टी.पी.एस. कालेज, पटना में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के संयुक्त तत्वाधान में ‘‘सभ्यता का गाॅधीवादी दर्शन’’ विषय पर नियमित व्याख्यान-माला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. आई.एन.सिन्हा, पूर्व अध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना ने सभ्यता के ‘‘गाॅधीवादी दर्शन’’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि आधुनिक दौर ज्ञान एवं सूचना क्रांति का दौर है। इस दौर मेें मानव नियति के उपर उसका अधिपत्य कायम नहीं रह गया है। उन्होंने गाॅधी के हिन्द-स्वराज की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय सभ्यता की प्राकृति मूलतः आध्यात्मिक एवं नैतिक रही है, किन्तु पश्चिमी सभ्यता मुख्यतः भौतिकवादी एवं उपभोगतावादी रही है। विकासवाद के दौर में उपभोगतावाद को ही सभ्यता का प्रयार्य मान लिया गया है। प्रो. सिन्हा ने कहा कि महात्मा गाॅधी ने जिस वैकल्पिक सभ्यता का मोडल पेश किया है उसमें भौतिकता एवं नैतिकता का एक संतुलन है। इस अवसर पर पटना विश्वविद्यालय के सेवानिवृत प्रो. एन.पी.तिवारी ने इस विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि गाॅधी का सभ्यता दर्शन का आधार उनका नैतिक विचार है जो मूलतः सत्य एवं अहिंसा पर आधारित है। उनका मानना है कि गाॅधी वस्तुतः भारतीय सभ्यता के हिमायती थे तथा उन्होंने पाश्चात्य सभ्यता की कटु आलोचना की हैं। उनका मानना है कि भारतीय सभ्यता एक आचरण है जिसका उददे्श्य सम्पूर्ण समाज में समरसता लाना तथा सामाजिक वैमन्सय को दूर करना है।इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् में अध्यक्ष प्रो. आर.सी.सिन्हा ने कहा कि गाॅधी एक सैद्वांतिक दार्शनिक नहीं बल्कि व्यावहारिक एवं पारदर्शी विचारक है। गाॅधी एक दूरदर्शी विचारक थे। गाॅधी ने अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में आधुनिक सभ्यता की त्रासदी का चित्रण किया है जो उत्तर आधुनिक समाज के लिए भी चरित्रार्थ होता है। गाॅधी राजनैतिक मुक्ति के साथ-साथ सांस्कृतिक दासता से भी मुक्ति की बात कहते हैं।पटना विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रो. पूनम सिंह ने सभ्यता एवं संस्कृति में अन्तर करते हुए कहा कि यदि सभ्यता शरीर है तो संस्कृति उसकी आत्मा है। सभ्यता एवं संस्कृति समाज को एक सकारात्मक, प्रगतिशील और समावेशी विकास को इंगित करता है।टी.पी.एस. काॅलेज, पटना के प्रधानाचार्य प्रो. उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने अध्यक्षीय भाषण करते हुए कहा कि आज 21वीं सदी में गाॅधी के विचार बेहद प्रासंगिक है एवं छात्रों को गाॅधी के विचारों को पढ़ने एवं इसके अनुसरण करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि मनुष्य का समाजिक जीवन सभ्यता एवं संस्कृति का समन्वय है। इससेे पूर्व कार्यक्रम के आयोजक सचिव डाॅ. श्यामल किशोर ने बताया की सभ्यता वह आचरण है जिससे मनुष्य अपना फर्ज अदा करता है। फर्ज अदा करने का मतलब नीति का पालन और नीति का पालन का अर्थ है मन एवं इन्द्रियों को बस में रखना। गाॅधी ने कहा है कि हिन्दुस्तान की सभ्यता में सारी बातें मोजूद है। गाॅधी भारतीय जनमानस में अपनी सभ्यता-संस्कृति के प्रति प्रेम एवं स्वाभिमान जगाना चाहते थे। उन्होंने बताया कि गाॅधी नैतिकता पर आधारित भारतीय सम्यता के समर्थक थे तथा मशीन पर आधारित पश्चात् सभ्यता के घोर विरोधी थे।इस अवसर पर प्रो. अंजलि प्रसाद, प्रो. जावेद अख्यतर खाॅ, प्रो. अबू बकर रिजवी, प्रो. एस.ए.नूरी, प्रो. रधुवंश मणी, प्रो. विजय कुमार सिन्हा, प्रो. शैलेश सिंह, डाॅ. राजेश सिंह, डाॅ. उदय कुमार, डाॅ. पंकज कुमार डाॅ. आशिष कुमार, डाॅ. दिवाकर कुमार पाण्डेय के अतिरिक्त श्री मनीष चैधरी श्री रोहन भी उपस्थित थे। कई अन्य शिक्षकों एवं छात्रों ने भी इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण-पत्र भी दिया गया.
कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट.