पटना, ३१ जुलाई।
सुपरिचित कथाकार चितरंजन लाल भारती की कहानियाँ यथार्थ पर कल्पना की चासनी जैसी मीठी, किंतु मर्म-स्पर्शी हैं। इनकी अनेक कहानियों में
अनेक स्थलों पर ‘कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद’ दिखाई देते हैं। इसलिए भारती की कहानियाँ प्रेमचंद के काफ़ी निकट दिखाई देती हैं।
यह विचार आज कथा-सम्राट मनुशी मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कथाकार चितरंजन लाल भारती के सद्य:प्रकाशित
कथा-संग्रह’प्रिसाइडिंग औफिसर की डायरी’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता जरते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, ‘सोजे-वतन’जैसी उर्दू कहानियों से अपनी साहित्यिक यात्रा आरंभ करने वाले मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के कथा-सम्राट के रूप में इसलिए ख्यात हुए कि उन्होंने भारत के लोक-जीवन और समस्याओं का नब्ज़ पकड़ा था। उनकी कहानियाँ, भारत के आमलोगों की कहानियाँ थी। उनकी पीड़ा और प्रतिकार के स्वर थे उनमें। इसीलिए वह आम पाठकों को उनकी अपनी कहानी लगी। और अपनी चीज़ें,चाहे जैसी हों, सबको प्रिय लगती हैं।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, वरिष्ठ कथाकार जियालाल आर्य ने कहा कि, पुस्तक के लेखक ने पूर्वोत्तर भारत के जन-जीवन को अपनी कहानियों का विषय बनाया है, जो स्वाभाविक है। लेखक का कार्यक्षेत्र असम सहित पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण के राज्य रहे हैं।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, प्रेमचंद’युगबोध’ के महत्त्वपूर्ण लेखक हैं। उन्होंने अपने युग की सभी प्रवृतियों को समझा और उसे अपनी सर्जना का विषय बनाया। प्रेमचंद अपनी कहानियों में आज भी ज़िंदा हैं। वे आज भी प्रासंगिक हैं।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, प्रो बासुकीनाथ झा, डा भूपेन्द्र कलसी, डा मधु वर्मा,बच्चा ठाकुर, डा बी एन विश्वकर्मा, ने भी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, डा शंकर प्रसाद ने ‘पोटली के दानें’शीर्षक से, डा मधु वर्मा ने ‘जन्म दिन का उपहार’,डा मेहता नागे न्द्र सिंह ने’भ्रम’, अमियनाथ चटर्जी ने ‘टेंढ़ी अंगुली’, पुष्पा जमुआर ने ‘साँठ-गाँठ’, रेखा भारती ने ‘जलेबियाँ’,श्वेता मिनी ने ‘दहलीज़’,योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने ‘वह पगहा तुड़ा गई’, सच्चिदानंद सिन्हा ने ‘पंडुकी’,अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘एक खुराक में’,राज किशोर झा ने ‘सबसे मूल्यवान’, अजय कुमार सिंह ने ‘जैसी करनी,वैसी भरनी’, शंकर शरण आर्य ने ‘यह भी क्या ज़िंदगी’, रवींद्र सिंह ने ‘विद्या’तथा निशिकांत ने ‘ श्वान’शीर्षक से अपनी लघुकथा पढ़ी। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर कुमार अनुपम, अधिवक्ता शिवानंद गिरि, मनोरमा तिवारी,डा उमेशचंद्र शुक्ल, पं गणेश झा, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, बाँके बिहारी साव तथा आनंद किशोर मिश्र समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
राकेश राय