राज्यभर के माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों की सीटें नहीं भरेंगी। इस बार भी नियोजन इकाइयों को साइंस विषय के शिक्षक ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेंगे। इसका सीधा उदाहरण है कि वर्ष 2011 के बाद सीनियर सेकेंड्री की शिक्षक पात्रता परीक्षा (एसटीईटी) हुई ही नहीं है। यही सीटें खाली रहने की सबसे बड़ी वजह होगी।
उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो सीटें खाली रहने का सबसे बड़ा उदाहरण है कि सरकार की ओर से जब वर्ष 2017 में नियोजन कराया गया था। उस समय भी पटना जिला सहित अन्य जिलों की नियोजन इकाइयों में भी साइंस की सीटें खाली रह गई थीं। पटना जिले की नगर परिषद में साइंस के कई विषयों में नियोजन के लिए आवेदन नहीं के बराबर प्राप्त हुए थे। नगर परिषद में उच्च माध्यमिक में भौतिकी विषय में 92 रिक्तियां निकाली गई थीं, इसमें सिर्फ एक आवेदन प्राप्त हुआ था। वहीं कैमेस्ट्री विषय में 83 रिक्तियां थीं, आवेदन सिर्फ 10, गणित में 90 रिक्तियां, आवेदन सिर्फ 3 प्राप्त हुए थे। वहीं वनस्पति विज्ञान में 18 में सिर्फ 12 आवेदन आये थे। वहीं अंग्रेजी में 83 रिक्तियां थीं, आवेदन 9 प्राप्त हुए थे। इसी तरह से पटना जिले के नगर निगम में भी फिजिक्स में 15 रिक्तियां थीं, आवेदन एक प्राप्त हुआ था।
वर्ष 2011 में साइंस विषय से सफल होने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम थी। वैसे परीक्षार्थी जिसने साइंस विषय में एसटीईटी में सफल हुए थे, पहले ही बहाल हो चुके हैं। वहीं दूसरी ओर सामाजिक विज्ञान विषय में अधिक मारामारी होगी। इन विषयों में ज्यादा सीटें भी नहीं हैं। पास करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या बहुत है। सरकार के नये फैसले से एसटीईटी के सफल छात्रों की दो वर्ष की वैधता बढ़ाई गई है। इसका लाभ भी आर्ट्स विषय वाले परीक्षार्थियों को अधिक मिलेगा।
वहीं इधर देखा जाए तो वर्ष 2011 में एसटीईटी में माध्यमिक में 60 हजार और उच्च माध्यमिक में 21 हजार परीक्षार्थी सफल हुए थे, इनमें उच्च माध्यमिक में 11 हजार और माध्यमिक में लगभग 17 हजार परीक्षार्थियों का नियोजन हुआ था। वर्ष 2017 के बाद नियोजन बंद है। अब देखना है कि सरकार कब एक बार फिर से एसटीईटी की परीक्षा लेती है। छह वर्ष में सिर्फ एक बार एसटीईटी की परीक्षा हो सकी है। इतने अंतराल की वजह से बीएड सफल परीक्षार्थी एसटीईटी का इंतजार कर रहे हैं, ताकि इनकी नियुक्ति हो सके।