प्रदीप कुमार, पटना, 11 नवम्बर ::’उगते सूरज की पूजा’* तो संसार का विधान है, पर केवल और केवल हम ‘भारतवासी’ अस्ताचल सूर्य की भी अराधना करते हैं, और वो भी, उगते सूर्य से पहले। अगर ‘उदय’ का ‘अस्त’ भौगोलिक नियम है, तो ‘अस्त’ का ‘उदय’ प्राकृतिक और आध्यात्मिक सत्य।छठ पर्व बिहार और उत्तर प्रदेश का एक बहुत ही पवित्र, लोकमंगल और मंगलकारक महापर्व है। एक ऐसा पर्व जिसमें जो जहां है वहीं से अपने गाँव शहर लौटने लगता है। अगर नहीं लौट पाता तो वो वहीं इस त्योहार को मनाता है, और जो नहीं कर पाता उसके आंखों में भी इस पर्व के प्रति एक अलग आस्था, एक अलग कशिश होती है। एक ऐसा पर्व जो जात-पात, गरीब- अमीर के भेद-भाव को भूलकर, एक हो जाने का संदेश देता है। गंगा की पावन धारा में भगवान भाष्कर की उपासना, सोचकर ही मन पावन हो जाता है। यही एक पर्व है जिसमें अलौकिक शक्ति का साक्षात्कार होता है। जो पूज्य हैं अर्थात जिनकी पूजा की जाती है, भगवान सूर्य, उनका साक्षात दर्शन होता है, उनको महसूस किया जाता है। यही कारण है कि छठ को महापर्व की संज्ञा दी गई है।सूर्य जो पूरे दिन तपकर, अपनी पूरी ऊर्जा हमें देकर खुद अस्त होते हैं, उनकी पूजा की जाती है। फिर हम अगली सुबह उनके उगने का रात भर इंतजार करते हैं, कि अगली सुबह आप फिर आओ की हम आपकी पुनः पूजा करेंगे। “उग न सूरज देव, अरग के बेरिया” में हम बाट जोहते हैं कि हे सूर्य देव आप प्रकट हों और अपनी ऊर्जा से इस प्रकृति की रक्षा करें।यह पर्व हमें प्रकृति के नजदीक ले जाता है। इसमें प्रयोग होने वाले विभिन्न प्रकार के फल , सूप, टोकरी, ठेकुआ , खीर, सब प्रकृति के ही तो प्रतिनिधित्व करते हैं। तालाब, नदी, पोखर, ये सब भी तो प्रकृति को ही दर्शाते हैं। यह महापर्व एक तरह से प्रकृति के संरक्षण का भी सन्देश देता है। चार दिन तक पूरे विधान और पवित्रता के साथ चलने वाला यह मात्र एक त्योहार ही नहीं, एक पर्व ही नहीं बल्कि एक महापर्व है। छठ पर्व दरअसल एक पूरा समाज शास्त्र है। किसी को भी इंसान बनाये रखता है यह छठ। छठ सिर्फ नाक भर सिंदूर का टीका ही नहीं, यह है सामुहिकता, सामाजिकता, मानवता, स्वच्छता और आपसी सरोकार का सच्चा प्रतिबिंब, एक सही उदाहरण। यही छठ है और है छठ होने की जरूरत। इसे देखने की, इसे महसूस करने की, इसे पूजने की, और इसे समझने की जरूरत है। सूर्य के उपासना और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का भी सन्देश देता है यह महापर्व छठ ।।आप सभी को प्रकृति के अंतिम स्वरूप है और ऊर्जा के अक्षुण्ण श्रोत , भगवान भास्कर की अराधना का पर्व ‘छठ’ ।