पटना,११ अक्टूबर। विशेष आवश्यकता वाले वच्चों और व्यक्तियों के पुनर्वास,शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। पूरी दुनिया में पुनर्वास विभाग में लगातार नई तकनीक और उपकरणों का विकास हो रहा है। विकसित तकनीक से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी पुनर्वास कर्मियों को अवगत रहना चाहिए।
यह विचार शुक्रवार को भारतीय पुनर्वास परिषद के सौजन्य से इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च, बेउर में ‘विकलांग जनों के क्रियाकलापों के संदर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय वर्गीकरण,उपकरणों एवं स्वास्थ्य समस्याओं का पुनर्मूल्यांकन‘विषय पर आयोजित प्रक्षेत्र–स्तरीय तीन दिवसीय सतत पुनर्वास शिक्षा कार्यक्रम के उद्घाटन–समारोह की अध्यक्षता करते हुए,संस्थान के निदेशक–प्रमुख डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि, विकलांगजनों को अशक्त कहना और समझना सामाजिक बुराई है। विकलांगजनों को अनेक कार्यों के लिए सक्षम और समर्थ बनाया जा सकता है। विशेष–शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे ऐसे बच्चों के भीतर से हीन भावना निकालकर उन्हें प्रेरित और परित्साहित करें।।
समारोह की मुख्य अतिथि तथा दानापुर छावनी स्थित विशेष विद्यालय की प्रधानाध्यापिका कल्पना झा ने कहा कि विकलांग जनों के प्रति समाज का नज़रिया बदलना चाहिए और हर एक व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि उन्हें सक्षम और समर्थ बनाने में उनका क्या योगदान हो सकता है।
इस अवसर पर, भारतीय पुनर्वास परिषद के प्रतिनिधि तथा ज़ोनल कमिटि के को–और्डिनेटर शिवशंकर प्रसाद रमणी, डा नीरज कुमार वेदपुरिया, डा जयदीप दास तथा डा अबनीश रंजन ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत संस्थान के विशेष–शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो कपिल मुनि दूबे ने तथा मंच संचालन संतोष कुमार सिंह ने किया।
कौशलेन्द्र