नालंदा से डीएसपी सिंह :-नालन्दा जिला मुख्यालय बिहार शरीफ के महात्मा गाँधी पार्क (अनुग्रह नारायण पार्क) में रविवार को 150 वीं जयंती वर्ष को लेकर नालंदा के विभिन्न शिक्षण संस्थानों, गाँव-क़स्बों, मुहल्लों में कस्तूरबा गाँधी और महात्मा गाँधी के संदेश को आज से आमजन के बीच सत्य-अहिंसा, देशभक्ति तथा समाजसेवा को ले जाने के लिए शुरुआत समाजसेवियों ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजसेवी साहित्यकार,मशहूर गजलकार बेनाम गिलानी ने तथा संचालन नालंदा के गांधीवादी विचारक दीपक कुमार ने किया।
जिलाधिकारी नालंदा योगेन्द्र सिंह के अनुरोध पर मानव समाज सेवा सभा के संस्थापक आशुतोष कुमार मानव, गांधीवादी-विचारक दीपक कुमार के सहयोग से बा-बापू की 150 वीं जयंती वर्ष को लेकर नालंदा के विभिन्न शिक्षण संस्थानों, गाँव-क़स्बों, मुहल्लों में कस्तूरबा गाँधी और महात्मा गाँधी के संदेश को लेकर बिहारशरीफ के महात्मा गाँधी पार्क (अनुग्रह नारायण पार्क) में “वर्तमान समय में गाँधी जी की प्रासंगिता” विषय पर परिचर्चा बहुभाषाविद साहित्यकार व समाजसेवी बेनाम गिलानी की अध्यक्षता में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर किया।
बिहारशरीफ के महात्मा गाँधी पार्क (अनुग्रह नारायण पार्क) में आयोजित “वर्तमान समय में गाँधी जी की प्रासंगिता” विषयक परिचर्चा में विशिष्ट अतिथि साहित्यकार डॉक्टर लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि गांधी के विचार 21वीं सदी में भी प्रासंगिक हैं। आवश्यकता है उन्हें धारण करने की। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व गांधी के विचारों से प्रभावित है। महात्मा गांधी के कारण ही हमारे देश में चेतना और संवेदना जागृत हुई थी, जिसने देश की आजादी में महती भूमिका अदा की। गांधी के बाद स्वतंत्र भारत में चेतना और संवेदना के अभाव के चलते अराजकता, भ्रष्टाचार जैसी अव्यवस्थाओं ने पैर जमाने शुरू कर दिए। इनको दूर करने के लिए एक बार फिर हमें गांधी के मूल्यों पर विचार करना होगा।
समाजसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि आज दुनिया के किसी भी देश में शांति मार्च का निकलना हो अथवा अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाना हो, या हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जाना हो, ऐसे सभी अवसरों पर पूरी दुनिया को गांधीजी की याद आज भी आती है और हमेशा आती रहेगी। अत: यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि गांधीजी, उनके विचार, उनके दर्शन तथा उनके सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे और आज भी है। गाँधी जी का मानना था कि देश की अर्थव्यवस्था कुछ पूंजीपतियों के पास गिरवी नहीं होनी चाहिए। उनकी अर्थव्यवस्था के केंद्रबिंदु गांव थे। उनके अनुसार जब तक गांव के युवाओं को गांव में ही रोजगार नहीं मिलता है, तब तक उनमें असंतोष एवं विक्षोभ रहेगा। ग्रामीण बेरोजगारों का शहर की ओर पलायन, जो कि भारत की ज्वलंत समस्या है, का निराकरण सिर्फ कुटीर उद्योग लगाकर ही किया जा सकता है।
