनकर (आगरा), डा सुमन लता (औरंगाबाद), धनंजय शरण सिंह, प्रो सुधा सिन्हा, ऋचा वर्मा, डा रंजना लता, नीता केसरी, अनिल कुमार झा, डा सुधा सिन्हा, सुनील कुमार, अनिता मिश्र ‘सिद्धि’, एम के मधु, डा मीना कुमारी परिहार, शिव कुमार सिंह सुमन, राज प्रिया रानी, हरि नारायण सिंह ‘हरि’, डा सुनंदा केसरी, राजेंद्र राज, ईं बाँके बिहारी साव, डा कुंदन सिंह ‘लोहानी’ आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी छंदोबद्ध सुरीली रचनाओं से श्रोताओं का दिल जीत लिया।
मंच का संचालन कवयित्री डा अभिलाषा सिंह ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन संस्था के प्रचार मंत्री उमेश सिंह ने किया।