पटना, ९ फरवरी। भारत की गौरव-गाथा में बिहार का श्रेष्ठतम स्थान है। सुप्रतिष्ठ लेखक डा शशि भूषण सिंह ने अपनी पुस्तक ‘बिहार की गौरव गाथा’ में बिहार की महिमा को व्यापक रूप में प्रकाशवान किया है। लेखक ने गहन श्रम कर, भारत के इतिहास में बिहार के अप्रतिम योगदान को तथ्यात्मक रूप से रख कर ऐतिहासिक कार्य किया है। इस प्रकार लेखक स्वयं बिहार की गौरव गाथा के हिस्सा बन गए हैं।यह बातें, बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन द्वारा प्रकाशित सुप्रसिद्ध लेखक डा शशि भूषण सिंह की पुस्तक ‘बिहार की गौरव गाथा’ का लोकार्पण करते हुए,बिहार विधान परिषद के सभापति डा अवधेश नारायण सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि—- अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि लेखक की लोकार्पित पुस्तक अपनी पुष्ट सामग्री और लेखकीय कौशल से, हिन्दी साहित्य में भी महनीय स्थान बनाने में सफल हुई है। इसमें बिहार का संप्पूर्ण गौरवशाली अतीत समाहित है। विद्वान लेखक ने अत्यधिक श्रम कर, इसके संपूर्ण राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और वैज्ञानिक महिमा का शोधपूर्ण तथ्य और साक्ष्य रखा है। इसमें बिहार के ऐसे अनेक पक्ष उभर कर सामने आए हैं, जिनसे संसार अवगत नहीं है। यह पुस्तक शोधार्थियों और इतिहास के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, अपितु प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए पठनीय और संग्रहणीय है। इसमें बिहार की वंदनीय भूमि का आदिकाल से लेकर वर्तमान-काल तक का एक सुंदर और वैभवशाली चित्र खींचा गया है।यों कहें कि इसमें बिहार की आत्मा का संपूर्ण सौंदर्य मुखरित हुआ है। सच्चे अर्थों में इसापूर्व ५०० वर्ष पहले से लेकर ६ठी शताब्दी तक का भारत का इतिहास, वस्तुतः ‘बिहार’ का ही इतिहास है। आधुनिक काल में भी, पूज्य महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ, भारत की दासता से मुक्ति का इतिहास-प्रसिद्ध संग्राम बिहार के गर्भ से ही उत्पन्न हुआ। साहित्य,संस्कृति, कला, संगीत, ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्रों में भी बिहार का अद्वितीय स्थान रहा है। पुस्तक के लेखक डा शशि भूषण सिंह ने कहा कि यह पुस्तक बिहार की गौरव की गाथा सारी दुनिया में पहुँचा दे, इसी उद्देश्य को मन में धारण कर इसकी रचना की गई है। अपने सामर्थ्य भर बिहार की संपूर्ण कथा लिखने की चेष्टा की गई है। ४२ अध्यायों में बिहार के गौरवशाली इतिहास को समेटने अर्थात ‘गागर में सागर’ भरने का जो प्रयास इस अकिंचन लेखक ने किया है, वह विद्वान पाठकों को समर्पित है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा अरुण कुमार सिंह, डा सुलक्ष्मी कुमारी, दया शंकर सिंह, शमा कौसर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, प्रेमलता सिंह राजपुत, डा बी एन विश्वकर्मा, मोईन गिरीडीहवी, मनोरमा तिवारी, जयप्रकाश पुजारी, श्रीकांत व्यास, बाँके बिहारी साव, अर्जुन सिंह, बच्चा ठाकुर, डा मुकेश कुमार ओझा, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा बबीता कुमारी, डा रेखा भारती, पुरुषोत्तम कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर, प्रो वीरेंद्र झा, शिवानंद गिरि, हृदय नारायण झा, डा कुमारी अंजना, डा पंकज कुमार सिंह, रामाशीष ठाकुर, कमल किशोर’कमल’, अमन वर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद, समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।