कुलदीप सिंह सेंगर समाजवादी पार्टी से भगवंत नगर के विधायक थे। 2016 में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो कुलदीप सिंह सपा से अपनी पत्नी संगीता सिंह के लिए टिकट मांग रहे थे। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और तात्कालिक मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने कुलदीप सिंह की पत्नी को टिकट न देकर ज्योति रावत को यहां से जिला पंचायत अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बना दिया। इस पर कुलदीप सिंह सिंगर ने बगावत कर दी और अपनी पत्नी को निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतार दिया।
सत्ता रहने के बाद भी सपा यहां पर कुलदीप के तिलिस्म को नहीं तोड़ सकी। सपा ने पूरी ताकत झोंक दी लेकिन कुलदीप सिंह सेंगर की पत्नी संगीता ने पूरी दमदारी से चुनाव लड़ा। परिणाम आए तो दोनों का मत बराबर था। उस समय टास उछाल कर फैसला हुआ तो संगीता सिंह की विजय हुई और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गई। इससे समाजवादी पार्टी को यहां पर तगड़ा झटका लगा।
2017 का विधानसभा चुनाव नजदीक था और अखिलेश सिंह यादव ने कुलदीप सिंह सेंगर से किनारा कर लिया था। अब कुलदीप सिंह को एक मजबूत पार्टी चाहिए थी। कुलदीप ने भाजपा का दामन थामा तो उन्हें बांगरमऊ विधानसभा की सीट तोहफे के रूप में मिल गई। कुलदीप सिंह चौथी बार विधायक चुने गए। फिर क्या था कुलदीप का कद इतना बढ़ गया कि उनके पार्टी के ही चुने गए नेता अंदर ही अंदर उनकी बगावत करने लगे। कुलदीप ने तेजी से पूरे जिले में पांव पसारना शुरू कर दिया था।दिग्गजों को अपनी जमीन खिसकती हुई नजर आ रही थी।
अप्रैल दो हजार 18 में विधायक का नाम दुराचार मामले से जुड़ा तो सपा ने कुलदीप का जोरदार विरोध किया। सपा अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव ने खुद विधायक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 4 दिन पहले रायबरेली में हादसे में पीड़िता जख्मी हो गई और चाची व चचेरी मौसी की मौत हुई तो अखिलेश को मौका मिल गया। अखिलेश सिंह यादव ने कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी से निकलवाने के लिए सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करना चालू कर दिया। अखिलेश ने कुलदीप के खिलाफ अपनी पूरी पार्टी लगा दी। और एक तरह से अखिलेश सिंह यादव और अन्य विरोधी दल कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ पार्टी से भी कार्रवाई करवाने में पूरी तरह से सफल साबित हुए। अब कुलदीप सिंह सेंगर को सत्ताधारी पार्टी से निकाले जाने के बाद विरोधी दलों ने राहत की सांस महसूस की है।