पटना,१५ अक्टूबर। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित होकर अपने सुखमय जीवन का त्याग कर मानव–सेवा तथा स्वतंत्रता–संग्राम में कूद पड़े सेठ गोविंददास उच्च कोटि के नाटककार और उपन्यासकार थे। उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं। उनपर रहस्य–रोमांच और तिलिस्म के लेखक बाबू देवकी नंदन खत्री और अंग्रेज़ी नाटककार शेक्सपियर का गहरा प्रभाव था। वे ‘हिन्दी‘भारत की ‘राष्ट्र–भाषा‘बने, इसके प्रबल समर्थक थे। स्वतंत्रता के पश्चात अपने निधन (१९७४)तक, वे जबलपुर से, लगातार भारतीय संसद के सदस्य रहे। साहित्य और शिक्षा में उनके अवदान को देखते हुए उन्हें पद्मभूषण के अलंकरण से भी विभूषित किया गया था।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी के उन्नयन में समर्पण के साथ जुड़े रहे सेठ गोविंद दास की जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। स्वतंत्रता–संग्राम के दौरान और उसके बाद राष्ट्रभाषा हिन्दी और हिंदी साहित्य के आंदोलन को सेठ गोविंद दास का बहुत बड़ा संबल प्राप्त हुआ। उन्होंने इस हेतु अपना सारा तन, मन, धन लगा दिया। उनके अवदान को हिन्दी–जगत कभी भूल नहीं सकता।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा सेठ जी उच्च साहित्यिक प्रतिभा के रचनाकार थे। उन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में प्रचुरता से लिखा। वे ऐतिहासिक नाटकों के महान लेखक के रूप में सुख्यात तो हुए हीं, किंतु उनके खंड–काव्य और महाकाव्य भी उतने हीं प्रभावकारी हुए। वे एक बड़े अभिनेता भी थे। उन्होंने अपने नाटकों का मंचन भी क्या।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि यदि हमें सेठ गोविंद दास जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो हमें हिन्दी को देश की राष्ट्र–भाषा बनाने में और थोड़ी भी देर नही करनी चाहिए।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ राज कुमार प्रेमी की वाणी–वंदना से हुआ। गीत के वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन ने इन पंक्तियों को मधुर स्वर दिए – “गुलमोहर चम्पा जूही केसर/ फँस गए संध्या सुरभि के पर /विहग–कुल के कलरवों के ठाम/ उड़हुली वन–उपवनों में शाम“।
वरिष्ठ शायर आरपी घायल का कहना था कि, “किसी इंसान को जब बेख़ुदी से प्यार होता है/इसी संसार में उसका अलग संसार होता है“। कवयित्री डा सुधा सिन्हा ने कहा – “बातें बनाना आप से सीखे कोई/ करना बहाना आप से सीखे कोई/ सीखे तरीक़ा दोस्ती का आप से/हदें तोड़ जाना आप से सीखे कोई“। कवि घनश्याम का कहना था कि, “दिल के दरिया में मुहब्बत की लहर होती है/ जब कभी आपके आने की ख़बर होती है/ चीज़ होती है ग़ज़ब की ये प्यार की ख़ुशबू/ फूल खिलते हैं तो औरों को ख़बर होती है“।
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, जय प्रकाश पुजारी, डा सविता मिश्र ‘मागधी‘,डा उमा शंकर सिंह,अश्विनी कुमार कविराज,सच्चिदानंद सिन्हा तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर आनंद मोहन झा,मूलचन्द्र अग्रवाल,ज़फ़र इक़बाल तथा श्याम नंदन सिन्हा समेत प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
कौशलेंद्र