पटना, २२ जून। संकल्प की दृढ़ता किसी भी साधक की आधार भूमि होती है। संकल्प के पीछे, विषय के प्रति गहरा अनुराग होता है। इसी राग और दृढ़ता के आधार पर साधक की सफलता और उपलब्धियाँ निर्धारित होती हैं। वरिष्ठ कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र एक ऐसे ही संकल्प–धनी और अत्यंत परिश्रमी साहित्य–साधक हैं। ८४ वर्ष की आयु में भी इनकी सक्रियता देखते ही बनती है। चकित करने वाला इनका परिश्रम युवाओं के लिए भी प्रेरणास्पद है। हिन्दी भाषा और साहित्य के लिए किया जा रहा उनका श्रम और उनकी मूल्यवान सेवाएं आने वाली पीढ़ियाँ स्मरण रखेंगी।
यह विचार सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन के अर्थ मंत्री पं मिश्र के ८४वें जन्म–दिवस पर आयोजित अभिनंदन–समारोह‘ की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि, पं मिश्र ने बड़े हीं श्रम से अपनी भाषिक और साहित्यिक चेतना को विकसित किया है। वेदों के हिन्दी पद्यानुवाद का इनका कार्य ऐतिहासिक है। डा सुलभ ने उनके सुदीर्घ और सक्रिए जीवन की मंगल कामनाएँ करते हुए, उन्हें पुष्प–हार और वंदन–वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया।
अतिथियों का स्वागत करती हुई सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि पं मिश्र का साहित्यिक अवदान, इस रूप में महत्त्वपूर्ण है कि इन्होंने अपनी काव्य–चेतना आध्यात्मिक तत्त्वों से प्राप्त की हैं। इनमे जो ऊर्जा है, उसका अजस्र स्रोत अध्यात्म ही है। श्री मिश्र इन दिनों भारतीय वांगमय का विशेष रूप से ‘वेदों‘ का गहरा अध्ययन कर रहे हैं।
अपने कृतज्ञता–ज्ञापन के क्रम में कवि मिश्र ने कहा कि, व्यक्ति जब कार्य करना और जीवन से सीखना छोड़ देता है, तभी वह बूढ़ा होता है। किसी को सौ वर्ष तक जीना हो तो उसे निरंतर कार्य करते रहना चाहिए।
इस अवसर पर, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मेहता नगेंद्र सिंह, पं मिश्र की पत्नी मीना मिश्र, कुमार अनुपम, सुनील कुमार दूबे, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, चंदा मिश्र, राज किशोर झा, बाँके बिहारी साव, डा मनोज कुमार गोवर्द्धनपुरी, डा एच पी सिंह, अविनय काशीनाथ, अमित कुमार सिंह, पुरुषोत्तम कुमार आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए तथा कवि को मंगल–कामनाएँ भेंट की। मंच का संचालन सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया.
संजय राय, शिक्षा संवाददाता