जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 05 नवम्बर :: संसार के सभी प्राणियों का पाप पुण्य का लेखा-जोखा रखने के भगवान चित्रगुप्त यमलोक में विराजमान हैं। महाराज यमराज मनुष्य के मृत्यु के उपरांत मनुष्य के कर्मों के अनुसार दण्ड निर्धारित करते हैं उसके बाद हीं, स्वर्ग-नर्क का दरवाजा खोला जाता है और यह दंड महाराज चित्रगुप्त के लेखा-जोखा के आधार पर दिया जाता है।भगवान चित्रगुप्त प्रमुख हिन्दू देवताओं में एक हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करते हैं। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रुप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं और अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं और इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के “प्रथम न्यायाधीश” भगवान चित्रगुप्त ही करते हैं।
विज्ञान ने यह भी यह सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं । इसे हजारों बर्षों पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया है।
शनि देव जिस प्रकार सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं, उसी प्रकार भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश है। मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार भगवान चित्रगुप्त के पास है, अर्थात किसे स्वर्ग मिलेगा और किसे नरक। भगवान चित्रगुप्त जी भारत [आर्यावर्त] के कायस्थ वंश के जनक देवता हैं। कायस्थ भगवान चित्रगुप्त के वंशज है।
भगवान कायस्थ धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज द्वारा पाप-पुण्य के निर्णय के अनुसार ही, न्यायकर्ता, महाराज यमराज भी पालन करते हैं।
चित्रगुप्त महाराज का मंत्र है-
ॐ नमो भगवते चित्रगुप्ताय नमः अस्त्र लेखनी मसि एवं तलवार असि जीवनसाथी सुर्यपुत्री दक्षिणा नंदिनी एरावती शोभावती
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा की कई संताने हुई थी, जिनमें ऋषि वशिष्ठ, नारद और अत्री जो उनके मन से पैदा हुए थे और उनके शरीर से पैदा होने बालों पुत्र में, धर्म, भ्रम, वासना, मृत्यु और भरत सर्व विदित है, लेकिन भगवान चित्रगुप्त के जन्म अवतरण की कहानी भगवान ब्रह्मा जी के अन्य बच्चों से कुछ भिन्न है। भगवान चित्रगुप्त का जन्म भगवान ब्रह्मा जी के काया (शरीर) से हुआ है, इसलिये भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ जाति की संज्ञा से नामित किया गया है। भगवान चित्रगुप्त के 12 पुत्र थे। भगवान चित्रगुप्त की दो पत्नी थी। पहली पत्नी देवी शोभावती थी, जिससे 8 पुत्र और दूसरी पत्नी देवी नंदिनी थी, जिससे 4 पुत्र हुए थे। इस प्रकार भगवान चित्रगुप्त के कुल 12 है। इन पुत्रों को भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्यभानु, चारु, सुचारु, चित्र (चित्राख्य), मतिभान (हस्तीवर्ण), हिमवान (हिमवर्ण), चित्रचारु, चित्रचरण और अतीन्द्रिय (जितेंद्रिय) नाम से नामित किया गया है।
भगवान चित्रगुप्त के इन 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकि की 12 कन्याओं से हुआ था जिससे कायस्थों की ननिहाल नागवंशी है। माता नंदिनी के 4 पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा ऐरावती एवं शोभावती के 8 पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था।
भारत के कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्यभारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे थे।
भाईदूज के दिन भगवान चित्रगुप्त की जयंती मनाया जाता है। इस दिन पर – दवात की पूजा (कलम, स्याही और तलवार पूजा) की जाती है।
कायस्थ लोग 24 घंटे के लिए कलम का उपयोग नहीं करते हैं, क्योंकि इसके पीछे कहानी है कि जब भगवान राम के राजतिलक में भगवान चित्रगुप्त का निमंत्रण छुट गया था, जिसके कारण भगवान् चित्रगुप्त ने नाराज होकर रख दी थी कलम। उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था। इसलिए परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानि किसी भी तरह का का हिसाब – किताब नही करते है। किवदंतियों यह है कि जब भगवान् राम, दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रखकर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राजतिलक की तैयारी शुरू कर दीI राजतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है, तब पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I
सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर (श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: कलम-दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ही है I