जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 29 जून ::बिहार की राजधानी पटना में पटना जंक्शन से लगभग 35 किलोमीटर दूर, खुसरूपुर प्रखंड स्थित बैकटपुर गांव में, मुगल शासक अकबर के सेनापति मान सिंह द्वारा शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता-पार्वती का निर्माण कराया गया था। इस प्राचीन शिवलिंग में 112 शिवलिंग कटिंग है जिसे द्वादश शिवलिंग से भी जाना जाता है। इसप्रकार यह प्राचीन मंदिर बैकटपुर गांव में है, जहां शिवलिंग रूप में भगवान शिव के साथ माता-पार्वती भी विराजमान हैं। यह प्राचीन और ऐतिहासिक शिव मंदिर को लोग श्री गौरीशंकर बैकुंठ धाम के नाम से भी जानते है।मंदिर में पूजा-पाठ कराने वाले पंडा सुभाष पांडे ने बताया कि अकबर के सेनापति रहे राजा मान सिंह, जब गंगा नदी में जलमार्ग से, बंगाल विद्रोह को खत्म करने के लिए अपने परिवार के साथ रनियासराय जा रहे थे, उसी वक्त राजा मान सिंह की नाव, गंगा नदी स्थित कौड़िया खाड़ में फंस गई। काफी प्रयास करने के बाद भी जब राजा मान सिंह की नाव कौड़िया खाड़ से नहीं निकल सकी, तो पूरी रात मानसिंह को सेना सहित वहीं डेरा डालना पड़ा। सुभाष पांडे ने आगे बताया कि (बुजुर्गों से सुनी गई कहानियों के अनुसार) उस रात को राजा मान सिंह को सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और कौड़िया खाड़ के पहले स्थापित जीर्ण-शीर्ण मंदिर को पुनः स्थापित करने को कहा। मान सिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद यात्रा शुरू की। राजा मान सिंह को बंगाल में उन्हें विजय प्राप्त हुआ। सुभाष पांडे का कहना है कि वर्तमान मंदिर में जो शिवलिंग, माता पार्वती के साथ स्थापित है वह राजा मान सिंह का स्थापित किया हुआ है।सुभाष पांडे ने बताया कि इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां भगवान शिव और पार्वती एक साथ एक ही शिवलिंग रूप में विराजमान हैं। बड़े शिवलिंग में 112 छोटे-छोटे शिवलिंगों को रूद्र कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि बैकटपुर जैसा शिवलिंग पूरी दुनिया में कहीं और नहीं है।उन्होंने बताया कि मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। पुरानी कथाओं के अनुसार महाभारत काल के जरासंध से भी इसका है। मान्यताओं के अनुसार, मगध क्षेत्र के राजा जरासंध के पिता बृहद्रथ भगवान भोलेनाथ का भक्त था। शास्त्रों के अनुसार, प्रतिदिन वह गंगा किनारे आते थे और भगवान भोलेनाथ की पूजा करते थे। इसी जगह पर एक ऋषि मुनि ने राजा बृहद्रथ को संतान उत्पत्ति के लिए एक फल दिया था, राजा बृहद्रथ को दो रानियाँ थी, इसलिए राजा बृहद्रथ ने फल के दो टुकड़े कर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया था। फलस्वरूप दोनों रानियों के एक पुत्र के अलग-अलग टुकड़े हुए थे जिसे जंगल में फेंकवाया गया था। उसके बाद उसे जोड़ा नाम की राक्षसी ने जोड़ दिया जिसे जरासंध के नाम से जाना गया। जरासंध भगवान शंकर का बहुत बड़ा भक्त था। जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से आकर पूजा करता था। जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहने रहता था। जरासंध को भगवान शंकर का वरदान था कि जब तक उसके बांह पर शिवलिंग रहेगा तब तक उसे कोई हरा नहीं सकता है। जरासंध को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया था और तब वह मारा गया था।सुभाष पांडे ने बताया कि इस मंदिर को रामायण से भी जोड़ा जाता है। रामायण में बैकटपुर मंदिर की चर्चा है। प्राचीन काल में गंगा के तट पर बसा यह क्षेत्र बैकुंठ वन के नाम से जाना जाता था। आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुंठ के रूप में हुई है। लंका विजय के बाद रावण को मारने से जो ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, उस पाप से मुक्ति के लिए भगवान श्रीराम इस मंदिर में आए थे। शिवरात्रि के मौके पर यहां पांच दिनों तक मेला लगा रहता है। बिहार के बाबाधाम के रूप में माना जाता है गौरीशंकर बैकुंठधाम मंदिर।उन्होंने बताया कि श्री गौरीशंकर बैकुंठधाम मंदिर धार्मिक आस्था का केन्द्र सदियों से रहा है। यह धाम शिवलिंग में 108 रूद्र और शिव-पार्वती का संयुक्त रूप है इसलिए इस मंदिर को अद्धितीय पहचान मिला है। भक्तों की इस मंदिर पर अगाध श्रद्धा है। मान्यता है कि सच्चे मन से बैकुंठधाम में भोले शंकर की जो पूजा करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। सावन माह में इस मंदिर में लाखों की संख्या में लोग जलाभिषेक करते हैं। जलाभिषेक के लिए पटना के कलेक्टेरिएट घाट या फतुहा के त्रिवेणी कटैया घाट से हजारों की संख्या में लोग रविवार को जल उठा कर रात भर की यात्रा कर सोमवार को जल चढाते है। काशी में विश्वनाथ और देवधर में बैधनाथ धाम के बीच इस मंदिर को बिहार का बाबाधाम कहा जाता है। चीनी यात्री फाह्यान ने यात्रा वृतांत में नालंदा दौरे के दौरान बैकठपुर मंदिर की चर्चा की है। लंका विजय के बाद रावण को मारने से जो ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था, उस पाप से मुक्ति के लिए श्रीराम जी ने इस मंदिर में आए थे। यह भी कहा जाता है कि यहां आने के लिए गंगा नदी के उस तरफ के एक गांव में श्रीराम जी ने रात्रि विश्राम किया था, जिसके कारण कारण उस गांव का नाम राधवपुर पड़ा जो वर्तमान में वैशाली जिले के राधोपुर के नाम जाना जाता है।सुभाष पांडे ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं इस मंदिर के भक्त।पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व वाले इस मंदिर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आते-रहते हैं। यही नहीं बैकटपुर मंदिर में पुरी के शंकराचार्य जगतगुरू निश्चलानद जी भी 2007 में आ चुके हैं।
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