पटना, २४ जनवरी। संस्कृत और हिन्दी के मनीषी विद्वान पं राम नारायण शास्त्री एक महान हिन्दी सेवी ही नहीं, प्राच्य साहित्य के महान अन्वेषक भी थे। वे साहित्य, समाज और राजनीति में भी समान हस्तक्षेप रखते थे। उनकी सरलता और विनम्रता अनुकरणीय थी। वे अपने साहित्यिक और सामाजिक अवदानों के लिए सदैव जीवित रहेंगे।यह बातें मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में पं राम नारायण शास्त्री स्मारक न्यास के तत्त्वावधान में आयोजित स्मृति-सह-सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद ने कही। इस अवसर पर, उन्होंने पूर्व विधायक कामेश्वर चौपाल तथा सुप्रसिद्ध साहित्यसेवी प्रो दिनेश प्रसाद सिंह को ‘अक्षर-पूरुष पं राम नारायण शास्त्री स्मृति सम्मान’ से अलंकृत किया। शास्त्री जी की विदुषी भार्या पुण्य-ऋचा ईश्वरी देवी की स्मृति में प्रतिवर्ष दिया जाने वाला अलंकरण ‘ईश्वरी देवी मातृ-शक्ति सम्मान’ से पटना की नवनिर्वाचित महापौर सीता साहू तथा उपमहापौर रेशमी चंद्रवंशी को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर इस वर्ष का ‘ईश्वरी देवी सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ-छात्रा पुरस्कार’, जमुई की छात्रा प्रिया राज को दिया गया। उन्हें २५५१ रु की पुरस्कार राशि भी प्रदान की गई।समारोह की मुख्य अतिथि और चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि शास्त्री जी एक ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने साहित्य, समाज, शिक्षा और अध्यात्म के क्षेत्र में एक तपस्वी साधक की भाँति कार्य किया। शास्त्री जी ने प्राच्य-साहित्य की पांडुलिपियों का संग्रह कर अपने इतिहास की खोज की। समृद्ध इतिहास समाज के समृद्ध भविष्य का नीव गढ़ता है।सभा की अध्यता करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि शास्त्रीजी एक प्रणम्य साहित्यिक साधु-पुरुष थे। जिस प्रकार उन्होंने प्राच्य-साहित्य की दुर्लभ पोथियों और पांडुलिपियों का अन्वेषण, अनुशीलन और सूचीकरण किया वह अप्रतिम है। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री भी रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने अनुशीलन और शोध-साहित्य के संकलन में अत्यंत मूल्यवान कार्य किया। उनके कारण सम्मेलन का पुस्तकालय बहुत समृद्ध हुआ। विधाता की उन पर विशेष कृपा थी। वे विरल पुरुष हुए, जिनका अवतरण और लोकांतरण एक ही दिन, २४ जनवरी को हुआ। ऐसा सुयोग ईश्वरी कृपा-प्राप्त विभूतियों के जीवन में ही घटित होता है। यह भी कितना सुंदर योग है कि उनकी पत्नी का नाम भी ईश्वरी देवी था और उनका भी तिरोधान २४ जनवरी को ही हुआ।पं शास्त्री के पुत्र और न्यास के प्रमुख न्यासी अभिजीत कश्यप ने न्यास की गतिविधियों के संबंध में अपना प्रतिवेदन पढ़ा तथा सबके प्रति कृतज्ञाता ज्ञापित की। कुम्हरार के विधायक अरुण कुमार, वरीय अधिवक्ता सुधीर नारायण, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा मेहता नगेंद्र सिंह, आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत, न्यास के अध्यक्ष डा रमेश चंद्र सिन्हा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन पंकज कुमार ने किया। मंच का संचालन पत्रकार कृष्ण कान्त ओझा तथा गौरव सुंदरम ने संयुक्त रूप से किया।इस अवसर पर वरिष्ठ पद्मश्री विमल जैन, कवि बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, वरिष्ठ अधिवक्ता जनार्दन राय, कृष्ण रंजन सिंह, बीरेन्द्र कुमार यादव, प्रो आर आर सहाय, डा सुमेधा पाठक, शमा कौसर ‘शमा’, कमल किशोर ‘कमल’, सदानन्द प्रसाद, डा संतोष कुमार चौधरी, प्रो सुशील कुमार झा, अनिल श्रीवास्तव, श्वेतांगी राज विद्यार्थी, डा राजन सिन्हा, डा विजय शंकर विद्यार्थी, सत्य नारायण सिंह, विकास भदौरिया, विजय कारवा, अशोक कुमार, अजित भारती समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।