आभा सिन्हा, पटना::आजकल प्रायः देखा जाता है की लड़की की शादी होते ही उसके मायके वाले उसके ससुराल वालों पर हावी होना चाहते है, जिसके परिणाम स्वरूप लड़की के ससुराल में कलह शुरु हो जाता है और यह सर्वविदित है कि जिस घर में लड़कियों की परवरिश की नीव कमजोर होती है या उसके मायके वाले लड़की के ससुराल में हावी होती है तो उसका ससुराल की गृहस्थ जीवन दुखमय होता है। आज हर दिन किसी न किसी के घर का माहौल, खराब हो रहा है। इसका मूल कारण है लड़की के मायके वालों की अनावश्यक लड़की की ससुराल में दखलंदाजी। प्रायः देखा जाता है कि लड़कियों के मायके वाले, अपनी लड़कियों को सिनेमा में दिखाये गए दृश्यों के अनुरूप, ढालने और अपनी शौक को पूरा करने के लिए अपने धर्म, संस्कार से हट कर, लड़कियों में संस्कार विहीन शिक्षा देते हैं, परिणाम होता है लड़कियों में सामाजिक, सांस्कृतिक और घरेलू जानकारी से पुरी तरह अनभिज्ञ रहती है। वहीं मायके वालों की अकारण हस्तक्षेप करने और लड़की की अयोग्यता के कारण, लड़की के मायके और ससुराल में आपसी तालमेल का अभाव होने लगाता है, जिसके कारण पारिवारिक जीवन कलह के साथ शुरु होता है और नतीजा दिनों दिन बुरा होता है।मायके वाले अपनी लड़कियों को बचपन से चकाचौंध, पश्चिमी सभ्यता, सिनेमा की आधुनिकता की चादर से पुरी तरह ढक देती है और इस आडम्बर को बरकरार रखने का दवाब शादी के बाद भी अपनी लड़की पर बनाए रखना चाहती है इसी का बुरा असर, लड़का और लड़की के घर बसने से पहले ही, तनाव, झगड़ा-झंझट के साथ बिखराव की स्थिति शुरु हो जाता है। मायके में इस तरह की परवरिश में पली-बढ़ी लड़कियां अपने आप को खुले विचार की मानती है और पश्चिमी सभ्यता, सिनेमा का कुप्रभावों के प्रभावित रहने के कारण बड़े-बुजुर्ग की इज्जत करना तो दूर की बात है। उसे तो समाज का भय भी नही होता है, लाज-लज्जा नहीं होता है, शिष्टाचार नही होता है। इसी का परिणाम होता शादी-शुदा जिंदगी का नर्क होना।ऐसी विचार की लड़कियां अपनी खूबसूरती, बनावटी चाल ढाल, झूठ बोलने में अपने को काबिल, झूठे घमंड और अज्ञान को ज्ञान का भंडार समझती है। इतना ही नहीं बल्कि अपनों से अधिक गैरों की राय लेना, परिवार से कट कर रहना, अहंकार के वशीभूत होकर रहना, इन सभी कारणों से वे अपना जीवन ही नर्क कर लेती है।मायके वाले शिक्षा के घमँड में अपनी लड़कियों में आदर-भाव, अच्छी बातें, घर के कामकाज सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते है। मायके वाले रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही नही सिखाती है। परिणाम होता है लड़कियाँ पारिवारिक जीवन, सामाजिक मर्यादा, लोक लिहाज से अनभिज्ञ रहना।हद तो यह हो गई कि पहले शादी के समय लड़के वालों को शादी की बात करते वक्त लड़की की माता-पिता कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य में दक्ष है, लेकिन अब लड़की की माता-पिता शादी तय करते समय कहते हैं कि मेरी बेटी नाजों से पली है। आज तक हमने उससे तिनका भी नहीं उठवाया है। परिणाम होता है कि लड़की की माँ खुद की रसोई से ज्यादा, बेटी के घर (सुसराल) में क्या बना, क्या हो रहा है, कैसे बेटी रह रही है, कैसे ऐशो आराम से रहे इस पर ज्यादा ध्यान देती हैं। भले ही उनके खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही हो, स्वयं फटे हाल में हो।प्रायः देखा जाता है कि ऐसे लड़कियों के पास कुत्ते-बिल्ली आदि के लिये समय बहुत रहता है, लेकिन परिवार के लिये समय नहीं होता है।