पटना,
पटना,११ अक्टूबर। हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान रखने वाले विद्वान समालोचक डा कुमार विमल काव्य में सौंदर्य–शास्त्र के महान आचार्य थे। अपने समय के वे एक जीवित साहित्य–कोश थे। उनका संपूर्ण जीवन,साहित्य और पुस्तकों के साथ अहर्निश जुड़ा रहा। वे प्रायः हीं पुस्तकों से घिरे और लिखते–पढ़ते हीं देखे जाते थे। उनका जीवन साहित्य का पर्यायवाची था।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में डा विमल की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, समालोचना के क्षेत्र में आचार्य नलिन विलोचन शर्मा के बाद डा कुमार विमल का नाम सर्वाधिक आदर से लिया जाता है।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि,डा विमल एक विद्वान लेखक हीं नहीं,अत्यंत प्रभावशाली वक़्ता भी थे।सौंदर्य–शास्त्र पर लिखा उनका शोध–पत्र अद्वितीय है।इस विषय पर लिखा उनका शोध–ग्रंथ,हिन्दी साहित्य का धरोहर है। वे एक महान साहित्य–मनीषी थे।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि,कुमार विमल की ख्याति साहित्य संसार में एक सौंदर्य–शास्त्री के रूप में हुई। उन्होंने इस विषय पर दो महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, जिनके प्रणयन से यह समझा जा सकता है कि काव्य हीं नहीं कथा–कहानी,उपन्यास अथवा निबंधों में भी सौंदर्य किस प्रकार अनुभूत किया जा सकता है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा मधु वर्मा,डा कल्याणी कुसुम सिंह, साहित्यमंत्री प्रो भूपेन्द्र कलसी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव,श्रीकांत सत्यदर्शी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी–वंदना से हुआ। प्रो इंद्रकांत मिश्र,डा शांति जैन, डा मेहता नगेंद्र सिंह, बच्चा ठाकुर, राज कुमार प्रेमी, डा ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘,सुनील कुमार दूबे,डा पुष्पा जमुआर,डा सीमा रानी, प्रभात कुमार धवन, शुभचंद्र सिन्हा, जय प्रकाश पुजारी, डा सविता मिश्र मागधी, यशोदा शर्मा, श्रीकांत व्यास, डा कुंदन कुमार, धर्मवीर कुमार शर्मा, बाँके बिहारी साव, रवींद्र कुमार सिंह तथा नीरव समदर्शी ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया
कौशलेन्द्र