अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर का भूमि पूजन करेंगे. इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ तमाम गणमान्य लोग उपस्थित रहेंगे. इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक लेख लिखा है. इसमें उन्होंने भूमि पूजन को लेकर लिखा है कि नि:संदेह यह अवसर उल्लास, आह्लाद, गौरव एवं आत्मसन्तोष का है, सत्यजीत करूणा का है. हम भाग्यशाली हैं कि प्रभु श्रीराम ने हमें इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी होने का सकल आशीष प्रदान किया है.मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का लेख…श्री रामलला विराजमानजासु बिरहॅं सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पॉंती।।रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता।।सकल आस्था के प्रतिमान रघुनन्दन प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली धर्मनगरी श्रीअयोध्या जी की पावन भूमि पर श्रीरामलला के भव्य और दिव्य मंदिर की स्थापना की प्रक्रिया गतिमान है.लगभग 5 शताब्दियों की भक्तपिपासु प्रतीक्षा, संघर्ष और तप के उपरांत, कोटि-कोटि सनातनी बंधु-बांधवों के स्वप्न को साकार करते हुए 5 अगस्त 2020 को अभिजीत मुहूर्त में मध्याह्न बाद 12.30 से 12.40 के बीच आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के कर-कमलों से श्री रामलला के चिरअभिलाषित भव्य-दिव्य मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी.भाव-विभोर कर देने वाली इस वेला की प्रतीक्षा में पांच शताब्दियां व्यतीत.नि:संदेह यह अवसर उल्लास, आह्लाद, गौरव एवं आत्मसंतोष का है, सत्यजीत करूणा का है. हम भाग्यशाली हैं कि प्रभु श्रीराम ने हमें इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी होने का सकल आशीष प्रदान किया है. भाव-विभोर कर देने वाली इस वेला की प्रतीक्षा में लगभग पांच शताब्दियां व्यतीत हो गईं, दर्जनों पीढियां अपने आराध्य का मंदिर बनाने की अधूरी कामना लिए भावपूर्ण सजल नेत्रों के साथ ही, इस धराधाम से परमधाम में लीन हो गईं. किंतु प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा.वास्तव में दीर्घकालीन, दृढ़प्रतिज्ञ, संघर्षमय और भावमयी कारूणिक प्रतीक्षा की परिणति अंतत: सुखद ही होती है. आज वह शुभ घड़ी आ ही गई कि जब कोटि-कोटि सनातनी आस्थावानों के त्याग और तप की पूर्णाहुति हो रही है. मर्यादा के साक्षात प्रतिमान, पुरूषोत्तम, त्यागमयी आदर्शसिक्त चरित्र के नरेश्वर, अवधपुरी के प्राणपिय राजा श्रीराम आज अपने वनवास की पूर्णाहुति कर हमारे हृदयों के भावपूरित संकल्प स्वरूप सिंहासन पर विराजने जा रहे हैं.शुभ परिणाम का उत्सव मनाने का अवसर है.सत्य ही कहा गया है, आस्था से उत्पन्न भक्ति की शक्ति का प्रताप अखंड होता है. श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण में अवरोध विगत पांच शताब्दियों से सनातन हिंदू समाज की आस्थावान सहिष्णुता की कठोर परीक्षातुल्य था. आज उस परीक्षा के शुभ परिणाम का उत्सव मनाने का अवसर है. श्री रामलला विराजमान की भव्य प्राण-प्रतिष्ठा भारत की सांस्कृतिक अंतर्रात्मा की समरस अभिव्यक्ति का प्रतिमान सिद्ध होगा.श्री राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण हेतु भूमिपूजन के बहुप्रतीक्षित अवसर पर आज सहज ही दादागुरू ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज और पूज्य गुरूदेव ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज का पुण्य स्मरण हो रहा है.गोरक्षपीठ के संघर्ष को किया याद.मैं अत्यंत भावुक हूं कि हुतात्माद्वय भौतिक शरीर से इस अलौकिक सुख देने वाले अवसर के साक्षी नहीं बन पा रहे किंतु आत्मिक दृष्टि से आज उन्हें असीम संतोष और हर्षातिरेक की अनुभूति अवश्य हो रही होगी.ब्रितानी परतंत्रता काल में श्रीराममंदिर के मुद्दे को स्वर देने का कार्य महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने किया था. सन् 1934 से 1949 के दौरान उन्होंने राम मंदिर निर्माण हेतु सतत् संघर्ष किया. 22-23 दिसम्बर 1949 को जब कथित विवादित ढांचे में श्रीरामलला का प्रकटीकरण हुआ, उस दौरान वहां तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर, गोरक्षपीठ महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज कुछ साधु-संतों के साथ संकीर्तन कर रहे थे. 28 सितंबर 1969 को उनके ब्रह्मलीन होने के उपरांत अपने गुरूदेव के संकल्प को महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपना बना लिया, जिसके बाद श्री राम मंदिर निर्माण आंदोलन के निर्णायक संघर्ष की नवयात्रा का सूत्रपात हुआ.साम्प्रदायिक तुष्टीकरण की विभाजक राजनीति पर हमला.राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मार्गदर्शन, पूज्य संतों का नेतृत्व एवं विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में आजादी के बाद चले सबसे बड़े सांस्कृतिक आंदोलन ने न केवल प्रत्येक भारतीय के मन में संस्कृति एवं सभ्यता के प्रति आस्था का भाव जागृत किया अपितु भारत की राजनीति की धारा को भी परिवर्तित किया. 21 जुलाई, 1984 को जब अयोध्या के वाल्मीकि भवन में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ था तो सर्वसम्मति से पूज्य गुरूदेव गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज को अध्यक्ष चुना गया. तब से आजीवन श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज अध्यक्ष रहे. पूज्य संतों की तपस्या के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय वैचारिक चेतना में विकृत, पक्षपाती एवं छद्म धर्मनिरपेक्षता तथा साम्प्रदायिक तुष्टीकरण की विभाजक राजनीति का काला चेहरा बेनकाब हो गया.गुरु को किया याद.वर्ष 1989 में जब मंदिर निर्माण हेतु प्रतीकात्मक भूमिपूजन हुआ तो भूमि की खोदाई के लिए पहला फावड़ा स्वयं अवैद्यनाथ महाराज एवं पूज्य संत परमहंस रामचंद्र दास जी महाराज ने चलाया था. इन पूज्य संतों की पहल, श्रद्धेय अशोक सिंघल जी के कारण पहली शिला रखने का अवसर श्री कामेश्वर चौपाल जी को मिला. आज श्री कामेश्वर जी श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के सदस्य होने का सौभाग्य धारण कर रहे हैं.जन्मभूमि की मुक्ति के लिए बड़ा और कड़ा संघर्ष हुआ है. न्याय और सत्य के संयुक्त विजय का यह उल्लास अतीत की कटु स्मृतियों को विस्मृत कर, नए कथानक रचने, और समाज में समरसता की सुधा सरिता के प्रवाह की नवप्रेरणा दे रहा है.राजनीतिक उपेक्षा के भंवर जाल में उलझी रही अवधपुरी, सनातन संस्कृति के प्राण प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली हमारे शास्त्रों में मोक्षदायिनी कही गई है. आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश प्रदेश सरकार इस पावन नगरी को पुन: इसी गौरव से आभूषित करने हेतु संकल्पबद्ध है. श्रीअयोध्या जी वैश्विक मानचित्र पर महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अंकित हो और इस धर्मधरा में राम राज्य की संकल्पना मूर्त भाव से अवतरित हो, इस हेतु हम नियोजित नीति के साथ निरंतर कार्य कर रहे हैं. वर्षों तक राजनीतिक उपेक्षा के भंवर जाल में उलझी रही अवधपुरी, आध्यात्मिक और आधुनिक संस्कृति का नया प्रमिमान बनकर उभरेगी.धर्म और विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता बहेगी.यहां रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं. विगत 3 वर्षों में विश्व ने अयोध्या की भव्य दीपावली देखी है. अब यहां धर्म और विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता और समृद्धि की बयार बहेगी.निश्चित रूप से, 5 अगस्त को श्रीअयोध्या जी में आयोजित भूमिपूजन/शिलान्यास कार्यक्रम में सहभागिता हेतु प्रभु श्रीराम के असंख्य अनन्य भक्तगण परम् इच्छुक होंगे. किंतु वर्तमान वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा. इसे प्रभु इच्छा मानकर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए. आदरणीय प्रधानमंत्री जी सवा सौ करोड़ देशवासियों की आकांक्षाओं के प्रतिबिंब हैं, वह स्वयं भूमिपूजन/शिलान्यास करेंगे. यह प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव का क्षण होगा. आदरणीय प्रधानमंत्री जी के कारण ही देश और दुनिया लगभग पांच शताब्दी बाद इस शुभ मुहूर्त का अहसास कर पा रहा है.5 अगस्त, 2020 को भूमिपूजन/शिलान्यास न केवल मंदिर का है वरन्, एक नए युग का भी है. यह नया युग प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण का है. यह युग मानव कल्याण का है. यह युग लोक कल्याण हेतु तपोमयी सेवा का है. यह युग रामराज्य का है.4 और 5 अगस्त को श्रद्धालुजन अपने घर पर दीपक जलाएं.भाव-विभोर करने वाले इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रत्येक देशवासी का मन प्रफुल्लित होगा, हर्षित-मुदित होगा. किंतु स्मरण रहे, प्रभु श्रीराम का जीवन हमें संयम की शिक्षा देता है. इस उत्साह के बीच भी हमें संयम रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत शारीरिक दूरी बनाये रखना है क्योंकि यह भी हमारे लिए परीक्षा का क्षण है. अत: मेरी अपील है कि विश्व के किसी भी भाग में मौजूद समस्त श्रद्धालुजन 4 एवं 5 अगस्त, 2020 को अपने-अपने निवास स्थान पर दीपक जलाएं, पूज्य संत एवं धर्माचार्यगण देवमंदिरों में अखंड रामायण का पाठ एवं दीप जलाएं. निर्माण का स्वप्न पालकर पवित्र तप करने वाले तथा ऐसे ऐतिहासिक क्षण का प्रत्यक्ष किये बिना गोलोक पधार चुके अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें. पूर्ण श्रद्धाभाव से प्रभु श्रीराम का स्तवन करें.
धीरेन्द्र वर्मा की रिपोर्ट.