गुजरात काडर के बर्ख़ास्त आईपीएस अफ़सर संजीव भट्ट को स्थानीय कोर्ट ने 30 साल पुराने एक मामले में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है.
क़रीब आठ महीने से वो जेल में बंद हैं. उन्हें नार्कोटिक्स के एक मामले में पैसा उगाही के आरोप में बीते सितम्बर में गिरफ़्तार किया गया था.
संजीव भट्ट वही अफ़सर हैं, जिन्होंने 2002 में हुए गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे.
उन्होंने कहा था कि दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) पर उन्हें भरोसा नहीं है.
नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ काफ़ी मुखर रहने वाले संजीव भट्ट ने मार्च 2011 में कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर तत्कालीन मुख्यमंत्री पर गंभीर आरोप लगाए थे.
उन्होंने दावा किया था कि ‘गोधरा कांड के बाद 27 फरवरी, 2002 की शाम मुख्यमंत्री के आवास पर हुई एक सुरक्षा बैठक में वे मौजूद थे. इसमें मोदी ने कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों से कहा था कि हिंदुओं को अपना ग़ुस्सा उतारने का मौका दिया जाना चाहिए.’
मोदी सरकार का कहना है कि इस बात के सबूत नहीं हैं कि संजीव भट्ट इस बैठक में मौजूद थे.
माना जाता है कि मोदी सरकार और संजीव भट्ट के बीच संबंध इस हलफ़नामे के बाद और तल्ख़ हो गए.
बाद में संजीव भट्ट को बगैर अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में 2011 में निलंबित कर दिया गया.
उस दौरान भट्ट की गिरफ़्तारी भी की गई और तब उनके परिवार ने उनकी जान की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी और पुलिस के आला अधिकारियों को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई थी.
30 सितम्बर 2011 को संजीव भट्ट को उनके घर से गिरफ़्तार किया गया था.
ये गिरफ़्तारी उनके मातहत काम कर चुके एक कॉन्सटेबल केडी पंत की ओर से दर्ज पुलिस रिपोर्ट के आधार पर की गई है. इस रिपोर्ट में संजीव भट्ट पर आरोप लगाए गए थे कि उन्होंने दबाव डालकर मोदी के ख़िलाफ़ हलफ़नामा दायर करवाया.
उनकी पत्नी श्वेता भट्ट ने उस समय आरोप लगाया था कि “संजीव के ख़िलाफ़ घाटलोदिया पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया और इसके बाद उन्हें क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया, जिसे एनकाउंटर विशेषज्ञ माना जाता है, मैं उन पर भरोसा नहीं कर सकती. मुझे उनकी जान की चिंता है.”
गिरफ़्तारी के मामले में श्वेता भट्ट ने कहा कि, “35-40 पुलिसकर्मियों ने बिना किसी सूचना के हमारे घर की दो घंटों से अधिक समय तलाशी लेते रहे. वे संजीव को अपने साथ ले गए और तब से उनसे हमारा कोई संपर्क नहीं है.”
कौश्लेन्द्र पाण्डेय
संपादक .