पटना से कौशलेन्द्र,
पटना,२८ अक्टूबर। बहुभाषाविद विद्वान और सरस्वती के वरद–पुत्र आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव एक साहित्यिक साधु–पुरुष थे। उन्होंने एक संत की भाँति साहित्य की आध्यात्मिक–साधना की। ७० वर्षों से अधिक समय तक निरंतर साहित्य–साधना में लीन रहे। अपने युवावस्था में वर्ण–संयोजक के रूप में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की सेवा आरंभ करने वाले श्री सूरिदेव ने सम्मेलन के प्रधानमंत्री के पद को भी सुशोभित किया। ९१ वर्ष की अवस्था में भी सक्रिए रहने वाले वे एक विरल व्यक्तित्व थे। उनके तिरोधान से जो रिक्ति आई है, उसे भरा जाना संभव नही है।
यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में श्री सूरिदेव की ९३वीं जयंती पर आयोजित समारोह एवं कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आचार्यजी ने हिन्दी, संस्कृत,पाली और अपभ्रंश के साथ जैन साहित्य पर अत्यंत मूल्यवान कार्य किया, जो हिन्दी साहित्य की धरोहर की तरह है। भारतीय संस्कृति और साहित्य के उन्नयन में उनके कार्य अमूल्य हैं।
पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व साहित्यसेवी डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि, सूरिदेव जी एक विलक्षण साहित्यिक प्रतिभा के उद्भट विद्वान थे। जैन–साहित्य का उन्हें व्यापक अध्ययन था। वे साहित्य की धरोहर हैं। साहित्य सम्मेलन के लिए तो वे एक अमूल्य निधि के समान थे।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा कि साहित्यिक समालोचना और संपादन में आचार्य जी ने एक नई शैली विकसित की। उनकी लेखनी और वचन, दोनों में ही, अवर्चनीय माधुर्य था। वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानवर्धन मिश्र, अभिजीत कश्यप, मार्कण्डेय शारदेय, श्री सूरिदेव की पुत्री और कवयित्री अनुपमा नाथ, पुत्र संगम रंजन, विमल नारायण मिश्र, अंबरीष कांत,डा नागेश्वर प्रसाद यादव तथा सुनील कुमार मिश्र ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ जय प्रकाश पुजारी ने वाणी–वंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र‘करुणेश‘ ने अपनी ग़ज़ल को सस्वर पढ़ते हुए कहा – “अब ये मरहम पे है वो काम अपना कर जाए/ज़ख़्म का क्या है वो भर जाए कब उभर जाए/कशिवां ठान ले, है जंग ज़रूरी तो फिर/ राह बदल दे तूफ़ान लौट जाए, डर जाए।” आरपी घायल का कहना था कि, “ज़माने से दिवाली हर बरस हम यूँ हीं मनाते हैं/ अंधेरी रात का दामन उजालों से सजाते हैं/चरागों से सजी गलियाँ नहाती हैं उजालों में/ ज़माना क्या मनाएगा दिवाली हम मनाते हैं“।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद का कहना था कि “करें जफ़ा वो अगर मैं वफ़ा की राह चलूँ/ समझ में आता नहीं उनकी बेरुख़ी क्या है“। कवयित्री डा सुमेधा पाठक ने‘गिद्ध और कैमरा‘नामक अपनी कविता में एक पीड़ित बच्ची की वेदना को शब्द दिए कि, ” एक ना भूलने वाली तस्वीर, नाम है जिसका, ‘द बेंचर ऐंड द लिटिल गर्ल‘/ तस्वीर की छटपटाहट , कैमरे में होती है क़ैद/ मरती हुई बच्ची की आँखों की मूक वेदना“। व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय‘प्रकाश‘ ने कहा – “बहुत हुआ अब मत ऋंगार लिखो/ छमकती पायल की भी न झंकार लिखो/प्रकाश कलम में स्याही नही/ आग भरो, अंगार लिखो“।
अपने अध्यक्षीय काव्य–पाठ में डा सुलभ ने अपनी ग़ज़ल में कहा कि “आज फूलों ओ पत्तों से जीभर बात की/प्यार की बात की,जिधर बात की/ पत्तियों पर पड़े ओंस खिलखिला उठे/नज़रों से जो मिलकर नज़र बात की।“
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा सुधा सिन्हा, सुनील कुमार दूबे, विभारानी रानी श्रीवास्तव, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘बदनाम‘,डा सीमा रानी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी,निरुपमा मिश्र, राज कुमार प्रेमी, यशोदा शर्मा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।