किसी ने सही कहा है कि अगर हम किसी का बुरा सोचते हैं या करते हैं तो आपके साथ भी ज़रूर बुरा होता है… अपने हर बुरे कर्मों का फल इंसान को इसी जन्म में चुकाना पड़ता है।
बात एक ऐसे ही कातिल की जिसे सजा इसी जन्म में पूरे 8 साल बाद मिली… हम बात कर रहे हैं साल 2011 में मिली ढाई फुट के बैग में पांच फुट की लाश की दिल दहला देने वाली स्टोरी… नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक लावारिस बैग मिली थी जिसमें लाश था एक लड़की का जिसका नाम नीतू सोलंकी था और जो उस वक्त “टैटू गर्ल’ के नाम से सामने आया था… और तो और दिल्ली पुलिस की टीम पूरे आठ साल तक उस अंजान कातिल को ढूंढती रही और वह कातिल आठ साल तक नाम बदल कर गुरूग्राम में एक ऊंचे बड़े औधे पर नौकरी करता रहा।
यह कोई फिल्म की स्टोरी नहीं एक सच्ची दिल को झकझोर कर रख देने वाली है दास्तान है कि कैसे आठ साल पहले 2011 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर ढाई फुट के एक बैग के अंदर से पांच फुट की एक लड़की की लाश मिली थी। लंबी तफ्तीश के बाद पुलिस को कातिल के बारे में जानकारी मिलती है… पर सिर्फ जानकारी ही मिलती है, कातिल नहीं। कातिल की तलाश में पुलिस कई छोटे-बड़े शहरों में छापे मारती है… यहां तक कि कातिल का पता देने वाले को दो लाख का इनाम देने का भी एलान किया जाता है पर कोई फायदा नहीं होता है। फिर क्या सिर्फ आठ लंबे साल बाद अचानक एक रोज़ खुद कातिल जिसका नाम राजू गहलौत है वह आगे बढ़कर पहली बार फोन करता है।
दरअसल, आठ साल बाद एक दिन.. गहलोत परिवार के पास एक फोन आता है। यह फोन करने वाला अपना नाम राजू गहलौत बताता है। गहलौत परिवार आठ साल बाद राजू की आवाज सुन रहा था क्योंकि आठ साल से राजू गहलौत कभी अपने घर भी नहीं गया था। आठ साल तक कभी उसने अपने घरवालों से फोन तक पर बात नहीं की थी और आठ साल बाद आए इस फोन को सुनते ही पूरा गहलौत परिवार भागता हुआ गुरूग्राम के पारस हास्टिपट पहुंचता है क्योंकि राजू गहलौत ने फोन इसी अस्पताल से किया था जहां, राजू मौत की दहलीज पर खड़ा था और किसी भी पल सांसों की डोर टूटने जा रही थी… पर वो मरने से पहले अपनी मां को देखना चाहता था बस इसीलिए आठ साल बाद उसने अपनी मां को फोन किया था।
इधर, राजू गहलौत को देखने घर वाले अस्पताल पहुंचते हैं. उधर, उसी बीच गहलौत परिवार में से ही एक शख्स दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को फोन करता है और फोन पर राजू के पारस अस्पताल में होने की जानकारी देता है। आठ साल से जिस राजू को दिल्ली पुलिस तलाश रही थी आठ साल बाद उसी राजू की खबर पाते ही पुलिस के खुशी के ठिकाने की बात नहीं होती है। फौरन एक टीम पारस अस्पताल के लिए रवाना होती है और टीम अस्पताल पहुंचती है। दो लाख का इनामी और नीतू का कातिल तब भी अस्पताल में ही मौजूद था मगर पुलिस के आते-आते उसकी सांसों की डोर कट चुकी थी और पुलिस के सामने एक मुर्दा लाश पड़ा था।
कौशलेन्द्र पाराशर
सम्पादक.