पटना, 19 जुलाई। मैथिली, हिन्दी और ऊर्दू के मनीषी विद्वान और समर्थ साहित्यकार आचार्य फ़ज़लुर्रहमान हाशमी भारतीय दर्शन से अनुप्राणित एक राष्ट्रवादी मुसलमान थे। उन्हें पाली और संस्कृत का भी विशद ज्ञान था। भारतीय-दर्शन और वैदिक-साहित्य का उन्होंने गहरा अध्ययन किया था। इसीलिए उनकी काव्य-रचनाओं में अनेक पौराणिक-प्रसंग प्रमुखता से आए हैं। साहित्यिक मंचों के भी वे कुशल और लोकप्रिय संचालक थे। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत श्री हाशमी अकादमी के सदस्य भी बनाए गए थे। तीनों भाषाओं में उनके द्वारा रचित १७ ग्रंथ उनके महान साहित्यिक अवदान के परिचायक हैं। वे एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्हें मैथिली, हिन्दी और ऊर्दू के पाठक और साहित्यकार समान रूप से सम्मान देते थे।यह बातें शुक्रवार को, आचार्य हाशमी सांप्रदायिक सौहार्द मंच के सौजन्य से, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आचार्य हाशमी की १३ वीं पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृति-सह-सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि आज जब संपूर्ण संसार में सांप्रदायिक सौहार्द पर ग्रहण लगा हुआ है, धार्मिक-कट्टरवाद, जो आतंकवाद का रूप लेता जा रहा है, आचार्य हाशमी अत्यंत प्रासंगिक हैं। सौहार्द के ऐसे ही प्रतीकों से वसुधा में शांति स्थापित हो सकती है। समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने कहा कि मैथिली साहित्य में आचार्य हाशमी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे सांप्रदायिक सौहार्द के मिसाल थे। बिहार लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद करीमी ने प्रो हाशमी की साहित्य-सेवाओं को स्मरण करते हुए कहा कि हाशमी साहब ने जिस तरह ऊर्दू और मैथिली में अपनी कलम से कमाल पैदा किया, उसी तरह हिन्दी की भी सेवा की । इसीलिए हिन्दी ने भी, जो मुहब्बत की भाषा है, हाशमी साहब का उचित सम्मान दिया है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हो रहा यह समारोह इसका प्रमाण है। पूर्व विधायक और पत्रकार इज़हार अहमद, साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कुमार अनुपम, बच्चा ठाकुर, ई आनन्द किशोर मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर, हिन्दी सेवा के लिए वरिष्ठ लेखिका किरण सिंह, ऊर्दू के लिए लेखिका कहकशां तौहीद, मैथिली के लिए सोनी नीलू झा, शिक्षा के लिए मो असलम उद्दीन तथा सांप्रदायिक-सौहार्द के लिए डा शगुफ़्ता ताजवर को ‘आचार्य फ़ज़लुर्रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान’ से विभूषित किया गया। मंचस्थ अतिथियों ने सभी अभिनन्दित मनीषियों को, वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह, प्रशस्ति-पत्र तथा दो हज़ार एक सौ रूपए की सम्मान-राशि देकर सम्मानित किया। डा ठाकुर ने पाक्षिक पत्रिका ‘दूसरा मत’ के स्मृति-विशेषांक का लोकार्पण भी किया। इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। बेगूसराय से आए वरिष्ठ कवि अशांत भोला, शमा कौसर ‘शमा’, डा अर्चना त्रिपाठी, डा तलत परवीन, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, पंकज वसंत, डा मीना कुमारी परिहार, ई अशोक कुमार, मधुरानी लाल, विद्या रानी, डा रेखा भारती मिश्र, मोईन गिरीडीहवी, डा ऋचा वर्मा, प्रीति सुमन, मो फ़हीम, सुनीता रंजन, मंजू झा, नरेंद्र कुमार आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से समारोह को यादगार बना दिया।अतिथियों का स्वागत मंच के सचिव और पत्रिका ‘दूसरा मत’ के संपादक ए आर आज़ाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।वरिष्ठ व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, प्रवीर कुमार पंकज, प्रमेन्द्र शर्मा, शैलेश सिंह शांडिल्य, अजीत आनन्द, डा विजय कुमार, डा अता आबिदी,वीरेंद्र यादव, मनोज कुमार सिन्हा, प्रेम अग्रवाल, डा चंद्र शेखर आज़ाद आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।