सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव जी के जन्म के उपलक्ष्य में कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रकाश पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर जानिए उन गुरुद्वारों के बारे में जिनसे है नानक देव का गहरा नाता।
गुरुद्वारा कंध साहिब जो कि बटाला (गुरुदासपुर) में स्थित है, यही वह जगह है जहां गुरु नानक का बीबी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत् 1544 में ज्येष्ठ माह की 24 तारीख को विवाह हुआ था। यहां गुरु नानक की विवाह वर्षगांठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।
गुरुद्वारा हाट साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है। गुरु नानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहां शाही भंडार के देख-रेख की नौकरी प्रारंभ की। वह यहां पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को ‘तेरा’ शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में स्थित गुरुद्वारा गुरु का बाग में गुरु नानक देव जी का घर था, जहां उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
गुरुद्वारा कोठी साहिब, सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में है जहां नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में गड़बड़ी की आशंका में नानक देव जी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानक देव जी को छोड़ कर माफी ही नहीं मांगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में गुरुद्वारा बेर साहिब वो जगह है जहां नानक देव का ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था। जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे, तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहां पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन वे वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतनाम। गुरु नानक ने वहां एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
गुरुदासपुर में स्थित गुरुद्वारा अचल साहिब वह जगह है जहां अपनी यात्राओं के दौरान नानक देव रुके थे। यहीं पर नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद भी हुआ था। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। यहीं नानक देव जी ने उन्हें बताया था कि ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है।
गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक, गुरुदासपुर में स्थित है। जीवनभर धार्मिक यात्राओं के बाद नानक देव जी ने रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया। सन् 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए।
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