समाजसेवी चन्द्र उदय कुमार मुन्ना ने अपने सम्बोधन में कहा कि महात्मा- ये एक ऐसी उपाधि है जो हर किसी को नहीं दी जाती। निश्चित ही मोहनदास करमचंद गाँधी ने अनेकों ऐसे कार्य किये होंगे जिस कारण आज उन्हें महात्मा कह कर याद किया जाता है। सर्वधर्म सम्भाव की जीती जागती तस्वीर समझे जाने वाले गांधी जी मानते थे कि हिंसा की बात चाहे किसी भी स्तर पर क्यों न की जाए, परन्तु वास्तविकता यही है कि हिंसा किसी भी समस्या का सम्पूर्ण एवं स्थायी समाधान कतई नहीं है।
समाजसेवी आशुतोष कुमार मानव तथा समाजसेवी दीपक कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा कि वर्तमान संदर्भों में जब गांधीजी के सिद्धांतों की प्रासंगिकता की बात होती है तो आज चाहे भारत का फैशनेबल युवा हो या किताबी ज्ञान के महारथी आईटी प्रोफेशनल या ग्रामीण बेरोजगार युवा हों, सभी के गांधीजी प्रिय पात्र हैं। ये सभी गांधीजी को अपने से जोड़े बगैर नहीं रह सकते हैं। महात्मा गांधी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक एवं अनुकरणीय हैं जितने अपने वक्त में थे। गांधीजी ने हमेशा से युवाओं को वंचित समूहों के उत्थान के लिए प्रेरित किया है। वो व्यक्तिगत घृणा के हमेशा विरोधी रहे हैं। उनका कथन था- ‘शैतान से प्यार करते हुए शैतानी से घृणा करनी होगी।’ उन्होंने हमेशा युवाओं को आत्मप्रशंसा से बचने को कहा है। उनका कथन है कि जनता की विचारहीन प्रशंसा हमें अहंकार की बीमारी से ग्रसित कर देती है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष बेनाम गिलानी ने कहा कि गांधी के मूल्य भारतीय भूमि और संस्कृति की देन हैं। गांधी ने इन्हीं मूल्यों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया और सोई हुई भारत की जनता को जगाने का प्रयास किया। इसमें वह सफल भी रहे। गांधी का समस्त दर्शन भारतीय संस्कृति पर आधारित है। उन्होंने कहा कि गांधी स्वयं एक दर्शन हैं। गांधी के अहिंसावादी विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
मगही कवि व साहित्यकार उमेश प्रसाद उमेश ने परिचर्चा के दौरान कहा कि महात्मा गांधी एक युग पुरूष थे। उन्होंने जहां एक ओर भारतवासियों में स्वाधीनता की भावना जागृत की वहीं उनके सामाजिक जीवन को भी प्रवाहित किया तथा साहित्यकारों के प्रेरणा स्त्रोत भी बने।
नालंदा के मशहूर चित्रकार राहुल आनंद ने कहा कि गांधी कोई दार्शनिक नहीं थे, वो एक सच्चे विचारक एवं सन्त थे, उनका सारा जीवन कर्ममय था, व्यक्तिगत साधना में उनका विश्वास था। उनके जीवन का लक्ष्य केवल अंग्रेजी सत्ता से छुटकारा दिलाना नहीं था, भारत और सारे विश्व का सत्य और अहिंसा के आदर्शों पर निर्माण करना था। गांधी जी ने पहली बार सत्य, अहिंसा और शत्रु के प्रति प्रेम के आध्यात्मिक और नैतिक सिद्धान्तों का राजनीति के क्षेत्र में इतने विशाल पैमाने पर प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की।
इस मौके पर नालंदा के मशहूर चित्रकार राहुल आनंद, डॉक्टर राकेश शर्मा, धीरज कुमार, अश्विनी कुमार, उपेंद्र कुमार, मुकेश कुमार, मधुसूदन कुमार, सौरभ कुमार, प्रो. अंजनी कुमार सुमन, अमित कुमार सविता, गणेश कुमार गुप्ता, मुकेश कुमार मानव, अरुण सैनी, कुमुद रंजन सिंह समेत दर्जनों लोगों ने कार्यक्रम में भाग लिया।