हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी आपका स्वागत है! स्वागत है आई हुई बाढ़ का और स्वागत है हर सुबह बिभिन्न अख़बारों के तीसरे पन्ने पर आँकड़ों मे बढ़ती मानव मौतों का. सवाल है की क्या बिहारी सामाजिक मानवीयता की मौत हो चुकी है? क्या मृतप्राय हो चुके हैं हमारे वो संस्थान जिनकी परिकल्पना कर जयप्रकाश ने क्रांति की थी?
बिहार का समाज अपने रोजमर्रा में क्या इतना व्यस्त है की उसे चीत्कार नही सुनते| बड़ा सवाल कि बिहार की स्वयमसेवी संस्थाओं ने अपना जमीर सरकार को गिरवी रख किस जन्म का क़र्ज़ उतार रहे हैं?
कोई हो-हल्ला नही, कोई हंगामा नही| बस चुपचाप इस साल भी काग़ज़ों में चुरा-गुड़ की थैलियाँ बाँट दी गयी होंगी| बाढ़ पीड़ितों को सहायता राशि भी उन्हीं काग़ज़ों में ही मिल गयी होगी| कि उन्ही काग़ज़ों से वो अपना आशियाँ फिर बसा लें, अगले साल इसी बाढ़ में फिर बह जाने के लिए|
राकेश राय