सीनियर एडिटर -शैलेश तिवारी की रिपोर्ट /पटना।एक शख्स ने कुछ ऐसी दरियादिली दिखाई की पूरा बनारस देखता रहा गया। काशी नरेश को छुड़वाने के लिए अंग्रेजों से भिड़ गया। वह जब चलता था तो देखने वाले दंग रह जाते थे। उसकी बोली के सामने कोई टिक नहीं पाता था। कभी मूछें चमकाता तो कभी गड़ासा चमकाते नजर आता। उसके सामने सबकी बोलती बंद हो जाती थी। लोग मन ही मन उसे गुंडा कहते थे मगर वह दिल का राजा था। यह कहानी गुंडा नाटक की है। जिसका मंचन सोमवार शाम राजधानी पटना के प्रेमचंद रंगशाला में 18 वां रंगकर्मी प्रवीण स्मृति नाट्य उत्सव के तीसरे दिन प्रवीण सांस्कृतिक मंच की ओर से किया गया। जयशंकार प्रसाद लिखित इस नाटक को अभिजित चक्रवर्ती द्वारा नाट्यरुपांतरण कर मंच पर साकार किया गया। जिसका निर्देशन चर्चित रंगकर्मी विज्येंद्र टॉक ने किया था। यह नाटक बाबू नन्हकू पर आधारित है। वह 50 साल का हो गया है मगर अब भी अपनी ताकत से गरीबों की आवाज बनता है। इस कहानी में दर्शाया गया है कि किस प्रकार यह किरदार परिस्थितियों के कारण गुंडा बन जाता है। यह 18 वीं शताब्दि की घटना है। जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने से लेकर शोषितों के लिए रक्षक बनने का संघर्ष नाटक का तानाबाना है। वहीं कहानी के मुख्य किरदार की अपनी जिंदगी का संघर्ष और अकेलापन दर्शकों को सोचने पर विवश कर देता है। अद्भूत मंच- सज्जा व लाईटिंग ने इस प्रस्तुति की जीवंतता में भरपूर योगदान दिया। गुंडा की प्रस्तुति पूर्व में कई बार बिहार समेत विभिन्न राज्यों में की जा चुकी है। जिसे दर्शकों की भरपूर प्रशंसा मिली है। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को बांधने में कामयाबी हासिल की। सभी पात्रों ने अपने अभिनय क्षमता से दर्शकों की वाहवाही लूटी। मुख्य किरदार गुंडा ने अपनी संवाद अदायगी से मन मोह लिया। वहीं कई दृश्यों ने मानवीय संवेदनाओं को झकझोरा तो कई ऐसे दृश्य रहे जिसने समाज की कुछ ऐसे तथ्यों को छूआ जिसपर दर्शक सोचने पर विवश हुए। नाटक में बैकग्राउंड लाईट जो शिवलिंग पर पड़ रही थी वह काफी प्रशंसनीय थी। वहीं मंच परिकल्पना प्रस्तुति में अपना भरपूरा योगदान दे रहा था। निर्देशन पक्ष अपनी मेहनत का गवाह बन रहा था जिसे दर्शकों की सराहना मिली। नाटक के पात्रों में नन्हकू सिंह – मृत्युंजय प्रसाद, पन्ना – रुबी खातून, दुलारी – ईशा नारायण, गेंदा – विनीता सिंह, मलुकी – राहुल रंजन, कुबड़ा मौलबी – जफ्फर अकबर, कथावाचक – रोहित चंद्रा, अभिषेक राज, कुमार स्पर्श, सैंटी, संटू, अरविंद जी, अंग्रेज गौरव कुमार अन्य -विवान, विशाल, बलवंत, पीयूष थे। ढोलक – स्पर्श मिश्रा एवं अभिषेक राज, सरंगी – अनिश मिश्रा, संगीत संयोजन – रोहित चंद्रा, संगीत निर्देशक – राजू मिश्रा, सेट – उमेश शर्मा, वस्त्र – परवेज अख्तर, रुप – सज्जा – जितेंद्र कुमार जीतू, प्रकाश परिकल्पना – विनय चौहान, नाट्य रुपांतरण – अभिजित चक्रवर्ती, परिकल्पना एवं निर्देशन – विज्येंद्र टॉक ने किया। नाटक शुरु होने से पूर्व प्रवीण सांस्कृतिक मंच की पूर्व नायिक शिखा कुमारी को श्रद्धांजलि दी गयी। लंबे समय से वह बीमार थी और कुछ समय पहले वह गुजर चुकी हैं। उनकी तस्वीर पर वरिष्ठ रंगकर्मी संजय उपाध्याय, वरिष्ठ साहित्यकार ऋषिकेश सुलभ, वरिष्ठ रंगकर्मी अनिरुद्ध पाठक ने माल्यार्पण कर उन्हें याद किया। इससे पूर्व रंगकर्मी प्रवीण स्मृति समारोह के तीसरे दिन संध्या शाम 4ः30 से नुक्कड़ नाटकों की कड़ी में खेल के आगे सब फेल की प्रस्तुति किलकारी बाल भवन की ओर से अभिषेक राज ड्रामेबाज के निर्देशन में दी गयी। समारोह के चौथे दिन नुक्कड़ नाटकों में क्रिएशन संस्था की ओर से गौतम गुलाल के निर्देशन में यह दौड़ है किसकी और मंच प्रस्तुति में शिवमूर्ति की कहानी कुच्ची का कानून का मंचन विज्येंद्र टॉक के निर्देशन में किया जाएगा।