जितेन्द्र कुमार सिन्हा,मुख्य संपादक, 02 सितम्बर ::चन्द्रयान-3 की सफलता के बाद भारत सूर्य के रहस्यों को समझने के लिए आदित्य एल-1 का श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के पीएसएलवी रॉकेट द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शनिवार को को 11 बजकर 50 मिनट पर सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। भारत पहलीबार सूरज से जुड़े तथ्यों को जानने और समझनें के लिए इस तरह के अभियान को अंजाम दिया है। आदित्य एल-1 सूर्य का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए सात वैज्ञानिक पेलोड का एक सेट ले गया है। इसके पेलोड से विभिन्न तरह की जानकारियां जुटाएंगे। इन पेलोड में से चार पेलोड सीघे सूर्य पर नजर रखेंगे और तीन पेलोड सूर्य से जड़े तथ्यों, कणों के बारे में जानकारी एकत्र करेंगे।आदित्य एल-1 अपने साथ सात पेलोड ले जा रहा है इनमें (1) विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ, (2) सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप, (3) आदित्य सोलर विड पार्टिकल एक्सपेरीमेंट, (4) प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य, (5) सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर, (6) हाई एजर्नी एल ऑबिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और (7) मैग्नेट्रोमीटर है। आदित्य एल-1 अभियान पूर्णतः स्वदेशी है। आदित्य एल-1 के सातों वैज्ञानिक पेलोड देश में विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। इसमें बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स की भूमिका है और इसने विजिबल एमिशन लाइन कॉर्नोग्राफ पेलोड तैयार किया है। पुणे के यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स ने सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंगटेलीस्कोप पेलोड बनाया है।आदित्य एल-1 सूर्य का अध्ययन करने वाला मिशन है। इस अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने के लिए भेजा गया है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। लैग्रेंजियन बिंदु वह है, जहां दो वस्तुओं के बीच कार्य करने वाले सभी गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे को निष्प्रभावी कर देते हैं। यही कारण है कि एल-1 बिंदु का उपयोग अंतरिक्ष यान के उड़ने के लिए किया जाता है। दुनियॉं भर में बीते छह दशक में सूर्य से जुड़े 22 मिशन भेजे जा चुके हैं। नासा के पार्कर सोलर प्रोब ने 1000 सेल्सियस से अधिक गर्मी झेली थी। आदित्य एल-1 को इतनी गर्मी नहीं झेलनी होगी, क्योंकि वो नासा के मिशन की तुलना में सूर्य से काफी दूर रहेगा।यह मिशन में, प्रारंभ में अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा, इसके बाद कक्षा को अधिक अण्डाकार बनाया जाएगा और बाद में प्रणोदन के जरिए अंतरिक्ष यान को एल-1 लैंग्रेज पॉइंट पर (बिंदु की ओर) प्रक्षेपित कर दिया जाएगा। जैसे ही अंतरिक्ष यान एल-1 की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र (SOI) से बाहर निकल जाएगा और यहां से बाहर निकलने के बाद क्रूज चरण, जिसे यान को नीचे उतारने वाला चरण कहा जाता है, शुरू होगा और बाद में अंतरिक्ष यान को एल-1 के चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा।आदित्य एल-1 अंतरिक्ष पर सूर्य के असर का पता लगाएगा। इसरो ने इस मिशन के माध्यम से सूर्य से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठाने की जुगत में लग गया है। आदित्य एल-1 अंतरिक्ष यान एल-1 कक्षा के पास स्थापित होने के बाद बिंदु पर स्थापित उपग्रह से सूर्य को बिना रूकावट देख सकेंगा और वहीं से वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम का पता लगाया जा सकेगा। इस मिशन से यह कोशिश किया जाएगा कि (1) सौर गतिविधियों और उससे जुड़े प्रभाव की निगरानी हो सके। (2) अंतरिक्ष मौसम में सूरज के कारण होने वाले बदलाव पर नजर रखा जा सके। (3) उपग्रह पर सूर्य के तापमान के असर की जानकारी मिल सके और (4) गर्मी से उपग्रहों व उपकरणों का जीवन चक्र पर प्रभाव का पता लग सके। इस मिशन पर होने वाले व्यय का अनुमान है कि 400 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च हो सकता है।पृथ्वी का निकटतम तारा सूर्य है, इसलिए अन्य तारों की तुलना में इसका अध्ययन किया जाना ज्यादा आसान है। इसरो के अनुसार, सूर्य का अध्ययन करके आकाशगंगा के तारों के साथ-साथ कई अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ जाना जा सकता है। सूर्य एक अत्यंत गतिशील तारा है जिसमें कई विस्फोटकारी घटनाएं होती हैं और यह सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा भी छोड़ता है। अगर ऐसी विस्फोटक सौर घटना पृथ्वी की ओर भेजी जाती है तो यह पृथ्वी के नजदीकी अंतरिक्ष वातावरण में कई प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकती है, इसलिए सूर्य का अध्ययन करना आवश्यक है। सौर मिशन आदित्य एल-1 सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग की बनावट और इसके गर्म होने की प्रक्रिया, इसके तापमान, सौर विस्फोट का भी अध्ययन करेगा। इसके साथ ही मिशन, सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप का भी अध्ययन करेगा। इसके अलावा आदित्य-एल1 मिशन कोरोनल मास इजेक्शन यानी सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं, इसकी उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।आदित्य एल-1 मिशन भारत के लिए कई मायनों में अहम होगा। मिशन सूर्य भूत, वर्तमान और भविष्य काल के रहस्यों से पर्दा उठने में अहम भूमिका निभाएगा। मिशन के जरिए जो आंकड़े सामने आयेंगे उससे जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर हुए बदलाव की जानकारी मिलेगी। सूर्य की रोशनी से जुड़ी जानकारी पता चलने से भविष्य में इसके प्रभावों का पता चलेगा। हिम युग का रहस्य खुलेगा। पृथ्वी पर कई हिम युग रहे हैं। लोग अबतक नहीं समझ पाय हैं कि आखिर इन हिम युगों की संरचना कैसे हुई थी। सूर्य मिशन के जरीय जो आंकड़ा मिलेगा वो ऐसे रहस्यों से पर्दा उठाने में मददगार होगा।आदित्य एल- 1 मिशन की चुनौतियां भी कम नहीं है। (1) सूर्य-पृथ्वी के बीच की दूरी 15 करोड़ किलोमीटर से अधिक है। (2) अंतऱिक्ष में उपग्रह के टकराने की भी संभावना सबसे अधिक होगी। (3) सूर्य के तापमान और भीषण गर्मी से मिशन को खतरा ज्यादा होगा और (4) उपग्रह में लगे उपकरण कितना काम करते हैं ये भी अहम होगा।आईआईटी कानपुर सूर्य पर शोध करेगा। इसके लिए आईटाईटी कानपुर में जल्द ही सूर्य पर भी शोध शुरू करने के लिए संस्थान में बने अंतरिक्ष, ग्रह एवं खगोलीय विज्ञान एंड इंजीनियरिंग स्पेस विभाग में जल्द इस पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों को शामिल किया जायेगा की वैज्ञानिक किस क्षेत्र में शोध शुरू करें। वहीं चन्द्रमा से जुडे रहस्यों को उजागर करने के लिए टीम पहले से ही रिसर्च कर रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार आदित्य एल-1 के पूरे सफर में लगभग चार महीने लग सकता है।
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