पटना,१२ अक्टूबर। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व पुस्तकालय मंत्री डा राम शोभित प्रसाद सिंह, न केवल महान पुस्तकालय–विज्ञानी,बल्कि पुस्तकालय–साहित्य के महान पुरोधा थे। पुस्तकालय–विज्ञान पर लिखी उनकी पुस्तकें,विद्यार्थियों के लिए, आज भी मानक बनी हुई हैं। उन्होंने ४४ वर्षों तक, बिहार के अत्यंत गौरवशाली पुस्तकालय ‘सच्चिदानंद प्रसाद सिन्हा लाइब्रेरी‘के पुस्तकालयाध्यक्ष और फिर निदेशक के रूप में अपनी मूल्यवान सेवाएँ दीं। साहित्य सम्मेलन से उनका गहरा लगाव था। उनके निधन से साहित्य और पुस्तकालय विज्ञान की बड़ी क्षति पहुँची है।
यह बातें शनिवार की संध्या,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, डा सिंह के निधन पर आयोजित शोक–सभा की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि राम शोभित बाबू, अपनी विद्वताजनित विनम्रता के प्रतिमान थे। उनके संपूर्ण व्यक्तित्व से विनम्रता और शालीनता टपकती रहती थी। उनकी मीठी आवाज़ उनके साधु रूप को और उन्नत करती थी। पुस्तकालय जगत को उनके द्वारा दिया गया अवदान अतुल्य है।
अपना शोकोदगार व्यक्त करते हुए,सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने अपने शोकोदगार व्यक्त करते हुए कहा कि,राम शोभित बाबू का पुस्तकालय–विज्ञान और हिन्दी साहित्य में समान अधिकार था। उन्होंने ‘पुस्तकालय संगठन एवं प्रशासन‘ तथा‘पुस्तकालय विज्ञान की रूप रेखा‘ जैसे मूल्यवान ग्रंथ लिखे तो ‘समय,साहित्य और संस्कृति‘, ‘उपन्यास समालोचना संदर्भ‘, कहानी समालोचना संदर्भ‘, ‘काव्य समालोचना संदर्भ‘ आदि ग्रंथों के माध्यम से हिन्दी साहित्य की भी मूल्यवान सेवा की।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा कि राम शोभित बाबू पुस्तकालय–आंदोलन के जनक के रूप में पूरे भारत वर्ष में आदर पाते थे। पुस्तकालय के संबंध में किसी भी योजना के कार्यान्वयन के पूर्व उनका परामर्श राष्ट्रीय स्तर पर लिया जाता था। साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, आचार्य पाँचु राम, अम्बरीष कांत, कृष्ण रंजन सिंह, अमित कुमार सिंह ने भी अपने शोकोदगार व्यक्त किए। सभा के अंत में दो मिनट मौन रखकर दिवंगत आत्मा की सद्गति की प्रार्थना की गई।
स्मरणीय है कि ८३ वर्षीय डा सिंह का निधन शुक्रवार को प्रातः ७ बजे, शिवपुरी स्थित उनके आवास पर हो गया था। आज हीं संध्या गुल्बी घाट में उनका अग्नि–संस्कार संपन्न हुआ। उनके ज्येष्ठ पुत्र डा अजय कुमार सिंह ने मुखाग्नि दी। इस अवसर पर उनके दूसरे और तीसरे पुत्र क्रमशः संजय सिंह और शैलेश सिंह,समेत बड़ी संख्या में साहित्य–सेवी,पुस्तकालय–विज्ञा