05 अगस्त 2019, आर्टिकल 370 एवं 35 A समाप्त करने के बिल के प्रस्ताव के साथ ही भारत सरकार या यूँकहे की मोदी सरकार ने एक और इतिहास अपने नाम दर्ज करा दिया. पिछले कुछ दिनों में नेता से लेकर जनता तक हरकोई इसी बात को लेकर विश्लेषण करने में लगा हुआ था की आखिर जम्मू-कश्मीर में सेना का इतना जत्था क्यों बहालकिया जा रहा है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का अमेरिका दौरा फिर अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान की वोकश्मीर मुद्दे पर मध्यस्ता करने को तैयार है- इन सारी अटकलों के ऊपर एक कठोर और साहसिक निर्णय लेते हुए मोदीसरकार ने ये स्पष्ट कर दिया की जो हमारा है वो सिर्फ हमारा है और उसपे किसी भी तरह का फैसला लेने का अधिकारसिर्फ हम भारतीयों का है तथा इसपे किसी का भी कोई भी हस्तक्षेप हमें स्वीकार नहीं.
जब पहली बार राज्य सभा में गृहमंत्री श्री अमित शाह ने यह प्रस्ताव सदन पटल पर प्रस्तुत किया तबज्यादातर सांसदों के चेहरे पर खुशी थी जो की भारत की जनता के चेहरों का प्रतिनिधित्व करते है. लेकिन वहा बैठे कुछसांसदों को साप सूंघ गया था और फिर उनलोगो ने अपनी आदत से मजबूर विरोध करना शुरू किया जो की ये लोगहमेशा करते रहते है – सिर्फ और सिर्फ विरोध चाहे वो मुद्दा देश हित का ही क्यों ना हो. लोग सदन में बैठ कर ये क्योंभूल जाते है की वो किसी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और यहाँ सदन में सिर्फ उनका या उनकी पार्टी कानिजी मत नहीं होना चाहिए, उनका व्यवहार देश की जनता के बिचार के अनुसार होना चाहिए. आर्टिकल 370 कोहटाने का विरोध विपक्ष में तो जो सरकार विरोधी पार्टियां है उन्होंने किया ही लेकिन पक्ष में सरकार का समर्थन कुछऐसी पार्टियों ने भी किया जो एन डी ए में नहीं हैं जैसे की आम आदमी पार्टी, टी डी पी, बी एस पी, इत्यादि. तो वही एन डी ए के सभी घटक दलों ने एकमत से इस प्रस्ताव का समर्थन किया सिवाय सुशासन बाबू के नाम से प्रसिद्ध बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार की पार्टी जनता दाल (यूनाइटेड). इसके पीछे तर्क देते हुए जदयू के प्रवक्ता श्री के सी त्यागी ने कहा " पार्टी प्रमुख श्री नितीश कुमार की पार्टी अपने आदर्श जे पी नारायण, राम मनोहर लोहिया और जॉर्जफर्नांडिस के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है, हम अलग बिचार रखते है इसलिए हम इस बिल का समर्थन नहीं करते है " इनसे भला कोई पूछे की क्या इनके आदर्शों ने कभी देश की विकास के लिए उठाये जाने वाले किसी भी कदम का कभीभी विरोध किया था क्या. इनके आदर्श नेता तो देश को विकाश की शिखर तक ले जाने के लिए अपने प्राणों की आहुति तक देने को तैयार रहते थे, गलत को गलत और सही को सही कहने का अदम्य साहस रखते थे. सिर्फ अपने आदर्शों का सहारा ले कर कब तक जनता के सवालों से पल्ला झाड़ते रहेंगे. आपको इसका सही और उचित जवाब तो जनता खास कर बिहार की जनता को तो देना ही पड़ेगा. राज्य सभा की बिहार में कुल 16 सीटें है जिसमे से जदयू के पास 6 सीटें है यानी की बिहार की कुल राज्य सभा की सीटों का 37.5% है और वही लोक सभा की सीटों की बात करे तो बिहार की लोक सभा की कुल 40 सीटों में से 16 सीटें जदयू के पास है ये बिहार की कुल लोक सभा की सीटों का 40% है. अगर हम दोनों सदनों की बिहार में कुल सीटों में जदयू की कुल सीटों का औसत करे तो 38.75% है. अगर जनता के
प्रतिनिधि वाकई में जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं तो दोनों सदनों के लिए बिहार की कुल वोटरों के 38.75% वोटर ये नहीं चाहते हैं की जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बने और वहा से आर्टिकल 370 और 35 A समाप्त हो, वो भी उस बिहार से जहा के माँ बाप ने अपना बेटा, औरतों ने अपने पतियों और बच्चो ने अपने बाप को खोया है सिर्फ और सिर्फ जम्मू और कश्मीर को भारत माँ के सर का ताज बनाये रखने के लिए, कोई भी ऐसा युद्ध नहीं जिसमे इस बिहार की मिट्टी ने अपने लाल न खोये हों या आये दिन खो न रही हो. वैसे भी साहब एक बार सत्ता में आ जाने के बाद जनता की सुनता कौन है लेकिन अब जनता इतनी मुर्ख नहीं रही. देश और देशभक्ति के नाम पर हम बिहारियों से ज्यादा शायद ही कोई भावुक होता हो और आपने तो इस बिल का विरोध कर के उसी भावुकता से भरे दिल को तोड़ दिया.
