जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना (नई दिल्ली), 15 दिसम्बर ::भौतिक चिकित्सा पद्धति पुरातनकाल से ही चली आ रही है। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी पद्धति से कुबड़ी मालिन और अष्टावक्र ऋषि को ठीक किया था। प्राचीन काल से चली आ रही इस पद्धति को आज मैनिपुलेशन थेरेपी और कायरोप्रैक्टिस के नाम से जाना जाता है जो फिजियोथेरेपी का ही भाग है। यह उद्गार, एम्स नई दिल्ली के जेरीयाट्रिक विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय 10 वीं अंतरराष्ट्रीय भौतिक चिकित्सा सम्मेलन में इंदौर के वरीय फिजियोथेरेपिस्ट डॉ आनंद मिश्रा ने व्यक्त किया। सम्मेलन में आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, श्रीलंका, नेपाल सहित कई अन्य देशों के करीब 1200 भौतिक चिकित्सकों ने भाग लिया।एम्स, नई दिल्ली में जेरीयाट्रिक विभाग में पदस्थापित भौतिक चिकित्सक डॉ ऋचा गोस्वामी ने बताया कि किस तरह से 60 वर्ष से ऊपर के लोगों के टेढ़े-मेढ़े हड्डियों को सही किया जा सकता है।सरकारी फिजियोथेरेपी कॉलेज न्यू सिविल अस्पताल, सूरत के डॉ धवनीत एस शाह ने बताया कि जो व्यक्ति स्ट्रोक के माध्यम से पैरालाइज्ड हो जाते हैं उनके दैनिक क्रिया -कलाप को कैसे सही कर आत्मनिर्भर बनाया जाता है, पर प्रकाश डाला।
समारोह में बिहार कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी एंड आक्यूप्रेशनल थेरेपी, विकलांग भवन ,पटना के फिजियोथेरेपी चिकित्सक डॉ देवव्रत को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए “क्लिनिकल अवार्ड” एवं “चेयरपर्सन “सम्मान से एम्स, नई दिल्ली के वरीय फिजियोथेरेपिस्ट डॉ प्रभात रंजन द्वारा सम्मानित किया गया। फिजियोथेरेपी के क्षेत्र में डॉ देवव्रत राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उत्कृष्ट सेवाएं दे चुके हैं।उक्त सम्मान को प्राप्त करने के बाद मोतिहारी के बेला बैजू के मूल निवासी डॉ देवव्रत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस मुकाम तक पहुँचना काफी संघर्षपूर्ण रहा है। यह दिन मेरे लिए सदैव यादगार रहेगा। फिजियोथेरेपी चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए एम्स,नई दिल्ली के वरीय फिजियोथेरेपिस्ट डॉ प्रभात रंजन द्वारा सम्मानित होना मेरे लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि फिजियोथेरेपी के माध्यम से गठिया, रीढ़ की हड्डी की चोट, लकवा, मस्तिष्क ज्वर ,साइटिका जैसी बीमारियों का इलाज संभव है। इस चिकित्सा पद्धति का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। आजकल के भाग-दौड़ वाले जीवन शैली में फिजियो थेरेपी अति महत्वपूर्ण हो गया है। इसके माध्यम से बिना दवा के ज्यादातर बीमारियों को जड़ से खत्म किया जाता है।। डॉ देवव्रत को यह सम्मान लगातार दो वर्षों से मिल रहा है जो प्रदेश के लिए गौरव की बात है। इस सम्मान को प्राप्त करने पर उनके पिता पारसनाथ प्रसाद, परिजन सहित प्रदेश के चिकित्सकों ने उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं दी है।