नालंदा – ‘दुर्लभ मनुष्य जनम है देह न बारंबार, तरुवर ज्यौं पत्ता झरे, बहुरि न लागे डार।।’ मानव धर्म के सच्चे उपासक और भक्तिकाल के महान कवि संत कबीरदास की 621 वीं जयंती कवियों व साहित्यकारों ने नालंदा की साहित्यिक भूमि श्री हिंदी पुस्तकालय सोहसराय के सभागार में मनाई। जिसकी अध्यक्षता साहित्यकार हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने तथा संचालन पुस्तकालयाध्यक्ष संजय कुमार पाण्डेय ने किया।
कबीर सच्चे अर्थों में मध्यकालीन भारत के स्वाधीन चित्त महापुरुष थे : लक्ष्मीकांत सिंह।
मौके पर समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने सम्बोधन में कबीर के दोहों के जरिए बताया कि वह मानते थे कि मनुष्य का जीवन अत्यंत दुर्लभ और महत्वपूर्ण है। जैसे “पत्ता टूटा डाल से ले गयो पवन उड़ाय, अबके बिछड़े फिर कब मिलेंगे दूर परे है जाये” यानि पेड़ से गिरने के बाद पत्ते को दोबारा नहीं लगाया जा सकता वैसे ही मनुष्य जीवन दोबारा पाना अत्यंत कठिन है। इसलिए सारा जीवन शुभ कार्यों में लगा देना चाहिए।
‘हिन्दू कहूं तो मैं नहीं, मुसलमान भी नांहि। पांच तत्व का पुतला, गैबी खेले माहिं।।’ यानि व्यक्ति न हिन्दू है न मुसलमान। पांच तत्वों से बना शरीर एक दिन उसी में मिल जाएगा। यह कहकर संतकबीर ने साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया तो ‘मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा। तेरा तुझको सौंपता, क्या लागे है मेरा।।’ कहकर उन्होंने सबकुछ ईश्वर को समर्पित कर दिया। कबीर सच्चे अर्थों में मध्यकालीन भारत के स्वाधीन चित्त महापुरुष थे।
कबीर के उपदेश आज भी प्रासंगिक है : राकेश बिहारी शर्मा।
संत सम्राट कबीर का विचार एवं उपदेश वर्तमान समय में भी पूरी तरह प्रासंगिक है। संत सम्राट कबीर के बताए मार्गों एवं उपदेशों को अपनाने से सामाजिक एवं सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में बल मिलेगी। संत सम्राट कबीर के उपदेश अपनाने से सांप्रदायिक विभेद, जातीय संकीर्णता, आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार, हीन भावना, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा समेत सामाजिक कुरीतियों का खात्मा भी संभव है। उक्त बातें समाजसेवी साहित्यानुरागी राकेश बिहारी शर्मा ने कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने संत सम्राट कबीर के उपदेश की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि- दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार। पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात। एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात। नवजागरण से लेकर भक्ति आंदोलन तक और दलित आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन तक कबीर एक प्रेरणापुंज की तरह विद्यमान हैं तथा नई तरह से सोचने, लिखने, बोलने व लड़ने वाले हर एक मनुष्य को प्रेरित प्रभावित करते हैं। उन्होंने कहा कि संत कबीर के अलावा महात्मा गांधी, डॉ भीमराव अंबेडकर, दीन दयाल उपाध्याय के साथ-साथ अन्य महापुरुषों ने देश में समरसता, सरलता और ऊंच-नीच व भेदभाव को दूर करने में चेतना जगाने का काम किया। कबीर समाज सुधारक ही नहीं बल्कि एक महान क्रांतिकारी कवि थे। वे समाज में सिर्फ सुधार ही नहीं बल्कि अमूल-चूल परिवर्तन लाना चाहते थे। कबीर की विचार परंपरा किसी एक धर्म, बोली, भाषा, घराने, प्रदेश व देश तक सीमित नहीं।
अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रसिद्ध साहित्यकार हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने कबीर को साधना के क्षेत्र में युग-युग का गुरु बताया और कहा कि कबीर ने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर साहित्य क्षेत्र में नवनिर्माण किया। कबीर हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के इकलौते ऐसे कवि हैं जो आजीवन समाज में व्याप्त आडम्बरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्मप्रधान समाज के पैरोकार थे। उनकी रचनाओं में इसकी झलक साफ दिखती है। भारतीयों की रूढ़ीवादिता एवं आडंबरों पर करारी चोट करने वाले महात्मा कबीर की वाणी आज भी घर-घर में गूंजती है। वे निगुर्ण ब्रह्म के उपासक थे।
मगही कवि व साहित्यकार उमेश प्रसाद ‘उमेश’ ने कबीर के भजन “मन लागा मेरो यार फकीरी में,पर्वत बांस मंगाव मेरे बाबुल,तापर मढ़वा छडाव रे।“ को गाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया, तो उनके साथ मंच साझा कर रहे लोकगायक राकेश भारती ने कबीर के भजन और निर्गुण “भंवरवा के तोहरा संग जाई, राम नाम रस भीनी चदरिया झीनी रे झीनी।” गाकर समां बांधा। लोग कबीर के भक्ति गीतों, भजनों पर झूमते रहे और धर्म-अध्यात्म की दुनिया में खो गए।
मगही कवि व साहित्यकार उमेश प्रसाद ‘उमेश’ ने अपने उद्बोधन में कहा कि कबीर ने भारतीय समाज को दकियानूसी सोच व उंच-नीच की भावनाओं से बाहर निकाला। उन्होंने कहा कि संत कबीर दास एक जन के नहीं बल्कि सामान्यजन के थे और उनकी वाणी गरीबों, पीडितों के साथ-साथ समाज के कमजोर वर्गां के उत्थान के लिए थी।
इस मौके पर नालंदा के कोने-कोने से साहित्यकार और कवि जुटे थे। मानव कल्याण, मिल-जुल कर जीने और अंधविश्वासों से दूर रहने जैसी कबीर की शिक्षाओं को सुनने शहर के मोहल्लों से अच्छी संख्या में साहित्यप्रेमी भी जुटे थे।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन साहित्यानुरागी राकेश बिहारी शर्मा ने किया।
मौके पर साहित्यप्रेमी डौली कुमारी, धीरज कुमार, कवि राजेन्द्र सिंह, कवयित्री साधना प्रियदर्शी, कवयित्री प्रतिमा सिंह, मनीष कुमार, राजीव कुमार सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
डी.एस.पी. सिंह