पटना,१४ अक्टूबर। एक दिन के नवजात शिशु की भी सुनने की जाँच की जा सकती है। उन्नत तकनीक से विकसित किए गए औडियोमीटर(श्रवण–जाँच यंत्र) से यह संभव हुआ है। अब कृत्रिम कान का प्रत्यारोपण भी सहजता से किया जा रहा है। ज्ञान के जितने भी क्षेत्र हैं, उनमें पुनर्वास–विज्ञान के क्षेत्र में सर्वाधिक तेज़ी से तकनीकी विकास हुआ है। नयी तकनीक से पुनर्वास–कर्मियों का शीघ अवगत होना तथा आमजन को जागरूक करना, दुनिया से विकलांगता के निवारण और पुनर्वास की बड़ी चुनौती का सामना करने के लिए आवश्यक है।
यह विचार गत रविवार को भारतीय पुनर्वास परिषद के सौजन्य से इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च, बेउर में ‘विकलांग जनों के करियाकलाप के संदर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय वर्गीकरण,प्रचलित उपकरणों एवं स्वास्थ्य सबंधी अन्य समस्याओं का पुनर्मूल्यांकन ‘ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन तथा प्रमाण–पत्र वितरण–समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक–प्रमुख डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के पुनर्वास और उनकी शिक्षा के लिए संसाधनों में वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है। किंतु जो भी संसाधन हमारे पास उपलब्ध हैं, चाहे वे विशेष–विद्यालय हों, विशेष–शिक्षक हों, शिक्षण–सामग्रियाँ हों, उन सबका अधिकतम उपयोग किया जाना चाहिए तथा नए संसाधनों की खोज भी होनी चाहिए।
कार्यशाला में डा नीरज कुमार वेदपुरिया,डा जयदीप दास, डा धनंजय कुमार, आशुतोष कुमार सिंह, गीताली साइकिया ने अपने वैज्ञानिक–पत्र प्रस्तुत किए। मंच का संचालन संतोष कुमार सिंह तथा धन्यवाद–ज्ञापन डा अवनीश रंजन ने किया। इस अवसर पर, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा,राजस्थान, आसाम,
कौशलेन्द्र