वैसे भी नितीश कुमार की सरकार ने पिछले इतने सालों के शासन में बिहार और बिहार वासियों के लिए किया ही क्या. लालू यादव और राष्ट्रीय जनता दल के 15 साल के जंगल राज के बाद बिहार की जनता ने जिस विश्वास और उम्मीद के साथ सत्ता परिवर्तन कर नितीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था उसका भला उनको क्या लाभ मिला. आज भी बिहार उसी जगह पे खड़ा है जहा आज से 30 साल पहले था या यूँ कहें की आज से 30 साल पहले बिहार की स्थिति कहीं ज्यादा अच्छी थी. हम आखिर कब तक अपने इतिहास की आड़ लेकर खुद को झूठी तसल्ली देते रहेंगे. कब तक चन्द्रगुप्त, चाणक्य, वैशाली, नालंदा, महात्मा गाँधी, चम्पारण इत्यादि का इतिहास बता बताकर खुद को बेवकूफ बनाते रहेंगे. कमसे कम इन धरोहरों और विरासतों को भी आपने संभाल दिया होता तो आज हम पर्यटन के छेत्र में उचाई के शीर्ष पे होते. रोजगार के लिए दर दर भटकते बिहारी युवाओं को यहीं रोजगार मिल गया होता और बिहारी शब्द आज भी गाली न लगता. जहाँ आजादी के 70 साल बाद 300 से ज्यादा लोग गर्मी से मर जाते हो, जहाँ 500 से ज्यादा बच्चे दिमागी बुखार से मर जाते हो, जहाँ हर साल बाढ़ से सैकड़ो लोग मरते हो, जहाँ हर साल बढ़ से हजारो पशु बह जाते हो, जहाँ हर साल तीन से चार महीने गाँवो का देश-दुनिया से संपर्क टूट जाता हो, जहाँ हर साल करोड़ो की फसल बर्बाद हो जाती हो, जहाँ आज भी लोग सड़कों और पूलों से वंचित हो, जहाँ बेरोजगारी आसमान छू रही हो, जहाँ अशिक्षा अपने चरम सीमा पर हो, जहाँ स्कूल के नाम पर खँडहर हो और उस खँडहर तक पहुंचने के लिए भी रास्ता ना हो, जहाँ की जनता आज भी अपने परिजनों के इलाज के लिए दिल्ली और दूसरे राज्यों के बड़े शहरो के अस्पतालों का चक्कर लगाते लगाते वही रोड पर सोने को मजबूर हो, जहाँ की जनता अपने ही घर छठ-दिवाली-होली-ईद-बकरीद में आने के लिए चार महीने पहले ट्रैन की टिकट लेकर भी खड़े हो कर और फर्श पर लेट और बैठ कर आने के लिए मजबूर हो, जहाँ की जनता आज भी रोटी-कपडा-मकान-रोजगार जैसी मुलभुत चीजों के लिए पैदा होने से लेकर मरने तक जूझती हो, जहाँ की जनता को ना तो मूल अधिकार पता हो और ना ही मूल कर्त्तव्य जानती हो, और ना जाने कितनी ही ऐसी समस्याओ से जहाँ की जनता हर दिन परेशान होती हो. ऐसे सुशासन बाबू
नितीश कुमार की पार्टी अपने आदर्श विचार और आदर्श महापुरुषों की आड़ लेकर सरकार द्वारा आर्टिकल 370 और 35 A को हटाए जाने का विरोध करती है. साहब अब बिहार की जनता भी सब समझ रही है- वो भी बिहार से बहार जाकर क्योकि आपने तो यहाँ रहने लायक कुछ छोड़ा ही नहीं. सिर्फ कह देने मात्र से तो बिहार में बहार नहीं आ जायेगा उसके लिए कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कदम उठाने पड़ेंगे कुछ साहसिक निर्णय लेने होंगे जो की बिहार में सच में बदलाव लाये और सिर्फ कागज पर ही नहीं बल्कि वास्तविकता में बिहार में बहार आये, जो कहने से नहीं महसूस करने से पता चले. अभी भी समय है बिचार कीजिए और जिस जंगल राज से परेशान होकर बिहार की जनता ने आपको चुना था उसपर खरा उतरीय और जनता को विस्वास दिलाइये की उन्होंने आपको चुन कर गलती नहीं की है नहीं तो अगर बिहार की जनता ने कुछ और बिचार कर लिया तो आप फिर कभी बिचार नहीं कर पाएंगे और बिहार में बहार लाने के लिए कोई और आपकी जगह ले लेगा क्योंकी ये पब्लिक है सब जानती है भले समझती थोड़ा देर से है.
संपादक, कौशलेन्द्र पाण्डेय साथ मे
अनुज मिश्रा (पटना )