गोवा ,
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन और गोवा विश्वविद्यालय संयुक्त रूप से कोंकणी –हिन्दी समेत भारत की सभी भाषाओं के बीच परस्पर–सहयोग,आत्मीय सौहार्द तथा संपूर्ण भारतवर्ष में, हिन्दी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने तथा सम्पर्क भाषा बनाने के लिए प्रयास करेगा। देश की सभी भाषाएँ सगी बहनें हैं और उनके बीच दूरियाँ नहीं प्रेम बढ़ाया जाए। इस तरह के विचारों और संकल्पों के साथ,गत १९–२० अगस्त को,गोवा विश्वविद्यालय के सभागार में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा गोवा विश्वविद्यालय के कोंकणी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में, ‘कोंकणी–हिन्दी साहित्य में परस्पर भाव–प्रभाव:एक तुलनात्मक अध्ययन‘विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न हुआ।
परिसंवाद का उद्घाटन करती हुईं, गोवा की राज्यपाल डा मृदुला सिन्हा ने कहा कि, भारत की समस्त भाषाओं के साहित्य में,चाहे वह कथा–साहित्य हो, काव्य–साहित्य हो अथवा नाट्य साहित्य, सब में एक गहरा आत्मीय एकत्व है। उनके भाव–प्रभाव और प्रवाह में अनेक समानताएँ हैं, जिन्हें समझने की आवश्यकता है। जब हम अपने देश की सभी भाषाओं को सम्मान देंगे, परस्पर सहकार को बढ़ाएँगे तो देश मज़बूत और एक सूत्र में बँधेगा। तभी हिन्दी को संपूर्ण देश में बड़ी बहन का सम्मान प्राप्त होगा।
इस अवसर पर अपना बीज वक्तव्य देते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, कोंकणी और हिन्दी समेत भारत की प्रायः सभी भाषाएँ आर्य–कुल की भाषाएँ हैं। भले हीं उनमें भिन्नता दिखाई देती हों,किंतु उनका सूक्ष्म निरीक्षण करने पर उनमें अनेक समानताएँ दिखाई देती है। एक कुल की होने के कारण ये सभी सगी बहने हैं और हमें इसी संबंध को आत्मीय–स्तर पर विकसित और समृद्ध करना चाहिए। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त किया कि इस परिसंवाद की प्रचार–सामग्रियों में ‘कोंकणी–हिन्दी भयणी–भयणी‘ लिख कर दोनों भाषाओं के बीच के सौहार्द का परिचय दिया गया है।
गोवा विश्व विद्यालय के कुलपति डा वरुण साहनी ने कहा कि हिन्दी और कोंकणी समेत सभी भारतीय भाषाओं में भाषा–विज्ञान और उनमें विज्ञान और तकनीक के विकास पर अधिक बल दिया जाना आवश्यक है। तभी हम अंग्रेज़ी की अनिवार्यता को समाप्त कारण में सफल होंगे। उन्होंने सूचित किया कि गोवा विश्वविद्यालय में अगले माह से हिन्दी भाषियों को कोंकणी सिखाने का एक विशेष और नियमित पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जा रहा है। इसी तरह देश के अन्य प्रांतों में भी शैक्षणिक–संस्थानों को आगे आना चाहिए। उन्होंने इस दिशा में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से गोवा विश्वविद्यालय से जुड़कर कार्य करने का आह्वान किया।
दो दिवसीय इस संगोष्ठी में ८ वैचारिक–सत्रों में कथा–साहित्य,नाट्य–साहित्य,काव्
इस अवसर पर, गोवा के वरिष्ठ कवि नागेश करमली की अध्यक्षता में एक कवि–सम्मेलन का भी आयोजन हुआ, जिसमें दोनों ही भाषाओं में कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। इनमें माधव बोरकार,सुशांत नायक,डा शांति जैन, डा शालिनी पाण्डेय, डा पूर्णानंद च्यारी, डा राजय पवार, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा शांति ओझा, राज कुमार प्रेमी, डा सागरिका राय, चंदा मिश्र तथा नेहाल कुमार सिंह निर्मल सम्मिलित थे। डा नागेश्वर प्रसाद यादव, कृष्ण रंजन सिंह, बिंदेश्वर गुप्ता तथा शशिभूषण कुमार ने विभिन्न सत्रों में धन्यावड–ज्ञापन किया।
कौशलेन्द्र पराशर