पटना, ९ दिसम्बर। अंग्रेज़ी फ़ौज की नौकरी छोड़कर सवतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े, अपने समय के अत्यंत चर्चित और अक्खड़ कवि आचार्य रामप्रिय मिश्र ‘लालधुआँ’, एक विद्रोही कवी थे। वे सुंदर समाज का सपना देखने आले एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने एक डरावना समाज देखा और जीवन भर तिल-तिल कर अपने भीतर की आग से जलते रहे और धुआँ सा बिखर गए। समाज की विसंगतियाँ उन्हें वेचैन करती थी और वे कहीं भी स्थिर नही रह सके। अभाव-ग्रस्त और पीड़ित जनों के लिए लिखते रहे और यही उनकी भी नियति बन गई। एक घर नही बना सके। आख़िरी दिनों में फुटपाथ के हो गए। पीड़ा की किसी घनी शाम में मदिरा का सहारा लिया, तो मदिरा ही घर-द्वार हो गई! फिर तो उससे तभी मुक्ति मिली, जब इस जीवन से ही मुक्ति हुई। एक अत्यंत प्रतिभाशाली और प्रयोगधर्मी महान कवि का उतना ही दुखद अंत हुआ।
यह बातें, बुधवार को, स्मृति-शेष कवि ‘लालधुआँ’ जी के पुण्य-स्मृति दिवस पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि लालधुआँ जी संस्कृत और हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान थे किंतु उनकी काव्य-भाषा अत्यंत सरल, सहज, आमजन की भाषा थी, जिनके लिए वे जीवन-पर्यन्त संघर्षरत रहे। दो बार जेल की यातनाएँ सही। पहली बार अंग्रेज़ी हुकूमत में दूसरी बार समाजवादी-आंदोलन में। ‘काल-सर्प’ (काव्य), ‘औरत और अरस्तू’ (नाटक), ‘ताज महल’ आदि डेढ़ दर्जन पुस्तकों के लेखक, ‘वीर बालक’, ‘अरुणोदय’, ‘किशोर भारती’ आदि अनेक पत्रिकाओं के संपादक और संस्कृत के शिक्षक रहे लालधुआँ को अपना जीवन चलाने के लिए, प्रकाशन-संस्थानों में ‘वर्ण-संशोधक’ के कार्य करने पड़े तथा विद्यार्थियों के लिए’सफलता-सोपान’ भी लिखने पड़े। डा सुलभ ने इस अवसर पर प्रतिभाशाली विदुषी अनामिका को लालधुआँ स्मृति-सम्मान’ प्रदान किया। श्री हरि मंदिर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटि के महासचिव सरदार महेंद्रपाल सिंह ढ़िल्लन ने डा सुलभ को गुरुनानकदेव जी पर लिखी ७ पुस्तकें भेंट की
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल को स्वर दिया कि “प्यार करने का ये सिला पाया/ दर-बदर हो गए ठिकाने से/ सारा आलम ही हो गया दुश्मन/ उनको आइना दिखाने से”। कवयित्री सुधा सिन्हा का कहना था कि “जीवन पत्तों का खेल है/ कभी रुलाती, कभी हंसाती है”।
कुमार अनुपम ने आज के कवियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “अक्षर को साधा नहीं, मिला नहीं संस्कार/ जोड़-तोड़ कवि बने, बस मिल गया दरबार”। वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, चित रंजन लाल भारती, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा अर्चना त्रिपाठी, भारती रंजन कुमारी, रवींद्र कुमार सिंह आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं से काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन यगेंद्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर आनंद मोहन झा, आराधना, प्रणब कुमार समाजदार, बीरेन्द्र कुमार मिश्र आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।