पटना, २६ दिसम्बर। विशेष आवश्यकता वाले वच्चों पर, कला, संगीत और खेलकूद का गहरा असर होता है। शारीरिक-शिक्षा और रचनात्मक-कार्यों से जोड़कर ऐसे बच्चों मानसिक विकास किया जा सकता है।उनका मनोबल बढ़ाया जा सकता है। विशेष शिक्षकों को चाहिए कि वे अवकाश के क्षणों को भी सकारात्मक, लाभकारी और उत्पादक बनाएँ।
यह बातें गत दिन भारतीय पुनर्वास परिषद के सौजन्य से इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च, बेउर में ‘विशेष बच्चों की शारीरिक-शिक्षा, पुनर्रचना, अवकाश और खेलकूद’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय सतत पुनर्वास शिक्षा कार्यक्रम के समापन तथा दीक्षांत-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के पुनर्वास और उनकी शिक्षा में विशेष-शिक्षकों का कर्तव्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।कार्यशाला में ऐलिम्को, कानपुर के श्रवण-वैज्ञानिक डा ज्ञानेन्दु कुमार सिंह, डा नीरज कुमार वेदपुरिया, दानापुर छावनी द्वारा संचालित विशेष विद्यालय ‘आशा स्कूल’ की प्राचार्या और विशेष शिक्षिका कल्पना झा, नैदानिक-मनोवैज्ञानिक डा गुलज़ार अहमद, डा धनंजय कुमार, डा प्रकाश कुमार मोहंता, विशेष शिक्षक और प्राचार्य प्रेम लाल राय तथा संस्थान के विशेष शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो कपिल मुनि दुबे ने अपने वैज्ञानिक-पत्र प्रस्तुत किए। मंच का संचालन प्रो संतोष कुमार सिंह ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रो मधु माला ने किया। कार्यशाला के सभी 91प्रतिभागी पुनर्वास-कर्मियों एवं विशेष-शिक्षकों को प्रशिक्षण का प्रमाण-पत्र दिया गया।
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