– राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज ने दलितों व पिछड़ों को जीने की राह दिखाई।
नालंदा से डीएसपी सिंह।
नालन्दा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ के बबुरबन्ना मोहल्ले में बिहारी निवास स्थित सभागार में देश के लोकप्रिय सामाजिक क्रांति के अग्रदूत आरक्षण के जनक कोल्हापुर नरेश राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज की 145 वीं जयंती साहित्यकार उमेश प्रसाद ‘उमेश’ की अध्यक्षता में बुधबार को श्रद्धांजलि एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
अध्यक्षीय सम्बोधन में साहित्यकार मगही कवि उमेश प्रसाद ‘उमेश’ ने शाहूजी महाराज की सम्पूर्ण जीवन वृत्त को समूचे समाज के लिये प्रेरणादायी बताते हुये कहा कि उन्होंने विधवा विवाह, बालिका शिक्षा जैसे क्षेत्रों में उस वक्त अभूतपूर्व कार्य किये जब लीक और स्थापित परम्पराओं से हट कर जाने की कोई सोच भी नहीं सकता था। वे एक महान समाज सुधारक के रूप में हमेशा याद किये जाते रहेंगे।
मौके पर समाजसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज दूरदर्शी राजा थे जिन्होंने शिक्षा पर जोर दिया। 1912 में छत्रपति शाहूजी महाराज ने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा को प्रारम्भ किया था। विद्यालय में दाखिला न दिलाने वाले माता-पिता पर शाहूजी महाराज ने जुर्माना भी रखा था। उनका मानना था कि ‘बच्चें माँ-बाप के हैं पर प्रजा हमारी है। शाहूजी ने वंचित लोगों के उत्थान के लिए आरक्षण को जरूरी बताया था। उन्होंने कहा कि छत्रपति शाहूजी महाराज के पास विकास और समन्वय की दृष्टि थी। छत्रपति शाहूजी महाराज दूरदर्शी राजा थे जिन्होंने शिक्षा पर जोर दिया। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा कि बीसवीं सदी के प्रथम दो दशकों में छत्रपति शाहू जी महाराज ने समाज के सभी जाति, धर्म के छात्रों की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध करने हेतु बीस छात्रावासों की स्थापना की। इनमें जैन, मुस्लिम, ईसाई, लिंगायत धर्मीय छात्रावास जैसे थे, वैसे मराठा, सुनार, बढ़ई, दर्जी, ब्राह्मण, दलित, नाई, क्षत्रिय आदि जाति के थे जिसके कारण विभिन्न धर्म एवं जातियों के छात्रों में आपसी सद्भाव बढ़ा। उन्होंने कहा कि छत्रपति शाहू जी महाराज ने यह कानून आज से लगभग 120 वर्ष पूर्व लागू कर अपनी धार्मिक आस्था का परिचय दिया था। सभी धर्मों के प्रति हमदर्दी जताने वाले राजर्षि शाहू जी महाराज ने मुस्लिमों की मस्जिदों, ईसाईयों को तथा कब्रिस्तान के लिए जगह मुहिया कराई। 26 जुलाई, 1902 में उन्होंने अपनी रियासत में नौकरी में 50 प्रतिशत आरक्षण दलितों के लिए रखकर एक सामाजिक क्रांति का नया पर्व आरंभ किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि शाहूजी महाराज आरक्षण के जनक हैं, उन्होंने राजतंत्र व्यवस्था के बीच समाज के उपेक्षित और दबे कुचले लोगों के उत्थान के लिये आरक्षण व्यवस्था लागू की थी। शाहूजी महाराज का मानना था कि समाज के कमजोर वर्ग तथा पिछड़े समुदाय को अगर सम्मान का जीवन जीना है तो शिक्षा पर जोर देना होगा। शाहूजी महाराज ने दलित शोषित और पिछड़ों को न्याय दिलाने के लिये ऐसे उल्लेखनीय कार्य किये जिनको हमेशा याद किया जाता रहेगा। इसके अलावा उन्होंने बालिका शिक्षा पर खासा जोर दिया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि राजनैतिक रूप से समर्थ हुये बिना कोइ भी समाज तरक्की नहीं कर सकता है लिहाजा हमें इतना जागरूक होने की जरूरत है कि सत्ता शीर्ष तक कमजोर समाज की पहुंच सुनिश्चित हो सके इसलिए सभी को शिक्षित होना बहुत जरूरी है। साहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक ‘सत्य शोधक समाज’, फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे।
नालन्दा के मशहूर चित्रकार राहुल आनंद ने कहा कि दलितों और पिछड़ों की बात करे तो बाबा साहब के बाद सबसे ज्यादा तथा आदर सम्मान से छत्रपति शाहूजी महाराज का नाम लिया जाता है। शाहूजी महाराज ने दलितों और पिछड़ों को जीने की राह दिखाई तथा उनकी प्रेरणा से ही कमजोर वर्ग आगे बढ़ रहा है। शाहूजी महाराज कुशल शासक और युगदृष्टा थे जिन्होंने सामाजिक न्याय को स्थापित करने और जातीय भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया। वे अंतिम व्यक्ति का दर्द महसूस करते थे।
कवि राजीव कुमार ने कहा कि आज शाहू जी महाराज के विचारों को अपनाने की जरूरत है। छत्रपति शाहू जी महाराज सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई। शाहूजी ने केवल आरक्षण का पक्ष ही नहीं लिया बल्कि उन्होंने किसानों, मजदूरों और महिलाओं के उत्थान के लिए विशेष कार्य किया।
छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी।
इस दौरान सविता बिहारी, फिल्मकार एसके अमृत, विक्रम कुमार, शिवालक पासवान, डॉक्टर पारस नाथ, मोहम्मद ज्ञासुद्दीन,धीरज कुमार,शौरभ कुमार, नीरज कुमार, दीपक कुमार, अनिता देवी, गीता देवी, मंजू देवी, आरती देवी आदि ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शाहूजी महाराज समग्र समाज के मसीहा थे।