पटना, ११ जून। हिन्दी के अनन्य सेवी और मनीषी विद्वान रामधारी प्रसाद ‘विशारद’ के सदप्रयास और सक्रियता से ही बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई थी। वे इसके मुख्य सूत्रधार थे। सबसे पहले इनके ही मन में प्रांतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का विचार आया और उन्होंने देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद की स्वीकृति प्राप्त कर हिन्दी सेवियों का आह्वान किया। फलतः १९ अक्टूबर, १९१९ को मुज़फ़्फ़रपुर के हिंदू भवन में विद्वानों और हिन्दी-प्रेमियों की बैठक हुई, जिसमें साहित्य सम्मेलन की स्थापना का निर्णय लिया गया। विशारद जी हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार और उन्नयन में अपने तपो प्रसूत संकल्प के लिए सदा स्मरण किए जाते रहेंगे। यह बातें, मंगलवार को, साहित्य सम्मेलन में, ‘विशारद’ जी की १२४वीं जयंती पर आयोजित समारोह और लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि विशारद जी, भागलपुर के बौंसी में आहूत हुए, सम्मेलन के १९वें अधिवेशन के सभापति चुने गए थे। इसके पूर्व वे अनेक वर्षों तक सम्मेलन के प्रधानमंत्री और उपसभापति भी रह चुके थे। हिन्दी के उन्नयन के लिए की गयी उनकी सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्हीं के कारण यह संस्था हिन्दी की अमूल्य सेवाएँ कर सकी है।भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर ने कहा कि आज से १०५ वर्ष पहले रामधारी बाबू ने जिस संस्था की नींब डाली आज वह केवल भारतवर्ष में ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आदर से देखी जा रही है। अपने लगाए गए पौधें को विशाल वट-वृक्ष के रूप में पाकर वे स्वर्ग में भी प्रसन्नता की अनुभूति करते होंगे। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, पुस्तकालय मंत्री ई अशोक कुमार, कुमार अनुपम, ई अवध बिहारी सिंह, वरिष्ठ लेखिका विभा रानी श्रीवास्तव तथा चंदा मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए। लघुकथा-गोष्ठी में विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘बेलौस’, अशोक कुमार ने ‘कश्मीरियत’तथा कुमार अनुपम ने ‘ईर्ष्या’ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, बाँके बिहारी साव, डा चंद्रशेखर आज़ाद, विजय कुमार शर्मा, नंदन कुमार मीत, रवींद्र कुमार सिंह, दिगम्बर जायसवाल, भरत कुआर, राहूल कुमार, प्रीन्स शुभम, नरेश कुमार, कुमारी मेनका, डौली कुमारी, अमन वर्मा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।