सीनियर एडिटर /जितेन्द्र कुमार सिन्हा, जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस) झारखंड कला- संस्कृति प्रकोष्ठ के सौजन्य से ‘भारतीय स्वाधीनता में कला-संस्कृति की भूमिका’ पर आधारित ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। देशभर के प्रबुद्ध वक्ताओं ने अपने अपने विचार व्यक्त किये जो विविधता से परिपूर्ण और नई पीढ़ी के लिए ज्ञानवर्द्धक साबित हुआ।कार्यक्रम का संचालन जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय सचिव और सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना, शिक्षाविद् एवं विदुषी संचालिका श्वेता सुमन ने की। कार्यक्रम का ऑनलाइन संचालन जीकेसी डिजिटल तकनीकी प्रकोष्ठ के महासचिव सौरभ श्रीवास्तव ने किया।कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ करते हुये जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि आज का विषय कोऐसा है, जिसमें भारतीय स्वाधीनता के दौरान अनाम योद्धओं को याद करने का मौका मिला है। विभिन्न विधाओं के लोग चाहे वे कला संस्कृति, अध्यात्म, पत्रकार, साहित्यकार क्षेत्र के हों, सबने अपना अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जो अविस्मरणीय है। निःसंदेह उनकी चर्चा किये बिना स्वाधीनता संग्राम को सही परिपेक्ष्य में नहीं जान पाएंगे और न ही अनाम शहीदों को याद कर पाएंगे। पूरे संग्राम में वैचारिक एकता स्थापित कर उसका प्रवाह करने में कला-संस्कृति माध्यम से रचनाकारों, नाट्यकर्मियों, वादकों, गायकों का योगदान अतुल्य है।श्वेता सुमन ने प्रस्तावना में कहा है कि विश्व की सबसे प्राचीन इतिहास में संस्कृति का पर्याय भारत है। भारत की संस्कृति उदयीमान सूर्य के समान वसुधैव कुटुम्बकम का अनुकरण करती हुई अनेकता में एकता की विशिष्टता को मूर्तरूप से जीती है। देश की आजादी तक के कालचक्र में भारत की कला संस्कृति का विशेष योगदान रहा है। प्रस्तावना में संस्कृति संरक्षण का संदेश देती हुई स्वरचित पंक्तियाँ को श्वेता सुमन ने कुछ यूं कहा-“….तुम भूल न जाना उस योगदान को/उन योद्धा के गौरव गान को अपनी कलम से जिसे उकेरा है /कला संस्कृति के स्वाभिमान को बाजार में मोल लगा न देना /भारत के सम्मान को, व्यापार की भेंट चढ़ा न देना/अश्लील इसे बना न देना, इसका जो मोल लगाओगे/क्या स्वाभिमान बेच के खाओगे,ये हाल रहा तो शायद इक दिन/आत्मसामान ही गिरवी पाओगे।सशक्त चेतना का संचार हो जिससे/वो साधन कहाँ से लाओगे संस्कृति कैसे बचोगे/नईपीढ़ी को क्या सिखलाओगे…”जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रेम कुमार ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि से लेकर परिणति तक की चर्चा करते हुए कहा कि समाज को कला- विधाएं ही प्रेरित करती आ रही हैं। हमारे युवाओं को भी इससे लाभन्वित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता प्राप्ति के लिए देश के अनेक कलाकारो ने अपना संपूर्ण सहयोग दिया और उनके कार्य के द्वारा ही हमें स्वाधीनता प्राप्त करने में सफलता मिली थी।जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं झारखंड कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के प्रभारी पूर्णेन्दु पुष्पेश ने कहा कि कला-संस्कृति ही वैचारिक परिपक्वता लाने में सक्षम हैं। स्वाधीनता संग्राम में गरम दल हो या नरम दल दोनो ने कला विधाओं का भरपूर सहयोग लिया था। त्रासदी है कि आज कला और कलाकारों के महत्व को नकारा जा रहा है, इसलिए इस पर प्रबुद्ध कलाकारों को काम करने की जरूरत है।उक्त अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार, अधिवक्ता, पूर्व शिक्षिका और महिला उत्थान पर प्रगतिशील महिलाओं की प्रेरणाश्रोत माधुरी सिन्हा, अनेक सम्मान प्राप्त शिक्षिका, प्रस्तोता एवं साहित्यकार गीता कुमारी, कस्तूरी सिन्हा, सिंगरोली से शिक्षाविद्, साहित्यकार एवं शास्त्रीय नृत्यकला में निपुण पेशे से शिक्षिका वैशाली तरूण, जीकेसी के झारखंड कला संस्कृति सचिव रजत नाथ ने भी ‘भारतीय स्वाधीनता में कला-संस्कृति की भूमिका’ पर अपने अपने विचार व्यक्त किये।कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन चर्चित उपन्यासकार एवं जीकेसी झारखंड कला-संस्कृति महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्षा अनिता रश्मि ने किया।