पटना,२ अगस्त। अनुवाद-साहित्य का एक अत्यंत विशिष्ट महत्त्व और स्थान है। साहित्य की इस विधा ने अनेक भाषाओं को आपस में जोड़ने का और समृद्ध करने का मूल्यवान कार्य किया है। इसी विधा ने रामचरित मानस को जगत-विख्यात किया। विभिन्न भाषाओं में अनुवाद से हिन्दी-साहित्य और व्यापक होगा और उसमें नए आयाम जुड़ेंगे।
यह विचार शुक्रवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में अंग्रेज़ी के दो प्रैतिशतहित विद्वान प्रो रामभगवान सिंह और प्रो छोटेलाल खत्री द्वारा कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानियों के किए गए अंग्रेज़ी अनुवाद’ग्रेटेस्ट स्टोरीज़ औफ़ प्रेमचंद’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता जरते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, विद्वान अनुवादकों ने उतनी हीं सरल अंग्रेज़ी का प्रयोग किया है, जितनी सरल और ग्राह्य हिन्दी में प्रेमचंद जी ने लिखा। यह लोकार्पित पुस्तक की मूल्यवान विशेषता है। इस पुस्तक के माध्यम से भारत के अहिन्दी प्रदेशों के पाठक भी प्रेमचंद की कहानियों का आनंद और लाभ उठा सकेंगे। इसकी प्रतियाँ यूरोप में जा सके तो इससे अंग्रेज़ पाठक भी लाभान्वित होंगे।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए,पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो गुलाबचंद्र राम जायसवाल ने कहा कि, हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के जो कार्य स्वतंत्रता के पूर्व हुआ, वह स्वतंत्रता के बाद नहीं हो पाए। विद्वान लेखकों प्रो सिंह और प्रो खत्री ने प्रेमचंद की कहानियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद कर,हिन्दी साहित्य के उन्नयन में बड़ा योगदान दिया है। प्रेमचंद जी ने अपनीं कहानियों में हमें अनेक तरह की शिक्षाएँ दीं। हमें चरित्रवान बनाने की चेष्टा की। आज इसकी और अधिक आवश्यकता है।
समारोह के मुख्य अतिथि और पटना विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो शैलेश्वर सती प्रसाद ने पुस्तक पर अपनी राय रखते हुए कहा कि,प्रेमचंद की कहानियों में अद्भुत सृजनशीलता है। और कोई सृजनशील और दोनों भाषाओं में पैठ रखने वाले लेखक हीं ऐसी कहानियों का सार्थक अनुवाद कर सकता है। लोकार्पित पुस्तक के दोनों हीं अनुवाद कर्ता न केवल हिन्दी और अंग्रेज़ी में समान अधिकार रखते हैं,बल्कि वह संवेदनशीलता और सृजनशीलता भी रखते हैं।
इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए,प्रो राम भगवान सिंह ने कहा कि, लेखक कोई उपदेशक या पादरी नहीं होता। वह केवल जो प्रत्यक्ष देखता है, उसे हीं पाठकों के समक्ष प्रत्यक्ष करता है। पाठक उससे स्वयं समझ लेते हैं कि लेखक ने क्या कहने की चेष्टा की है। अनुवाद का काम आसान नहीं होता। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि अनुवाद शत-प्रतिशत हुआ। अनुवादक अपने सामर्थ्य भर चेष्टा करता है और यही करना चाहिए।
प्रो छोटेलाल खत्री ने कहा कि,प्रेमचंद का साहित्य हर काल में प्रासंगिक है। उनकी कथाएँ जीवन से सीधे जुड़ती हैं। उनकी कहानियों में प्रकट होने वाले विचार अन्य भाषाओं के पाठकों तक पहुँचे, इस विचार से हमने उनकी कहानियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। अहिंदी भाषी पाठक हिन्दी की ऊर्जा से अवगत हों, इसलिए भी ज़रूरी है कि, हिन्दी कहानियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद हो।
आज अखिल भारत वर्षीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक प्रधानमंत्री राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन को भी उनकी जयंती पर श्रद्धा पूर्वक स्मरण किया गया। आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा कि, टंडन जी ऋषि-तुल्य स्वतंत्रता-सेनानी और हृदय से राजा थे। उन्होंने राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा के लिए अपना सर्वस्व लूटा दिया। हिन्दी भाषा के उन्नयन में दिया गया उनका अवदान अप्रतिम है। उन्होंने हीं अखिल भारत वर्षीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की थी।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद,डा मधु वर्मा तथा साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन प्रख्यात रंगकर्मी जावेद अख़्तर ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।
इस अवसर पर बच्चा ठाकुर, राज कुमार प्रेमी, डा सुलक्ष्मी कुमारी, उमा शंकर सिंह , रमेश कँवल, डा कुमार मंगलम, डा अशोक प्रियदर्शी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री , डा तनुजा, कुमार चंद्रदीप,प्रो आर के शर्मा,डा मनोज कुमार, सीमा खत्री, प्रो ऐजाज अहमद, डा सुरेंद्र,डा सरिता सिंह, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, बाँके बिहारी साव, नम्रता मिश्र तथा डा हँसमुख समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
राकेश राय