पटना से कौशलेन्द्र पराशर की रिपोर्ट,
पटना,२९ अक्टूबर। ‘पाटलिपुत्र की धरोहर‘ के रूप में चर्चित, आर्यावर्त समेत अनेक पत्रों में अपनी मूल्यवान सेवा देने वाले संघर्ष–जयी पत्रकार रामजी मिश्र मनोहर पाटलिपुत्र के गौरव पुरुष थे। उन्हें पाटलिपुत्र के इतिहास का जीवंत–कोश माना जाता था। सदियों तक विशाल भारत की राजधानी रहे इस महान नगर के गौरवशाली इतिहास को संसार के समक्ष लाने में मिश्र जी का अत्यंत महनीय योगदान था।‘दासताने–पाटलिपुत्र‘नामक उनकी पुस्तक पाटलिपुत्र नगर का एक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। वे खोजपूर्ण पत्रकारिता, लेखन और विचारों में शुचिता,मनस्विता और तेजस्विता के अक्षर उदाहरण थे। उनकी स्मृति आज भी हताश मन को ऊर्जस्वित करती है। पीत होती जा रही आज की पत्रकारिता को आज भी उनसे प्रेरण ग्रहण कर धवल, उज्जवल और प्रज्वल किया जा सकता है।
यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में,स्मृति–शेष मनोहर जी के २१वें पुण्य–स्मरण–समारोह और परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि मिश्र जी में निर्मल पत्रकारिता का एक बड़ा हीं उच्च संस्कार था। उनके पिता डा विश्वेस्वर दत्त मिश्र, पितामह विश्वरूप मिश्र और प्रपितामह रामलाल मिश्र भी अपने समय के मनीषी पत्रकार थे। यह एक विलक्षण और रेखांकन योग्य विषय है कि उनकी अगली दो पीढ़ियाँ भी सक्रिय पत्रकारिता से जुड़ी हुई है। उनके पुत्र ज्ञानवर्धन मिश्र और पौत्र अमित मिश्र भी पत्र–जगत को अपनी मूल्यवान सेवाएँ दे रहे हैं। पत्रकारिता की उच्च–कोटि की इस परंपरा को आदर्श के दृष्टांत के रूप में देखा जा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार और बिहार श्रमजीवी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष अरुण पाण्डेय ने, परिसंवाद के विषय ‘पत्रकारिता:कल, आज और कल‘ पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, कल की पत्रकारिता चाटुकारिता की नहीं थी। तब एक साहित्यकार और पत्रकार जो अनुभव करता था,वह लिखता था। आदरणीय मनोहर जी उस काल के सम्मानित पत्रकार थे, जब निष्ठा और ईमानदारी का मूल्य सर्वाधिक था। आज की पत्रकारिता सुविधा की है। राग–द्वेष से, निंदा और स्तुति–गान की है।
समाचार पत्र ‘हिंदुस्तान‘के पूर्व समाचार संपादक देवेंद्र मिश्र का विचार था कि, आज पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर ख़तरा है। आज के पत्रकारों को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।
मासिक पत्रिका ‘स्वतव‘के संपादक कृष्ण कांत ओझा ने कहा कि रामजी मिश्र मनोहर सत्य और अक्षर के साधक थे। पत्रकारिता एक बड़ी शक्ति है, जिसका निर्माण और विध्वंस, दोनों में हीं किया जा सकता है। यदि इसका सदुपयोग हो, जो होना चाहिए तो, समाज और राष्ट्र का बहुत भला हो सकता है।
श्री मिश्र के पुत्र और वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानवर्धन मिश्रने कहा कि,पाटलिपुत्र के इतिहास के संबंध में मनोहर जी की गहरी दिलचस्पी थी।इसके लिए उन्होंने बरसों अथक श्रम किया।तब जाकर एक ऐसा मूल्यवान ग्रंथ प्रकाश में आया,जो साहित्य की एक बड़ी धरोहर और संदर्भ–ग्रंथ है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि, मिश्र जी पत्रकारिता के पुरोधा व्यक्तित्व थे। उन्होंने अपनी तेजस्वी लेखनी से जो कुछ लिखा, वह हमारी धरोहर है।
विश्व संवाद केंद्र के संपादक संजीव कुमार, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद,डा ध्रुब कुमार,आशुतोष अनत, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा शांति ओझा, अमियनाथ चटर्जी, राज कुमार प्रेमी, अनुपमा नाथ, डा सुधा सिन्हा,डा विनय कुमार विष्णुपुरी,अंबरीष कांत, पंकज वत्सल तथा डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर डा सविता मिश्र मागधी, डा कुंदन कुमार, सुधा मिश्र, जय प्रकाश पुजारी तथा बाँके बिहारी साव समेत बड़ी संख्या में सुधीजन उपस्थित थे।