पटना, २०मार्च । बहुआयामी सारस्वत व्यक्तित्व के धनी थे डा शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव। वे एक महान शिक्षाविद, समर्थ साहित्यकार, लोकप्रिय राजनेता, कला-संस्कृति के महान पोषक एवं अनेक मानवीय गुणों से युक्त साधु-पुरुष थे। ज्ञान-प्रभा से दीप्त उनका मुख-मण्डल सदैव स्निग्ध मुस्कान से खिला रहता था, जो सहज हीं सबको आकर्षित करता था। वे, आज की बेलगाम और दूषित होती जा रही राजनीति में एक सुदृढ़ साहित्यिक हस्तक्षेप थे।यह बातें, रविवार को, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शैलेंद्र जी यह मानते थे कि, देश की राजनीति को शुद्ध किए विना कुछ भी अच्छा नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक-सेवा के सभी पदों पर, गुणी और विवेक-संपन्न व्यक्तियों का चयन होना चाहिए। अयोग्य और निष्ठा-हीन व्यक्तियों के हाथ में अधिकार जाने से समाज का बड़ा अहित होता है। इसके लिए वे संस्कारित करने वाली और चरित्रवान बनाने वाली शिक्षा के पक्षधर थे। इसीलिए वे एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक संस्था ‘संस्कार भारती’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में संपूर्ण भारत वर्ष में, नयी पीढ़ी को जगाते रहे और उनमें चरित्र और संस्कार के बीज बोते रहे।डा सुलभ ने कहा कि, उनके सुंदर और प्रभावशाली व्यक्तित्व के समान हीं उनकी वाणी, व्यवहार और व्याख्यान-कौशल भी मोहक थे। वे अपने मृदु और सरल व्यवहार से सरलता से सबको अपना बना लेते थे। इन्हीं सदगुणों के कारण उन्हें भारत सरकार ने पद्म-अलंकरण से विभूषित किया। अनेक प्रकार की व्यस्तताओं के बीच भी उन्होंने लेखन के लिए समय निकाला और अपनी दर्जन भर प्रकाशित पुस्तकों से हिन्दी का भंडार भरा। वे एक अधिकारी निबंधकार, कवि और जीवनीकार थे। उनके साहित्य पर लिखते हुए महान साहित्यसेवी प्रभाकर माचवे ने कहा था कि, “शैलेंद्र जी नौ रसों के ही नहीं, दसवें रस, ‘व्यर्थ-रस’ के भी समर्थ साहित्यकार हैं, जो व्यर्थ के संदर्भों को भी रसमय बना देते हैं।”
अतिथियों का स्वागत करती हुईं, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि शैलेंद्र जी साहित्य, संस्कृति, संघर्ष की प्रतिमूर्ति थे। उनकी कर्मठता अद्भुत थी। राष्ट्र और राष्ट्रभाषा के अनन्य भक्त थे। उन्हें कुलपति, अंतर्विश्वविद्यालय बोर्ड का अध्यक्ष, विधायक, सांसद आदि जो दायित्व मिले, उनका पूरी निष्ठा और कौशल से पूरा किया।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, हिन्दी प्रगति समिति, बिहार के अध्यक्ष यशस्वी कवि सत्यनारायण ने कहा कि शैलेंद्र जी अत्यंत ओजस्वी और तेजस्वी वक़्ता थे। कक्षाओं में विद्यार्थीयों को साहित्य पढ़ा रहे हों, अथवा आंदोलन कारियों को संबोधित कर रहे हों, या जे पी आंदोलन के दौरान नुक्कड़ों पर अपने व्याख्यान दे रहे हों, श्रोताओं का दिल जीत लेते थे। मानवता उनके रोम-रोम में बसी थी।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, शैलेंद्र जी के पुत्र पारिजात सौरभ, अभिजीत कश्यप, डा मेहता नगेंद्र सिंह, श्वेता श्रीवास्तव, बच्चा ठाकुर, कमल नयन श्रीवास्तव, रागिनी तथा प्रो उमा सिन्हा ने भी अपने उद्गार में शैलेंद्र जी को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, शायर नाशाद औरंगाबादी, अशोक कुमार, मोईन गिरिडीहवी, सुनील कुमार, काजिम रजा, लता प्रासर, डा मोहम्माद नसरुल्लाह आदि कवियों ने काव्यांजलि देकर शैलेंद्र जी को नमन किया। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा कृतज्ञता-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।वरिष्ठ समाजसेवी रामाशीष ठाकुर, नरेंद्र कुमार झा, संदीप स्नेह, अमन वर्मा, अपूर्व कुमार, गिरीश चंद्र, अभिषेक श्रीवास्तव, श्याम किशोर सिंह ‘विरागी’, राजीव पाण्डेय तथा उमेश प्रसाद समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।